सम्पादकीय

संथाल हूल दिवस: आदिवासी संघर्ष की दास्तां, अंग्रजों को छुड़ा दिए छक्के

Rani Sahu
30 Jun 2022 5:54 PM GMT
संथाल हूल दिवस: आदिवासी संघर्ष की दास्तां, अंग्रजों को छुड़ा दिए छक्के
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हूल दिवस आदिवासी संघर्ष की एक अनोखी दास्तां है

रामकृष्ण सोरेन

by Lagatar News

हूल दिवस आदिवासी संघर्ष की एक अनोखी दास्तां है. बता दें कि अंग्रेज भारत में व्यापारिक रुप से 1700 ईस्वी में प्रवेश किया था. उसके बाद अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल की खाड़ी में 1757 ईस्वी में दस्तक दी. अंग्रेज मात्र तीन हजार सैनिकों के साथ बंगाल की खाडी में आया था. उस समय बंगाल के राजा सिराजुद्दौला से सामना हुआ. प्लासी का पहला युद्ध 23 जून 1757 ईस्वी को मुर्शिदाबाद के दक्षिण से 22 मील दूर नदिया जिले मे भागोरथी नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान पर हुआ था. उस समय राजा सिराजुद्दौला का सेनापति मीरजाफर था. सिराजुद्दौला के पास 18000 हजार सैनिक था.

अंग्रेजों ने भारत मे कदम रखते ही भारतीयों से छल कपट करना शुरू कर दिया. अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर को पैसा और बंगाल का राजा बनाने का लालच दिया. मीरजाफर लालच में आकर अंग्रेजों के खेमे में शामिल हो गया. बिना युद्ध किए अंग्रेजों ने मीरजाफर के साथ मिलकर राजा सिराजुद्दौला को बन्दी बना लिया.
सिराजुद्दौला के 18000 हजार सैनिक अंग्रेजों के मात्र तीन हजार सैनिकों के सामने हथियार डाल दिए. इस प्रकार अंग्रेजों ने छल से बंगााल पर कब्जा कर लिया. उसके बाद अंग्रेज बंगाल से संथाल परगना की ओर रुख किया. अंग्रेजों ने संथाल आदिवासियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. जमींदारी शोषण, लगान और संथाल औरतों का शोषण शुरू हो गया. उसका शोषण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था.
अंग्रेज संथालों की जमीन पर लगान लेना शुरू कर चुके थे. खेती हो या ना हो अंग्रेज या जमीदारों को लगान देना ही था. जब संथालों के पास पैसा नही होता था तो बनिया, साहूकार और महाजन के यहां कर्ज लेकर लगान चुकाते थे. साहूकार और महाजन अघन महीना में संथाल के गांवों में जाते और कर्ज के सूद के रूप में अनाज ले जाते थे. यदि किसी वर्ष खेती नहीं होती थी तो सादे कागज पर अंगूठा लगाकर जमीन अपने कब्जे में कर लेते थे. इस तरह संथालों की जमीन हड़प ली जाती थी.
जमीन हड़पने के अलावे संथालों को शारीरिक यातना भी दी जाती थी. साथ ही गरीबों पर केस भी दर्ज कर दिया जाता था. उस समय कोर्ट बंगाल के जहांगीरपुर मे होता था, जो संथाल परगना से काफी दूर था. इसलिए संथाल परगना के लोगों को कोर्ट जाने में एक सप्ताह का समय लगता था. लोग भूख मिटाने के लिए मकई, सत्तू, मड़ुआ साथ में ले जाते थे. वहीं कोर्ट में काफी भ्रष्टाचार था. बिना पैसे का वहां काम नहीं होता था.
उसी समय 1853 ईस्वी में अंग्रजों ने रेलवे लाइन बनाने का काम शुरू दिया था. इस काम के लिए आदिवासियों का उपयोग किया गया. उन्हें झोपड़ियों में रखा जाता था. रात में जमींदार और साहूकार संथाली लड़कियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते थे. जहां हाट लगती थी तो जमींदार और साहूकार औने-पौने दामों पर बैल, बकरी, भेड़ और अनाज जबरदस्ती ले जाते थे. अर्थात अंग्रेज, जमीनदारों और साहूकारों का अत्याचार चरम पर पहुंच चुका था.
Rani Sahu

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