- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अपने ही बुने जाल में...
निशिकांत ठाकुर: सरहद से सटे देशों के बीच युद्ध कोई नई बात नहीं है। ऐसा काफी पहले से होता आ रहा है। पहले तीर-तलवारों से युद्ध लड़ा जाता था, अब अत्याधुनिक हथियारों, यहां तक कि अणुबम और परमाणु जैसे खतरनाक हथियारों से युद्ध लड़ा जाने लगा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अपने परमाणु हथियार चालक को जिस प्रकार हाई अलर्ट पर रखने का आदेश दिया है, उसे देखते हुए उस युद्ध की विभीषिका याद आ जाती है जिसकी चर्चा मात्र से ही आज भी जापानी नागरिक दहल—से जाते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि विश्व के लगभग सभी देशों में यह चाहत रहती है कि वह अपनी सीमाओं का अधिक से अधिक विस्तार करे या फिर पड़ोसी मुल्क उसकी चाकरी करे।
जापान की चर्चा यहां इसलिए करनी पड़ रही है, क्योंकि अपनी जापान यात्रा के दौरान मैंने हिरोशिमा और नागासाकी, दोनों शहरों को करीब से देखा है और वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत भी की है। उन दोनों शहरों में दिन भी बिताए हैं, साथ ही हिरोशिमा के उस म्यूजियम को भी देखा, जिसे उन दिनों की याद में बनाया गया है। उन दोनों शहरों में कोई ऐसा नहीं मिला जिन्होंने यह कहा हो कि 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी, जिनका इन दोनों शहरों पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने पर उनका अपना कोई हताहत न हुआ हो। उनकी जुबानी उन दिनों की घटनाओं को सुनकर पत्थरदिल इंसान भी विचलित हो सकता है।
हिरोशिमा में 3.75 लाख और नागासाकी में 74 हजार नागरिक तत्काल काल के गाल में समा गए थे। हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु बमबारी 6 अगस्त, 1945 की सुबह अमेरिकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम 'लिटिल बॉय' गिराया था। तीन दिन बाद अमेरिका ने नागासाकी शहर पर 'फ़ैट मैन' परमाणु बम गिराया। हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट के संदर्भ में 'लिटिल ब्वाय' और नागासाकी के बम को विंसटन चर्चिल के संदर्भ में 'फ़ैट मैन' कहा गया।
'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन' की चर्चा यहां इसलिए, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच अपनी शक्ति को सिद्ध करने का अपने वर्चस्व को कायम रखने का जो युद्ध छिड़ गया है उसका अंत क्या होगा, इसका अभी आकलन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह युद्ध बड़े-छोटे देशों का कम, बल्कि विश्व के दो महाशक्तियों के टकराव का परिणाम है।
अमेरिका ने पिछले शनिवार को यूक्रेन की तात्कालिक मदद के लिए करोड़ों डॉलर की राशि भी जारी कर दी है। साथ ही यह भी भरोसा दिलाया है कि यूक्रेन को विभिन्न प्रकार के हमलों से बचाव के लिए मदद जारी रहेगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि यूक्रेन में रूस लंबी लड़ाई में फंस गया है।
अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि कोई देश यदि रूस के पक्ष में आता है तो उसे अमेरिका से दो—दो हाथ करना ही पड़ेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा था कि उनका यूक्रेन के युद्ध में सैनिक भेजने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन रूस के नजदीक स्थित नाटो के सदस्य देशों- पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और बल्कान देशों में सैन्य तैनाती बढ़ाई जा रही है। अगर रूस नाटो देशों पर हमला करता है तो अमेरिका भी युद्ध में शामिल होकर उसे कड़ा जबाव देगा। जो बाइडेन ने कहा, नाटो एकजुट है और किसी भी चुनौती के लिए तैयार भी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति की घोषणा के बाद शायद ही रूस नाटो देशों सहित अमेरिका जैसे महाशक्ति से टकराने की सोचे। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले शुक्रवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि उनका इरादा यूक्रेन पर कब्जा करने का नहीं है, लेकिन रूस की सुरक्षा से भी समझौता नहीं किया जाएगा। हम यूक्रेन को किसी भी कीमत पर परमाणु हथियार नहीं बनाने देंगे।
उधर, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की ने माना कि वह रूस की सेना को अधिक दिनों तक नहीं रोक सकते। उन्होंने दुनिया से मदद की गुहार लगाई है। जवाब में अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और नाटो ने रूस की हरकतों की निंदा करते हुए उस पर आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की है, जो महीनों वर्षों बाद असर दिखाएंगे। रूस ने कहा है कि वह इन प्रतिबंधों से निपट लेगा।
