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आदित्य चोपड़ा| राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने यह कह कर कि भारत के हिन्दू-मुसलमानों का मूल उद्गम एक ही है और ये एक ही पूर्वजों के वंशज हैं, स्पष्ट कर दिया है कि भारत पर सभी धर्मों के नागरिकों का बराबर का अधिकार है और किसी के भी बीच धर्म के आधार पर भेदभाव की गुंजाइश नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग दूसरे धर्म के अनुयाइयों की हत्या (लिंचिंग) अपने आग्रहों के चलते करते हैं वे हिन्दू नहीं हैं क्योंकि हिन्दुत्व में आतताई बनने की कहीं कोई संभावना ही नहीं है। यह धर्म 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के आदर्श पर इस प्रकार टिका हुआ है कि विरोधी मत के मानने वाले को भी बराबर का सम्मान देता है परन्तु सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सिर्फ पूजा पद्धति बदल जाने से भारतीयता पर कोई अन्तर नहीं पड़ता है। गौर से देखा जाये तो संघ प्रमुख ने भारतीयता के उस राग को ध्वनि दी है जिसमें से हिन्दू-मुस्लिम एकता के स्वर फूटते हैं। बेशक धर्म के आधार पर 1947 में भारत के दो टुकड़े हुए मगर हकीकत यह है कि आज भी पाकिस्तान की मिट्टी में से भारतीयता के बोल ही निकलते हैं जो इसकी क्षेत्रीय व आंचलिक संस्कृति के तारों से झंकृत होती है।