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Written by जनसत्ता; आज शिक्षा का मूल मकसद धन उपार्जन करना ही रह गया है। महिला शिक्षा के मामले में अभी भी हमारे देश की स्थिति दयनीय है। देश में समाज कल्याण एवं स्त्रियों की उच्च शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। महिलाओं में निम्न रोजगार दर संपत्ति है और लैंगिक समानता के कारण गैर भेदभाव मूल्य वाले कार्यों में उन्हें कम पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है।
बेरोजगारी उन्मूलन के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में उल्लेखनीय प्रयास किए गए। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में सुधार के लिए सरकार ने कर्इं कदम उठाए हैं। पर कमी रूढ़िवादी खयालातों में है। जब तक हम परिवर्तन की शुरुआत नही करेंगे, तब तक सरकार के सारे प्रयास विफल होंगे। अब भी अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवार में लड़की को पढ़ाने का मूल कारण उनके माता पिता द्वारा यही बताया जाता है कि उनकी शादी में कोई रुकावट न आए, न कि इसलिए कि वह भविष्य में सफल हो। लड़कियों को हमेशा यही सलाह दी जाती है कि वे जीवन में कितनी भी सफल क्यों न हो, उनका पहला दायित्व परिवार के प्रति है या परिवार बढ़ाने से है।
ब्रिटेन के लेस्टर में दंगाइयों ने जिस तरह मंदिरों पर जिस तरह हिंसा बरपाई, इस तालिबनी मानसिकता का प्रदर्शन करने की घटना से यूरोप के बहुलतावाद पर प्रश्न चिह्न खड़े हुए हैं। दंगे नियंत्रित करने के लिए ब्रिटेन की पुलिस भी असमर्थ थी, धर्म स्थलों में तोड़फोड़ की गई। लेस्टर के लोगों के लिए ऐसी हिंसा तो उम्मीद से भी परे थी।
उन्हें यह विश्वास नहीं था कि जिनके साथ वर्षों से रहते रहे हैं और जिनके साथ नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं, वही लोग उनके लिए काल बन जाएंगे। ब्रिटेन का भारतीय समुदाय दोनों हिंदू और मुसलिम एशियाई मूल के लोगों की पहचान को समृद्ध करता रहा है। इस मामले पर ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग को प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होना पड़ा है। भारतीय उच्चायोग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि हिंदू मंदिरों पर हुए हमले डरावने और घृणात्मक है।