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भारत-पाकिस्तान के युद्ध पर आधारित नब्बे के दशक में एक फ़िल्म बनी थी 'बॉर्डर'
नरेन्द्र भल्ला
भारत-पाकिस्तान के युद्ध पर आधारित नब्बे के दशक में एक फ़िल्म बनी थी 'बॉर्डर.' उस फिल्म में एक ऐसा संवाद था जो तब भी सच था और आज भी सच होते दिख रहा है. उस फिल्म के निर्माता का चूंकि देश की आर्मी से नाता रहा था लिहाज़ा युद्ध की हकीकत को बयान करने के लिए उन्होंने फिल्म के एक नायक की जुबानी ये कहलवाया था- "जंग तो चंद रोज की होती है लेकिन जिंदगी बरसों तलक रोती है."
पूरी दुनिया आज न्यूज़ चैनलों की मार्फत उस हक़ीक़त को देख तो रही है लेकिन ये शायद कोई भी नहीं जानता कि उसकी आंच हमें भी झुलसाने के लिए मानो तैयार है. बता दें कि रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग का आज तेरहवां दिन है जो दुनिया को किस विनाश की तरफ ले जायेगा ये तो फिलहाल कोई नहीं जानता लेकिन दोनों देशों के बीच सोमवार को हुई तीसरे दौर की बातचीत नाकाम होने के बाद इतना तय है कि भारत समेत समूची दुनिया एक ऐसे अनजाने खतरनाक संकट के मुहाने पर आ खड़ी हुई है जिसे सिवाय रूस के और कोई नहीं रोक सकता.
भारत के लिए ये संकट इसलिये और भी ज्यादा भयावह होता दिख रहा है क्योंकि अगले कुछ दिन में पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में जो बढ़ोतरी होने वाली है उससे महंगाई इस कदर बढ़ेगी कि वो किसी हाहाकार मचाने से कम साबित नहीं होगी. इस युद्ध के चलते अन्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों ने साल 2008 का रिकार्ड तोड़ दिया है और वो अब 139 डॉलर प्रति बैरल तक आ पहुंचा है. लेकिन इससे भी ज्यादा खतरनाक स्थिति ये होने वाली है कि अमेरिका अब रूस से तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की सोच रहा है. अमेरिका द्वारा लिए जाने वाले इस फैसले की भनक लगते ही रूस के उप प्रधानमंत्री नोवाक ने जो कहा है वो भारत समेत पूरी दुनिया के लोगों को रुलाने के लिये काफी है. उन्होंने ये कहकर सबको डरा दिया है कि अगर रूस पर तेल का बैन लगता है तो फिर दुनिया में कच्चे तेल की कीमत 300 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है.
उनके इस दावे की पुष्टि तो फिलहाल कोई नहीं कर सकता लेकिन सिर्फ कल्पना करके ही देखिये कि अगर वाकई ऐसा हो गया तब भारत में आम लोगों का क्या हाल होगा और देश की अर्थव्यवस्था किस गर्त में चली जायेगी. शायद इसीलिये पीएम मोदी के अलावा इजरायल और तुर्की ऐसे देश हैं जिन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से सीधी बात करके उन्हें ये जंग रोकने की सलाह दी है. लेकिन पुतिन भी अपनी जिद पर कुछ ऐसे अड़े हुए हैं कि वे अब इस लड़ाई को रोकने और पीछे हट जाने को अपनी सबसे बड़ी तौहीन मान रहे हैं इसलिये वे दुनिया की किसी भी ताकत की समझाइश मानने को तैयार नहीं हैं.
पुरानी कहावत है कि किसी भी लड़ाई की तीन ही वजह होती हैं जो एक परिवार से लेकर दुनिया के देशों पर भी लागू होती रही हैं और वे हैं- जर,जोरु व जमीन. रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग भी यूक्रेन की जमीन को कब्जाने औऱ वहां अपनी बादशाहत हासिल करने के लिए ही है. लेकिन जंग की ये सनक दुनिया को कितना तबाह कर सकती है इसकी फिक्र न पुतिन को है और न ही दुनिया के सुपर पावर अमेरिका को ही है. अन्तराष्ट्रीय मीडिया में आई रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका ने अपने एक लाख से ज्यादा सैनिक यूरोप की जमीन पर भेज दिए हैं जो रूस को भड़काने व उकसाने के लिए काफी हैं. लेकिन अमेरिका की तरफ से जो दूसरा दावा किया गया है वो दुनिया को डराने वाला इसलिये है कि क्या वो तीसरा विश्व युद्ध छेड़ने का बिगुल बजाने के लिये अब तैयार हो गया है?
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन से आई रिपोर्ट के मुताबिक अगर अगले 10 दिन तक ये युद्ध चला, तो नाटो देशों की सेनाओं की इसमें एंट्री हो जाएगी. वैसे भी अमेरिका ने परमाणु हथियारों से लैस अपनी पनडुब्बी को यूरोप के समंदर में भेजकर रूस के खिलाफ अपना इरादा जाहिर कर दिया है. सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका एकदम से तो सामने आकर नहीं लड़ेगा लेकिन यूक्रेन को बचाने और रूस से मुकाबला करने के लिए उसने पूरे यूरोप को आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए कमोबेश तैयार कर लिया है. यही वजह है कि उसने रूस पर दबाव बनाने के मकसद से ही ये कहा है कि अगर इस जंग को आगे और 10 दिन तक खींचा तो उसके बेहद खतरनाक नतीजे सामने आएंगे. हालांकि रूस की तरफ से फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं आया है लेकिन जानकार मानते हैं कि पुतिन के तेवरों को देखकर ये नहीं लगता कि वे डरेंगे या पीछे हटेंगे. लिहाज़ा,नाटो सेनाओं के आते ही पुतिन इतने बौखला सकते हैं कि वे इसका जवाब देने के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आएंगे. जाहिर है कि तब अहंकार की इस लड़ाई की तस्वीर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तबाही झेलने पर मजबूर कर देगी.
रूस और चीन की दोस्ती जगजाहिर है और सब जानते हैं कि युद्ध का दायरा बढ़ते ही चीन हर हाल में रूस का ही साथ देगा. नाटो के दो प्रमुख ताकतवर देश हैं- फ्रांस और जर्मनी. चूंकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन किसी की बजाय नहीं सुन रहे इसलिये इन दोनों देशों ने अन्तराष्ट्रीय कूटनीति के एक अहम औजार का इस्तेमाल करते हुए उसे आजमाने की कोशिश की है. आज यानी मंगलवार को फ्रांस और जर्मनी मिलकर चीन से बातचीत करने वाले हैं कि पुतिन को समझाइये और इस जंग को रोकिये. कोई नहीं जानता कि आगे क्या होगा लेकिन अगर चीन की नीयत साफ हुई तो हो सकता है कि वो पुतिन को तीसरा विश्व युद्ध छेड़ने से रोक दे
Rani Sahu
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