सम्पादकीय

कभी प्रचार से दूर रहने वाला RSS आज पारदर्शी है, मोहन भागवत के नेतृत्‍व में संगठन के विकास का चौथा दौर जारी

Rani Sahu
15 March 2022 2:03 PM GMT
कभी प्रचार से दूर रहने वाला RSS आज पारदर्शी है, मोहन भागवत के नेतृत्‍व में संगठन के विकास का चौथा दौर जारी
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने लंबा सफर तय कर लिया है

कार्तिकेय शर्मा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने लंबा सफर तय कर लिया है. एक जमाने में यह सीमित और बिना शोर-शराबे के काम करने वाला संगठन हुआ करता था, लेकिन आज RSS घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बेहद मुखर है. आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले (Dattatreya Hosabale) का इंडियन नैरेटिव की जरूरत पर बल देने वाला बयान इस मामले में गौर करने लायक है. अखिल भारतीय प्रतिनिधिसभा के अंत में होसबोले ने कहा कि मौजूदा वैचारिक नैरेटिव में बदलाव की जरूरत है और तथ्‍यों पर आधारित भारत के नैरेटिव को प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए. आरएसएस के भीतर मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के कार्यकाल में प्रत्यक्ष तौर पर परिवर्तन हुआ. भागवत के कार्यकाल में आरएसएस क्रमिक विकास के चौथे चरण में है.
हेडगेवार और गोलवलकर ने आरएसएस के पहले चरण का नेतृत्व किया. पहले चरण के दौरान, आरएसएस अपने संगठन के निर्माण के लिए समर्पित था और बाहरी दुनिया के साथ अधिक संवाद नहीं किया. उस वक्‍त पूरा ध्‍यान संपूर्ण भारत में संगठन के विस्‍तार पर केंद्रित था. इस चरण में, आरएसएस के महत्वपूर्ण पदाधिकारी भारतीय समाज के भीतर सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित रहे.
मोहन भागवत चौथे चरण का नेतृत्व कर रहे हैं
दूसरा चरण मधुकर दत्तात्रेय देवरस के नाम रहा, जिन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों के लिए संगठन के दरवाजे खोले. वे बड़े तेज राजनीतिज्ञ भी थे और उनके नेतृत्व में आरएसएस ने आपातकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें आरएसएस को आंतरिक रूप से सुधारने और इसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाने का श्रेय दिया जा सकता है. उनके कार्यकाल के दौरान ही विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर राम जन्मभूमि आंदोलन को अपनाया था. उन्होंने जनसंघ के विघटन और बाद में भारतीय राजनीति के पटल पर भाजपा का उदय भी सुनिश्चित किया. भारत के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी के शपथ लेने के कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया. तीसरे चरण में रज्जू भैया और सुदर्शन का दबदबा था. उन्होंने लोगों और आरएसएस के बाहर काम करने वाले संगठनों के साथ करीबी कामकाजी रिश्‍ते स्थापित किए.
यह कहा जा सकता है कि वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत चौथे चरण का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को सेवानिवृत्त कर और पीएम मोदी के नेतृत्‍व में नई लीडरशिप को आगे बढ़ाकर बीजेपी में एक महत्वपूर्ण पीढ़ीगत बदलाव किया है. भागवत के नेतृत्व में आरएसएस ने संवाद की कला में खुद को फिर से स्थापित किया है. उनके नेतृत्व में आरएसएस ने आक्रामक तरीके से लोगों के सामने अपना विचार रखना शुरू किया, जिससे वे अपने वैचारिक दायरे के बाहर आकर सोचने लगे.
इस दिशा में निर्णायक मोड़ तब आया जब मोहन भागवत ने नई दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में न केवल प्रेस से मुलाकात की बल्कि हर सवाल का जवाब भी दिया. यह कदम उठाकर भागवत ने कई इतिहास से जुड़े कई मुद्दों पर स्‍पष्‍ट मत रखा, साथ ही गोलवलकर के कई गैरजरूरी विचारों को भी भागवत ने शाश्‍वत करार न देते हुए समय-विशेष से जोड़कर प्रस्‍तुत किया. वास्‍तव में आरएसएस प्रचार से दूर रहने वाला संगठन रहा है, लेकिन मोहन भागवत के नेतृत्‍व में यह अधिक पारदर्शी और खुला हो गया है.
भागवत के नेतृत्‍व में लोगों तक संगठन की पहुंच अब सामान्‍य हो गई है
यह विकास जमीनी स्‍तर की लड़ाई के नैरेटिव की लड़ाई में बदल जाने से ही मुमकिन हुआ. इस बदलाव ने प्रचार विभाग को काफी लाभ पहुंचाया है, जो कि अब परिपक्‍व हो चला है. भागवत के नेतृत्‍व में लोगों तक संगठन की पहुंच अब सामान्‍य हो गई है. आरएसएस के पदाधिकारियों से बात करना आसान है. वे पहले से ज्‍यादा खुलकर प्रेस से बातें करते हैं, उन राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों से भी संवाद करते हैं, जो कि संगठन से जुड़े नहीं हैं. संघ ने न केवल नैरेटिव की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया है, बल्कि वह ऐसा करता दिखाई भी दे रहा है.
संघ से जुड़ा एक और डिवेलपमेंट यह है कि कोविड-19 के बाद पैदा हुए रोजगार के मुद्दे पर उसने सक्रिय रूप से बोलना शुरू कर दिया है. संघ तेजी से विकास के उस भारतीय मॉडल के बारे में बात कर रहा है, जिसकी कल्पना मूलरूप से दत्तोपंत ठेंगड़ी ने की थी. आज संघ अपने शताब्दी वर्ष पर कम और स्वतंत्रता संग्राम के 100 वर्षों पर अधिक ध्यान दे रहा है. संघ की अगली लड़ाई भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को फिर से परिभाषित करने की है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े उन चेहरों को लोगों के बीच स्‍वीकार्य बना रहे हैं, जिन्‍हें लोग कम जानते हैं क्‍योंकि स्‍वतंत्रता संग्राम आज भी कांग्रेस तक ही सीमित है. संघ की अगली चुनौती इसका शताब्दी समारोह नहीं है, बल्कि इंडिया ऐट 100 पर है और इसके लिए संगठन 200 प्रतिशत अधिक सक्रियता से काम कर रहा है.
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