सम्पादकीय

ईमानदार अफसर को व्यंग्यी सलाह

Rani Sahu
19 April 2022 7:20 PM GMT
ईमानदार अफसर को व्यंग्यी सलाह
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हे ईमानदार अफसर! (मान लेते हैं, कोई होता होगा, तो होता होगा) सब कुछ बन, पर ईमानदार मत बन। हां! ईमानदार जरूर दिख

हे ईमानदार अफसर! (मान लेते हैं, कोई होता होगा, तो होता होगा) सब कुछ बन, पर ईमानदार मत बन। हां! ईमानदार जरूर दिख। क्योंकि इंसानियत के बाजार में जो दिखता है वही बिकता है। ईमानदार बन ही तो औरों को ईमानदारी का पाठ मत पढ़ा। ऐसा करेगा तो मारा जाएगा। सीट सीट से उतारा जाएगा। जन्म जन्म के चोर उचक्कों को ईमानदारी सिखाएगा तो मुंह की खाएगा। वे जब स्कूल में ही ईमानदारी नहीं सीखे तो अब क्या खाक सीखेंगे? जो काम करने को मन करता ही है तो चुपचाप अपना काम कर। मन करता है तो अफसर की कुर्सी पर बैठ मजे से आराम कर। यहां कुर्सी काम करने के लिए नहीं, आराम करने के लिए मिलती है। भले ही खुद नियम कानून में रह। अपने आप नियम कानून में रहना अच्छी बात है। पर दूसरों को नियम कानून सिखाना, बताना बहुत बुरी बात है। इससे व्यक्तिगत रूप से बड़ी हानि होती है। बेईमान लोग ईमानदारी के दूध में से ईमानदार को मक्खी की तरह उठाकर बाहर फेंक देते हैं। इसलिए नियम कानून के हिसाब से भले ही खुद चल, पर औरों को चलने को मजबूर न कर। नियम कानून अपने यहां दूसरों को दिखाने के लिए होते हैं, खुद को उन पर चलाने को नहीं। अच्छी बात है।

सरकारी पैसा खुद मत खा, पर औरों को खाने से मत रोक। जो सरकारी पैसे पर अपने पुरखों तक को मौज करवाता है, यहां पर ईमानदार अफसर बस, वही माना जाता है। तुम्हें बेईमानी का नहीं पचता तो इसका मतलब ये नहीं कि उनके भी पेट तुम्हारे जैसे हैं। उनको खाने से रोकोगे तो वे तुम्हारा रास्ता रोक देंगे। वे देश में आए ही खाने हैं। वे काम नहीं करते, पर जमकर खाते हैं। हाय! हाय! से अधिक आय का जरिया आज कोई दूसरा नहीं। हाय! हाय! कर कुर्सी पर बैठते ही पलक झपकते करोड़ों कमाए जा सकते हैं। अपने अपनी सरकार में ही ठेकेदार बनाए जा सकते हैं। अपने अपनी सरकार में ही खाने वाली कुर्सियों पर सजाए जा सकते हैं। अपने अपनी सरकार में अपने मनचाहे पदों पर लगाए जा सकते हैं। अपने अपनी सरकार में सारे कायदे कानून हाशिए पर रख समाज के रखवाले बनाए जा सकते हैं। हे अफसर! जनता के पैसे को सब कुछ मान, पर गलती से भी जनता का मत मान! सरकार के पैसे को सरकार का मत मान। उसका उपयोग नियम फूंक फूंक कर मत कर। सरकार का पैसा है। जनता का पैसा है। जितना हो सके इसे गर्मी के दिनों में भी बाढ़ के पानी सा बहा। खुद नहीं खाना तो मत खा, पर औरों को खाने से मत रोक।
औरों को खाने से मत टोक। ऐसा करेगा तो सस्पेंड हो जाएगा। हे अफसर! देशहित में अपने पद का सदुपयोग मत कर। पद का सदुपयोग करने वालों को यहां कोई नहीं पूछता। सब पद का दुरुपयोग करने वालों को ही पूजते हैं। जो गलती से भी अपने पद का सदुपयोग करता है, उसे तो उसके घरवाले भी नहीं पूछते। इसलिए अपने पद के हिसाब से काम मत कर। तुम्हारे पद का जो काम है, वह असल में तुम्हारा है ही नहीं। इसलिए अपने पद के काम को लेकर तू इतना चिंतित क्यों है? सैलरी तो मिल रही है न? सदा याद रखना! तुम उनके आगे अपने को अफसर समझने की गलती सपने में भी मत करना। तुम अफसर जनता के हो। उनके तो बस नौकर हो। और नौकर अपने स्वामी को सलाह उसका सलाहकार होने के बाद भी नहीं देता। उसके नतीजे पर बस अपनी गरदन हिलाता है। नौकर चाहे कितना ही बुद्धिमान हो। वह नौकर ही होता है। वह बस, पगार लेता अपने मालिक की हां में हां मिलाता है और एक के बाद एक उच्च पद पाता चला जाता है। कानूनन सेवक को अपने स्वामी के आगे अपना दिमाग कतई नहीं लगाना चाहिए। जिस अफसर ने अपने स्वामी के आगे अपना जितना दिमाग फुलाया, समझो उसने उतना ही खाने का मौका गंवाया।
अशोक गौतम


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