सम्पादकीय

समरकंद में समरबंद…

Rani Sahu
13 Sep 2022 6:39 AM GMT
समरकंद में समरबंद…
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उजबेकिस्तान के समरकंद में 15-16 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य-राष्ट्रों का जो शिखर सम्मेलन होने वाला है, वह दक्षिण और मध्य एशिया के राष्ट्रों के लिए विशेष महत्व का है। यों तो यह संगठन 2001 में स्थापित हुआ था, लेकिन इस बार इसकी अध्यक्षता भारत करेगा। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में अब भारत को अन्य राष्ट्रों के साथ चीन और पाकिस्तान से भी सीधे-सीधे बातचीत करनी होगी। शायद यह भी कारण रहा हो कि चीन और भारत ने मिलकर पूर्वी लद्दाख से अपनी सेनाएं पीछे हटाने की घोषणा की है। यह शिखर सम्मेलन उजबेकिस्तान के एतिहासिक शहर समरकंद में होने वाला है। समरकंद का भारत से गहरा संबंध रहा है। समरकंद का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। यों तो ताशकंद में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री गए थे। भारत-पाक समझौते के बाद 1966 में वहीं उनका निधन हो गया था। प्रधानमंत्री नरसिंहराव ताशकंद के साथ-साथ समरकंद भी गए थे। उनके बाद कुछ दिनों तक मुझे भी वहां रहने का मौका मिला था।
समरकंद के इस सुंदर शहर में यदि इन पड़ौसी राष्ट्रों के बीच विश्वसनीय सद्भाव कायम हो जाए तो इनके बीच चल रहा कूटनीतिक और राजनीतिक समर बंद हो सकता है। समरकंद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ, चीन के शी चिन फिंग और भारत के नरेंद्र मोदी की सामूहिक भेंट के अलावा यदि द्विपक्षीय भेंट हो गई तो उसके परिणाम काफी सकारात्मक हो सकते हैं। इन तीनों देशों के नेताओं की भेंट हुए अब तीन साल हो गए हैं। इस बीच भारत के संबंध इन देशों के साथ काफी खटाई में पड़ गए हैं। शंघाई सहयोग संगठन के इस समय 8 सदस्य हैं। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य मजहबी कट्टरवाद, आतंकवाद और जातीय अलगाववाद से लडऩा है। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग बढ़ाना भी है। ये सब लक्ष्य भारत के ही हैं और भारत इन्हें साकार करने में सदा सक्रिय रहता है। मेरी राय यह है कि यह संगठन जितना बड़ा बनता जा रहा है, इसकी लक्ष्य-प्राप्ति उतनी ही पतली होती जा रही है।
-डा. वेद प्रताप वैदिक

By: divyahimachal

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