भारत का संबंध रूस से सदैव मधुर रहा है। जब भी भारत पर कोई विपदा आई, रूस सदैव भारत के पीछे खड़ा रहा, साथ दिया। सोवियत संघ के विदेश मंत्री अंद्रेई ग्रोमिको भारत आए और वर्ष 1971 को उन्होंने भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह के साथ सोवियत-भारत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि दोनों देशों के दोस्ताना संबंधों में 'मील का पत्थर' बन गई।
इस संधि के तुरंत बाद सोवियत संघ ने ऐलान किया था कि भारत पर हमला उसके ऊपर हमला माना जाएगा। यही वह कारण है जिससे वर्ष 1971 युद्ध के दौरान अमेरिकी नौसैनिक बेड़े को भारत के ऊपर हमला करने की हिम्मत नहीं हुई। कई और दुर्लभ क्षणों में रूस ने अपनी मित्रता का निर्वाह किया। इन्हीं सब उपकारों व मदद के बदले भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेस्की से बात कर युद्ध को समाप्त करने का आग्रह किया है।
जैसे—जैसे समय गुजरता जा रहा है, रूस का आक्रमण यूक्रेन, खासकर राजधानी कीव को तीन तरफ से घेरकर हमला तेज कर हो गया है। भारत इसलिए भी पशोपेश में है कि यूक्रेन में उसके हजारों छात्र फंसे हुए हैं। हालांकि, धीरे—धीरे भारत सरकार का प्रयास सफल हो रहा है और भारतीय छात्र तरह—तरह की आपदाएं झेलकर वतन लौट रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री से लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष से संकट टालने के लिए भी कहा है।
जयशंकर ने अमरीकी समकक्ष को भी वार्ता के लिए पहल करने का सुझाव दिया है। नाटो सहित विश्व के कई देश युद्ध की विभीषिका को रोकने के लिए दोनों देशों को शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया है। लेकिन, जो माहौल बन गया है, उसमें ऐसा नहीं लगता कि तत्काल युद्ध विराम हो जाएगा और दोनों देशों के बीच शांति स्थापित स्थापित हो पाएगी, क्योंकि नाटो के सभी तीस देशों ने यूक्रेन को हथियार देने का फैसला किया है और उनके द्वारा रूस पर साइबर हमला भी शुरू कर दिया है। फिर रूस शांत कैसे बैठ सकता है। उसने भी विदेशी मालवाहक जहाजों पर निशाना साधना शुरू कर दिया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की ने साफ कर दिया कि उनकी सेना रूस के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करेगी, लेकिन युद्ध विराम पर रूस से बातचीत करने को तैयार है, जबकि रूस समर्पण की शर्त पर यूक्रेन सरकार से बात करने को तैयार है। जैलेस्की ने कहा है कि वह अपनी धरती पर कायम है और उसकी रक्षा का धर्म निभा रहे हैं। राष्ट्रपति ने उनकी सहायता करने वाले देशों से हथियारों की मदद मांगी है। अमेरिका ने कहा है कि रूस बंदूक की के दम पर यूक्रेन से वार्ता करना चाहता है, जो अस्वीकार है।
बता दें कि रूस-यूक्रेन विवाद पर भारतीय विदेश मंत्रालय के सेवानिवृत्त अपर सचिव केएम लाल ने एक समाचार पत्र में दिए गए अपने बयान में कहा है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस की ताकत में बहुत अधिक कमी नहीं आई है। वह आज भी खुद को सुपर पावर मानता है। वह नहीं चाहता है कि नाटो उसके दरवाजे तक पहुंचे। नाटो का सदस्य बनने के बाद यूक्रेन धीरे—धीरे सामरिक रूप से मजबूत हो जाएगा, जो रूस को मंजूर नहीं। यही कारण है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यूक्रेन को अपने लोगों का भी साथ नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि आधी आबादी रूसी मूल की ही है।
अब ऐसी स्थिति आ गई है कि रूस और यूक्रेन अब विश्व युद्ध के कगार पर खड़ा है। भारत भी अब इसमें फंसता हुआ नजर आ रहा है, क्योंकि भारत के सामने अब ऐसी स्थिति आ गई है जिसमें उसे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है कि वह किसके पक्ष में युद्ध में कूदे— रूस के साथ अथवा यूक्रेन के साथ।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत सहित कई देशों को कई प्रकार के नुकसान का सामना करना पड़ेगा। भारत सरकार में उच्च पदों पर बैठे राजनीतिज्ञ और वरिष्ठ अधिकारी युद्ध पर हर क्षण नजर जमाए बैठे हैं, क्योंकि यह सभी के हाथों से फिसलता जा रहा है और भयंकर रूप धारण करके हिरोशिमा और नागासाकी की तरह विश्व के कई शहरों और देशों को तबाह करने की स्थिति में पहुंचने वाला है। हम भारतीय चूंकि गांधी और बुद्ध के देशवासी हैं, इसलिए भारत का कोई भी नागरिक नहीं चाहेगा कि उसका देश युद्ध की विभीषिका का दंश झेले। हम शांति के पुजारी हैं, इसलिए शांति चाहते हैं।