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देश के कुछेक राज्य सितंबर के महीने को पोषण माह के तौर पर मना रहे हैं। इस पोषण माह के दौरान सभी कुपोषण के अधिक शिकार और आंशिक तौर पर कुपोषण के शिकार बच्चों की सेहत और तंदुरुस्ती पर खास ध्यान देते हुए उन पर काम किया जाएगा। छोटी क्लास के स्कूली छात्रों के कुपोषण, यानी ठीक खुराक न मिलने के अनेक कारण हो सकते हैं। सभी राज्यों में कुपोषण का मुख्य कारण गरीबी ही है। कम मात्रा में भोजन करने पर बच्चों में कुपोषण विकसित हो सकता है। कुपोषण की समस्या देश के अनेक राज्यों में संतोषजनक नहीं है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या सबसे बड़ी समस्या मानी जाती है, क्योंकि इससे विकास की रफ्तार धीमी हो रही है। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या कुपोषण को माना जाता है। इसकी चपेट में प्रदेश के लाखों बच्चे हैं। खासकर ट्राइबल इलाकों के बच्चे ज्यादातर कुपोषित हैं। राज्य में वर्तमान में 17 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषण की श्रेणी में आते हैं जिनकी संख्या लाखों में है। इसी तरह से मध्य प्रदेश में बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन की ताजा तिमाही रिपोर्ट में करीब 78 हजार बच्चों में कुपोषण मिला है। ये वो बच्चे हैं, जो रोजाना आंगनबाड़ी पहुंचते हैं। रिपोर्ट जनवरी, फरवरी और मार्च 2023 की है जो दो जून को जारी हुई है। पिछली तिमाही (अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर 2022) की रिपोर्ट की तुलना में भोपाल समेत सात संभागों में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए। इनमें 22.4 करोड़ (29 फीसदी) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक-चौथाई से भी अधिक है। जहां तक देश का सवाल है तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है।
दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और गेहूं उत्पादन में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं। इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के कोरोनाकाल के बाद लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है। साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए। इनमें 22.4 करोड़ (29 फीसदी) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक-चौथाई से भी अधिक है। इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है। कुपोषण पर भारत सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। देश के कुछ राज्यों मे सुपोषण योजना के माध्यम से कुपोषण मुक्ति के लिए व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। इस योजना के तहत कुपोषित महिलाओं, गर्भवती और शिशुवती माताओं के साथ बच्चों को गरम भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। राशन में आयरन और विटामिन युक्त फोर्टीफाइड चावल और गुड़ देकर लोगों के दैनिक आहार में विटामिन्स और मिनरल्स की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है। इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक रेडी टू ईट और स्थानीय उपलब्धता के आधार पर पौष्टिक आहार देने की भी व्यवस्था की गई है। महिलाओं और बच्चों को फल, सब्जियों सहित सोया और मूंगफली की चिक्की, पौष्टिक लड्डू, अण्डा सहित मिलेट्स के बिस्कुट और स्वादिष्ठ पौष्टिक आहार के रूप में दिया जा रहा है। सभी राज्यों में इससे अधिक प्रयासों की जरूरत है। कुपोषण को दूर करने के लिए हमारे स्कूलों में खास प्रयास कर सकते हैं। स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों में कुपोषण को दूर करने के तरीकों पर पेरेंट्स की समझ बढ़ाने के लिए पेरेंट्स को बच्चों में कुपोषण के मुद्दे पर काउंसलिंग दी जानी चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बच्चों को संतुलित और पौष्टिक आहार मिल सके। इसके साथ ही बच्चों में खाने की अच्छी आदतों को विकसित करने के लिए स्कूलों को योजना बनानी चाहिए। इस दिशा में प्रशासनिक कोशिशों में तेजी लाई जाए, तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। मिड-डे-मील जैसी योजनाओं का प्रभावी वर्शन लाए जाने की जरूरत है। गैर सरकारी संगठन कुपोषण को लेकर सरकारों को सहयोग करें। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2019 ने कुछ चेतावनी भरे तथ्य उजागर किए हैं। इस इंडेक्स में भूख के आधार पर 117 देशों की रैंकिंग की गई है और इसमें भारत 102वें स्थान पर है। ब्रिक्स देशों में भारत की रैंकिंग सबसे कम है। जीएचआई इंडेक्स पांच वर्ष से कम आयु वाले ऐसे बच्चों पर आधारित होता है, जिनका वजन और लम्बाई निर्धारित मापदण्ड से कम है। ऐसे पर्याप्त तथ्य हैं जो यह बताते हैं कि भुखमरी का शिक्षण व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। जो दिमाग सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते, उन्हें उचित मूलभूत ढांचे और दिमाग का सही विकास नहीं होने के कारण मूल शिक्षा भी सही ढंग से नहीं मिल पाती।
डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट कहती है कि पांच वर्ष से कम आयु के ऐसे 155 मिलियन बच्चे हैं जो अपनी लम्बाई के अनुसार कम वजन के हैं और 50 मिलियन बच्चे अविकसित हैं। अपनी स्थिति और पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं होने के कारण वे आठ वर्ष तक पढऩे की स्थिति में भी नहीं आ पाते। यही कारण है कि भोजन और शिक्षा आपस में एक-दूसरे पर निर्भर हैं और यदि इसका प्रबंधन सही ढंग से नहीं किया गया तो नए भारत के लिए चुनौती बन सकता है। देखा जाए तो कुपोषण कोई ऐसी बीमारी नहीं जिसे कम न किया जा सके। बस हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है। स्कूली बच्चों को जंक फूड के विपरीत प्रभावों से बचाने की बहुत जरूरत है। कुल मिला कर न केवल नीति स्तर पर, बल्कि परिवार में भी बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें कैसा आहार दिया जाता है, इसको ध्यान में रखकर कुपोषण की समस्या को काफी हद तक सीमित किया जा सकता है। यूं भी जो हमारी शिक्षा व्यवस्था है, उसमें कमियां हैं और यह उन बातों पर फोकस नहीं कर रही है कि हमें क्या खाना चाहिए और कितनी मात्रा में खाना चाहिए। चूंकि हमारी समझ और जानकारी किताबों और लेक्चर्स से आती है, ऐसे में भोजन और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पाठयक्रम आज के समय की बहुत बड़ी जरूरत हैं।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
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