सम्पादकीय

ज्ञान का विज्ञान

Rani Sahu
29 Sep 2021 6:48 PM GMT
ज्ञान का विज्ञान
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ज्ञान तो ज्ञान है, और विज्ञान दरअसल ज्ञान का एक भाग है, फिर ‘ज्ञान का विज्ञान’ क्या बला है

ज्ञान तो ज्ञान है, और विज्ञान दरअसल ज्ञान का एक भाग है, फिर 'ज्ञान का विज्ञान' क्या बला है? ज्ञान के विज्ञान से हमारा मतलब क्या है, इसका अर्थ क्या है और इसका उपयोग क्या है? आज हमारा जीवन भागदौड़ भरा है और हम समय की कमी से परेशान हैं। हमारा बस चले तो हम शायद एक दिन का समय 24 घंटे से बढ़ाकर 48 घंटे तो कर ही दें। हम भागते-भागते तैयार होते हैं, भागते-भागते नाश्ता करते हैं, और भागते-भागते ही दफ्तर जाते हैं तो भी अक्सर 5-10 मिनट देर से ही पहुंचते हैं। यह रोज़ की समस्या है। काम से जब घर वापस आते हैं तो भी कई बार आफिस का काम घर ले आते हैं। हमारा लैपटॉप हमेशा हमारे साथ चलता है, यानी हमारा दफ्तर हमारे साथ ही चलता है। यहां तक कि आफिस के बहुत से काम आजकल स्मार्टफोन पर ही होने लग गए हैं। इसने जहां एक तरफ आसानी दी है, वहीं दूसरी तरफ हम पर काम का दबाव भी बढ़ाया है। मोबाइल फोन में इंटरनेट, ईमेल और सोशल मीडिया ऐप आ जाने के बाद से जीवन कुछ और सुविधाजनक और रंगीन हो गया है, लेकिन साथ ही साथ इसने हमारी दुविधा भी बढ़ाई है और समय की बर्बादी का कारण भी बना है। हम सोशल मीडिया पर समय लगाते नहीं हैं, समय गंवाते हैं। हमारा जीवन समय से बना है और समय की जितनी बेकद्री सोशल मीडिया के कारण हो रही है उतनी किसी और कारण से नहीं होती।

