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तो भक्तो! सावन का पवित्र महीना चला रहा है। सावन महीना पड़ोसी कुकर्मों का खास महीना होता है, खासकर आदर्श पड़ोसियों के लिए। इस महीने में वे अपनी नाली का पानी आपकी जगह में रात के अंधेरे का फायदा उठा मजे से डाल सकते हैं। अपने घर में झाड़ू लगाकर अपने दिमाग तक का कूड़ा वे आपकी ओर फेंक ही सकते हैं। अपनी पूरी जगह कवर करने के बाद वे थूकते भी आपकी ही ओर हैं। भले ही उनके सिर से पांव तक थूक ही थूक लगा हो। मतलब वे मौन होकर अपने पड़ोसी से उतनी बदतमीजी कर सकते हैं जितनी वह टॉलरेट कर सकता है। आदर्श पड़ोसी का धर्म अपने पड़ोसी से बदतमीजी करना होता है और पड़ोस की बचाए रखने वाले पड़ोसी का धर्म उनकी बदतमीजियों को सहन करना इस गलत इरादे से कि एक दिन में सुधर जाएंगे। पर आदर्श पड़ोसी और सूअर कभी सुधरा नहीं करते। सूअर में आदर्श पड़ोसी और आदर्श पड़ोसी में सूअरपना कूट कूट के भरा होता है। आज का दौर पड़ोसियों का नहीं, आदर्श पड़ोसियों का है। उन पड़ोसियों का जो जिस दिन अपने पड़ोसी को तंग नहीं कर पाते उस दिन वे हंस नहीं पाते।
रात को उनको नींद नहीं आती। इसलिए वे रात को भी अपने पड़ोसी को तंग करने का नेक काम करते रहते हैं। और नहीं तो रात को चलते चलते नाली का पानी पड़ोसी की ओर मोड़ दिया। वे अपने पड़ोसी की जमीन इंच इंच कर अपने हाथ में लेते रहते हैं कभी मुस्कुराते हुए तो कभी गिड़गिड़ाते गिड़ाते हुए। तो इस कथा के नायक पड़ोसी नहीं, आदर्श पड़ोसी हैं। आदर्श पड़ोसी जितने दुखदाई होते हैं, उतने सामान्य पड़ोसी नहीं। उनकी शर्तों का पार नहीं पाया जा सकता। सहत्तर के होने पर भी वे बच्चों की तरह की हरकतें करते रहते हैं। बस हरदम उनके दिमाग में यही रहता है कि किस तरह पड़ोस के हित की परवाह किए बिना अपने को बेहतर बनाया जाए। आदर्शवादी होने के बाद भी बदतमीजी के सारे तत्व इनमें कूट कूट कर भरे होते हैं। ये समान्य तौर पर हंसके बात करते हैं, पड़ोसी के हमदर्द होने की कदम कदम पर दुहाई देते हैं, पर होते केवल अपने तक ही सीमित हैं। अपने तक सीमित रहना ही इनका सबसे बड़ा आदर्श होता है। इनका धर्म बदतमीजी होता है, इनका कर्म बदतमीजी होता है। ये इतने बदतमीज होते हैं कि अपने घर में भी जमकर बदतमीजी कर लेते हैं। वैसे तो अपने पड़ोसी के साथ ये उन्मुक्त हंसी हंसते रहते हैं, पर जब इन्हें अपने पड़ोसी को नुकसान पहुंचाना हो तो आप कौन तो ये कौन! तब ये इस ढंग से बदतमीजी करते हैं ज्यों ये आपको जानते भी न हों। और जब अपनी बदतमीजी पूरी कर लेते हैं तो फिर अपने पड़ोस के साथ पेट खोल खोल कर हंसने का दंभ करने लग जाते हैं। ये बदतमीज ही नहीं, अव्वल किस्म के बदतमीज होते हैं।
जब अपने पड़ोसी का दोहन करना होता है तो बात बात पर पड़ोसी द्वारा अपने पर किए उपकारों का ध्यान पड़ोसी को दिलाते हैं और फिर उसको एक बार और दुह आगे हो लेते हैं। हंसते हुए मौन पड़ोसी को तंग करना इनका सशक्त हथियार होता है। ऐसे आदर्श पड़ोसी हर गली कूचे में पाए जाते हैं। जिस गली कूचे में ऐसे पड़ोसी नहीं होते, वह गली कूचा नरक के समान होता है। वहां बिल्कुल भी रौनक नहीं होती। वहां हरदम श्मशान सा सन्नाटा छाया रहता है। उस गली कूचे में शांति का वास होता है। वहां प्रेम का वास होता है। वहां किसी किस्म की बीमारी नहीं होती। पड़ोस में यह सब सुखद नहीं होता। भक्तो! अत: ऐसे गली कूचे को तत्काल त्याग देना चाहिए। जहां पर पड़ोसी एक दूसरे पर घात न लगाए हो। एक दूसरे की खाली जमीन पर अपनी काली नजरें न लगाए हो। जो दिखावे को तो प्रेम प्यार का करते हों, और चोरी छुपे पड़ोसी पर वार करते हों। ऐसा पड़ोस वैकुंठ से कम नहीं होता। जिस पड़ोस में कम से कम एक लंठ नहीं होता। तो प्रेम मुदित मन से कहो, ऐसे पड़ोसियों की जय! ऐसे पड़ोसियों का स्वर्ग में वास हो। उनके आदर्श मन का पल पल नाश हो। उनकी दुर्बुद्धि का दिन रात विकास हो।
अशोक गौतम
By: divyahimachal
Rani Sahu
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