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- खोजो, भारत खोजो
देश के राजनेताओं में कीचड़ उछालो का गंदा खेल जारी है और राजनीति मूल्यहीन हो गई है। एक कहता है तू माल खा गया, दूसरा कहता है कि तू मुझसे ज्यादा खा गया। बस लड़ाई खाने की चल रही है। सारे देश को खा जायें तो भी इनका पेट नहीं भरे। चरित्रहीनता, ढ़कोसला और हाथी के दांतों जैसा हाल हो गया है राजनेताओं का। इसकी जांच कराओ, उसकी मत कराओ, ये इनके रोज के खेल में सम्मिलित हैं। निर्दोष, बली के बकरे बन रहे हैं और दोषी गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। कोई कहता है मुख्यमंत्री बनाओ, कोई कहता है मंत्री बनाओ और कोई तीसरा कहता है मेरा मंत्रालय बदलो। असंतुष्ट कहते हैं हमें भी ठिकाने लगाओ वरना हम सरकार गिरा देंगे। कोई कहता है हम बाहर से समर्थन देंगे, लेकिन सरकार नहीं चलने देंगे। लफड़ा एक नहीं अनेकानेक हैं, जो देश की छवि को मटियामेट कर रहे हैं। प्रधानमंत्री को एक ही चिंता खाए जा रही है कि कहीं उनकी कुर्सी न चली जाए, इसलिए वे चुपचाप बंसी बजा रहे हैं। उन्हें हंसने के अलावा कुछ नहीं आता। विपक्षी इस बात पर तमतमाए हुए हैं कि वे सत्ता में क्यों नहीं हैं। कोई दंगा करा रहा है तो कोई मंदिर बनाने की रट पर ठहर गया है। कोई अयोध्या की ओर कूच कर गया है तो कोई भोपाल और जयपुर में बैठकर मंत्रिमंडल विस्तार का झांसा दे रहा है। इस पर तुर्रा यह कि यह तो हमारी राजनीति है, इसमें सब जायज है। वे बिहार में क्या जीते कि बिहार को नया बनाने का दिलकश नारा उछाल रहे हैं। उनसे पूछे कि आपके होते हुए बिहार नया कैसे बनेगा। बिहार के भाग्य में तो बस बिहार बना होना लिखा है। दलितोत्थान की बातें बढ़-चढ़ कर की जा रही हैं और दलितों को दो वक्त खाने को रोटी नसीब नहीं है।