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- प्रगति के पैमाने
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछली एक-दो शताब्दियों में विज्ञान व तकनीकी ने बहुत उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की हैं, पर इसके बावजूद यह सवाल बना रहा है कि मनुष्य की प्रगति कितनी वास्तविक है और कितनी भ्रामक। हवा, पानी, मिट्टी, जो जीवन की सबसे बुनियादी जरूरतें हैं, उन सभी की स्थिति बेहद चिंताजनक है। युद्ध व उसके हथियार इतने विनाशक हो चुके हैं कि कई हंसते-खेलते देश चंद वर्षों में इनसे तबाह हो चुके हैं। इन बड़े मुद्दों को रहने दें तो भी दैनिक जीवन में, आसपास के जीवन में नाहक, बेवजह इतनी हिंसा व तबाही बिखरी हुई है व उसके विश्व स्तर के आंकड़े डरावने हैं और निरंतर चल रहे युद्ध की तरह लगते हैं। बेशक भोग-विलास के साधन बहुत बढ़ गए हैं, पर दुनिया की एक बड़ी आबादी किसी तरह मूल आवश्यकताओं को जुटाने के लिए संघर्षरत है या असमर्थ है। जिस तरह मिट्टी, पानी, हवा आदि जीवन के आधार की क्षति हो रही है, उस स्थिति में भविष्य में जीवन का यह संघर्ष विश्व की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए और भी अधिक दुर्गम व जटिल हो सकता है। तिस पर जलवायु बदलाव व इससे जुड़ी गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं तथा महाविनाशक हथियारों के भंडार, अंतरिक्ष युद्ध की संभावना के कारण धरती की जीवनदायिनी क्षमताएं भी खतरे में पड़ती जा रही हैं। इस आशय की अनेक चेतावनियां विश्व के जाने-माने वैज्ञानिक दे चुके हैं।
By: divyahimachal