सोशल मीडिया की एक और गड़बड़ यह है कि यहां असलियत कुछ भी नहीं, सब कुछ आभासी है, सब कुछ वर्चुअल, फिर भी हम इस पर समय बर्बाद किए जा रहे हैं। समय की कमी ने हमारे जीवन में कई तरह के परिवर्तन किए हैं। परिवार के साथ हमारा संवाद घटा है। हम घर में होते हैं और जब कोई और काम नहीं होता तो हम फोन पर व्यस्त हो जाते हैं। पढ़ना-लिखना लगभग बंद है। अब या तो घरों से किताबें गायब होने लग गई हैं या फिर हैं भी तो सिर्फ अलमारी की सजावट मात्र हैं, कोई उन्हें पढ़ता नहीं है। यह तब है जबकि हम सब जानते हैं कि हर सफल व्यक्ति अक्सर बहुत सी किताबें पढ़ता है क्योंकि हर पुस्तक में उसके लेखक के जीवन भर का अनुभव छुपा होता है। सिर्फ एक-दो घंटे में किताब पढ़कर हम लेखक के अनुभव से बहुत कुछ सीख सकते हैं। अध्ययन, सीखने का सर्वश्रेष्ठ जरिया तो है ही, यह सबसे बढि़या मनोरंजन भी है। समस्या यह है कि अब हममें से ज्यादातर लोगों ने किताबें पढ़ना बंद कर दिया है। आफिस के काम और बेवजह के मनोरंजन के दुश्चक्र में फंसा आदमी किताबें पढ़ने की बात सोच ही नहीं पाता। मध्यवर्गीय व्यक्ति इस हद तक पिसा हुआ है कि परिवार चलाना ही उसके लिए फुलटाइम जॉब बन गया है। बच्चों को होमवर्क करवाना अपने आप में एक बड़ा झमेला है। ऐसे में मेरे साथ मानो एक चमत्कार हुआ। फेसबुक पर चल रहे अत्यंत सक्रिय मंच साहित्योदय ने अरब देश कतर की राजधानी दोहा की निवासी, भारतीय मूल की लेखिका एवं पेशे से इंजीनियर श्रीमती अंकिता बाहेती को साहित्य सफर नाम का नया कार्यक्रम शुरू करने की पेशकश की जिसमें किसी एक प्रसिद्ध साहित्यकार के साहित्य के सफर की चर्चा के साथ-साथ उनकी पुस्तकों की चर्चा होती है।
यह एक संयोग ही था कि इस कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले इंटरव्यू के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। शायद यह हैपीनेस गुरू के मेरे खिताब के कारण संभव हुआ। बातों-बातों में एक सवाल ज्ञान को सहेजने को लेकर आया तो मेरा उत्तर था कि ज्ञान का स्रोत कुछ भी हो, चाहे हम पुस्तकें पढ़कर, समाचारपत्र पढ़कर, टीवी देखकर, सेमिनार या वेबिनार में जाकर अथवा किसी सोशल मीडिया मंच के किसी कार्यक्रम या वीडियो को देखकर ज्ञान प्राप्त करें, हर ज्ञान को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। ज्ञान की पहली श्रेणी है रुचिकर ज्ञान, दूसरी श्रेणी है ज्ञानवर्धक पेशेवर ज्ञान और तीसरी श्रेणी है प्रगतिपरक ज्ञान। रुचिकर ज्ञान से मेरा आशय ऐसे ज्ञान से है जिसमें मेरी रुचि है, मुझे उस ज्ञान में आनंद मिलता है पर वह ज्ञान जीवन में मेरी प्रगति में सहायक नहीं है। मान लीजिए कि मुझे बागबानी का शौक है और मैं अलग-अलग तरह के पेड़-पौधों या फूलों-फलों के बारे में जानकारी इकट्ठी करता रहता हूं तो उस ज्ञान से मुझे आनंद तो मिलेगा पर मेरे पेशेवर जीवन में उसका कोई उपयोग नहीं है, तो इस तरह के ज्ञान को रुचिकर ज्ञान कहा जाएगा। दूसरी श्रेणी का ज्ञान, ज्ञानवर्धक पेशेवर ज्ञान कहलाता है और यह उस क्षेत्र का ज्ञान है जिसमें मैं पारंगत हूं और अपने ज्ञान को कुछ और बढ़ाना चाहता हूं या उसे अद्यतन, यानी अप-टु-डेट रखना चाहता हूं, उस क्षेत्र में हुई नई बातों की जानकारी चाहता हूं। इस ज्ञान से भी मेरे जीवन में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आता, पर मैं अपने काम में कुशल बना रहता हूं। इस ज्ञान को ज्ञानवर्धक पेशेवर ज्ञान कहा जाता है। अब अगर मैं नौकरी में या उद्यम में प्रगति चाहता हूं तो मैं ऐसे ज्ञान की प्राप्ति की कोशिश करूंगा जिससे मेरी प्रोमोशन हो सके या मेरा व्यवसाय फल-फूल सके।
मैं जहां हूं उससे ऊपर उठने की कोशिश में जो ज्ञान प्राप्त करूंगा, वह ज्ञान प्रगतिपरक ज्ञान है। वह ज्ञान कई गुना ऊपर उठा सकता है, मेरा जीवन ही बदल सकता है, वह ज्ञान प्रगतिपरक ज्ञान है। अब इन तीन श्रेणियों में बंटे ज्ञान में से मेरा 80 प्रतिशत समय तीसरी श्रेणी के ज्ञान, यानी प्रगतिपरक ज्ञान की प्राप्ति में लगना चाहिए और बाकी बचे 20 प्रतिशत समय का आधा-आधा, यानी दस-दस प्रतिशत समय ही पहली और दूसरी श्रेणी के ज्ञान, यानी रुचिकर ज्ञान और ज्ञानवर्धक पेशेवर ज्ञान पर लगना चाहिए। इसमें भी रुचिकर ज्ञान पर मेरा रवैया कामचलाऊ जैसा होना चाहिए जबकि ज्ञानवर्धक पेशेवर ज्ञान के लिए मुझे कुछ ज्यादा गंभीर होने की आवश्यकता है। इन दोनों के मुकाबले में प्रगतिपरक ज्ञान के लिए मुझे सिर्फ गंभीर होने की ही नहीं, बल्कि निष्ठावान होने की आवश्यकता है और इस ज्ञान को अमल में लाने की आवश्यकता है। प्रगतिपरक ज्ञान तभी लाभदायक होगा यदि मैं इसे अपने जीवन में उतार लूं। यह ज्ञान केवल ज्ञान तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, कागजों में या दिमाग के किसी कोने में ही नहीं रहना चाहिए बल्कि मेरे व्यवहार में, मेरे कामकाज में आ जाना चाहिए। यही नहीं, मुझे इस ज्ञान का तर्कसंगत विश्लेषण, विभाजन और वर्गीकरण करना चाहिए ताकि समय आने पर मैं कुछ देखना चाहूं, ढूंढ़ना चाहूं, तो मुझे संबंधित विषय का ज्ञान ढूंढ़ने में दिक्कत न हो। ज्ञान की उपयोगिता ही उसके उपयोग में है। उपयोग में न लाया गया ज्ञान किसी दूसरे के बैंक में पड़े धन सरीखा है। जीवन में आगे बढ़ने का, उन्नति करने का यही मूलमंत्र है। ज्ञान का विज्ञान इसे ही कहते हैं। इसे समझकर इसका लाभ उठाने में ही हमारी भलाई है।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
ईमेलः [email protected]


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