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- सद्बुद्धि हवन, गंगाजल...
मानुष का जीव हर युग में बेचारा ही साबित हुआ है। बेचारे को सृष्टि के आरंभ से ही माया की तरह बुद्धि भी ठगती आ रही है। कहते हैं माया तभी ठगती है जब बुद्धि भ्रष्ट होती है। शायद इसीलिए बेचारा जीव सद्बुद्धि के लिए हमेशा भगवान से प्रार्थना करता नज़र आता है। तभी वेदों, उपनिषदें सहित दुनिया भर के धार्मिक ग्रंथों में सद्बुद्धि के लिए असंख्य प्रार्थनाएं मिलती हैं। मिसाल के लिए गायत्री मंत्र में परमात्मा से बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करने के लिए निवेदन किया गया है। पता नहीं, क्या सोच कर, कबीर बाबा ने माया को ठगिनी मानते हुए 'माया महाठगिनी हम जानी' कहा। उन्हें तो कहना चाहिए था, 'बुद्धि महाठगिनी हम जानी।' उनकी इसी ़गलती का नतीजा है कि जनता को अपने ही नहीं, सार्वजनिक कार्यों तक को भी सूरज की रौशनी दिखाने के लिए भगवान से नेताओं को सन्मति प्रदान करने के लिए सद्बुद्धि हवन तक करवाने पड़ रहे हैं या अपने चहेते नेताओं की सद्बुद्धि के लिए उस गंगाजल से शुद्धि करने की मजबूरी झेलनी पड़ रही है, जो अब नेताओं की बुद्धि की तरह प्रदूषित हो चुका है। इसीलिए बेचारी सद्बुद्धि सत्य की तरह झूठ की परिधि में टक्करें मारती रहती है।