सम्पादकीय

ऋग्वेद विश्व की सबसे पहली पुस्तक

Rani Sahu
22 April 2022 7:19 PM GMT
ऋग्वेद विश्व की सबसे पहली पुस्तक
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यूनेस्को ने 23 अप्रैल 1995 से प्रतिवर्ष ‘पुस्तक दिवस’ मनाने की शुरुआत की है

यूनेस्को ने 23 अप्रैल 1995 से प्रतिवर्ष 'पुस्तक दिवस' मनाने की शुरुआत की है। 23 अप्रैल के दिन का इतिहास विश्व के कई विख्यात लेखकों के जन्म व मृत्यु से जुड़ा है, जिनमें अंग्रेजी के मशहूर लेखक 'विलियम शेक्सपीयर' भी शामिल हैं। बेशक शेक्सपीयर जैसे कई अन्य विद्वान अपने समय के विख्यात लेखक थे, लेकिन भारतीय होने के नाते हमें इस बात का गर्व है कि हजारों वर्ष पूर्व संसार की प्रथम पवित्र पुस्तक व लिखित दस्तावेज 'ऋग्वेद' की रचना भारतवर्ष के इस पावन भूखंड पर हुई थी। ईसा से सैकड़ों वर्ष पूर्व 'महर्षि लगध' ने वैदिक ज्योतिषशास्त्र के सर्वप्राचीन ग्रंथ 'वेदांग ज्योतिष' की रचना कर डाली थी। दक्षिण भारत में पांड्य राजाओं के शासन में तमिल भाषा का 'संगम साहित्य' भी ईसा पूर्व ही लिखा गया था। प्राचीन काल में दुनिया जब पढ़ाई-लिखाई में अनभिज्ञ थी, तब भारतवर्ष में शिक्षा की उत्तम प्रणाली 'गुरुकुल' चला करते थे। केरल का 'थिरूनावय मंदिर' प्राचीन काल से वैदिक शिक्षा व वेदों के अध्ययन के लिए विख्यात रहा था।

ऋग्वेद के आधार पर ही ज्ञान के अथाह स्रोत यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद की रचना हुई थी। वेदों को सही ढंग से समझने के लिए हमारे मनीषियों ने 'वेदांगों' व 'उपवेदों' को लिपिबद्ध किया था। वेदों के ज्ञान को सरल बनाने के लिए 'शंकराचार्य' ने अपने बाल्यकाल में ही 'विवेकचूड़ामणि' ग्रंथ लिखा था। वेद व उपनिषद के अध्ययन के बाद हमारे आचार्यों ने अपने 'दर्शन' की रचना की थी। इसीलिए वेद सनातन संस्कृति के सर्वोत्तम व सर्वोपरि ग्रंथ हैं। हालांकि वेदों की 28 हजार पांडुलिपियों को पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च सेटंर' में सहेज कर रखा गया है जिनमें से 30 महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियों को यूनेस्को ने अपनी विरासत सूची में शामिल किया है। 'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने वर्ष 2007 में वेदों को संसार के स्मृति रजिस्टर में शामिल करने के लिए विशेष प्रस्ताव पारित किया था। यूनेस्को ने ही वैदिक शिक्षा प्रणाली को अद्वितीय विरासत के रूप में मान्यता दी है। जर्मन विद्वान 'फ्रैडरिक मैक्समूलर' ने ग्रामोफोन में अपनी आवाज की रिकॉर्डिंग में 'वेदमंत्र' का उच्चारण किया था। 'महर्षि वाल्मीकि' द्वारा रचित 'रामायण' व महर्षि 'वेद व्यास' द्वारा रचित महाकाव्य 'महाभारत' तथा वेदों का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। महाभारत ग्रंथ का अध्ययन करके दुनिया के कई देशों की सेनाओं ने युद्धनीति के तरीके ईजाद किए। युद्धनीति व रणनीति पर कई किताबें लिख डालीं। 'चार्ल्स विलकिंस' ने सन् 1785 में कर्म व धर्म का सच्चा बोध कराने वाली 'श्रीमद्भगवद गीता' का अंग्रेजी में अनुवाद करके गीता के पवित्र ज्ञान को पश्चिमी देशों में पहुंचा दिया।
'विलियम जोंस' ने सन् 1776 में 'मनुस्मृति' तथा 1789 में कालीदास द्वारा रचित विश्वविख्यात नाटक 'अभिज्ञान शंकुतलम्' का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। 'आरटीएच ग्रिफिथ' ने बनारस विश्वविद्यालय से संस्कृत में शिक्षा हासिल की तथा सन् 1870 में रामायण का अंग्रेजी अनुवाद किया। दारा शिकोह ने 50 से अधिक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवा कर इसे 'सीर ए अकबर' (सबसे बड़ा रहस्य) का नाम देकर खाड़ी देशों में पहंुचा दिया था। योग के जनक 'पंतजलि' ऋषि द्वारा रचित 84 अध्यायों के ग्रंथ 'महाभाष्य व योगसूत्र', कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र', 'विदुर नीति', भृगुसंहिता व 'पाणिनी' द्वारा रचित विश्व की सबसे प्राचीन व्याकरण तथा भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। परिणय सूत्र के पवित्र बंधन 'विवाह संस्कार' की शास्त्रों के अनुसार शुरुआत भी भारतभूमि पर ही हुई थी। सनातन संस्कृति के इस संस्कार के पुरोधा महर्षि 'श्वेतकेतु' थे। आधुनिक विज्ञान के कई सूत्र व सिद्धांत हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व वेदों व अन्य ग्रंथों में अंकित कर दिए थे। गुरुत्वाकर्षण शक्ति से लेकर पृथ्वी का भार तक वेदों में दर्ज है। वेदों में पृथ्वी को धरती माता कहा गया है। हाल ही में अमरीका की 'यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर' ने पृथ्वी पर शोध के बाद 'अथर्ववेद' में दर्ज उस पंक्ति को स्वीकार किया है जिसमें पृथ्वी को एक 'जीवित वस्तु' बताया गया है। कुछ वर्ष पहले अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी 'नासा' ने महर्षि 'भारद्वाज' द्वारा रचित 'यंत्र सर्वस्व' ग्रंथ के भाग 'विमान शास्त्र' का अध्ययन किया था। अणु वैज्ञानिक 'जॉन डॉल्टन' ने 'महर्षि कणाद' को ही 'परमाणु ंिसद्धांत' का जनक माना था। महर्षि कणाद के ग्रंथ 'वैशेषिक दर्शन' तथा 'बिजली सूत्र' के जनक 'अगस्त्य मुनि' के 'अगस्त्य संहिता' ग्रंथ पर कई देशों के वैज्ञानिक शोध कर चुके हैं। हमारे ऋषि-मुनियों को हजारों वर्ष पूर्व 9 ग्रहों, 12 राशियों व 27 नक्षत्रों के बारे में गहन जानकारी थी। 4 वेद, 4 उपवेद, 18 पुराण, 18 उपपुराण, 6 शास्त्र, 6 दर्शन, 60 नीतियां व 108 उपनिषद के अलावा वेदों का नेत्र ज्योतिष, खगोल तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों की जानकारी से भरपूर लिखित भारतीय साहित्य का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
सम्पूर्ण विश्व भारतीय साहित्य से परिचित होकर हमारे ऋषियों, दार्शनिकों व आचार्यों के विज्ञान पर आधारित ज्ञान व महानता का लोहा मान चुका है। भारत का वैदिक ज्ञान सदियों पहले कई देशों में पहुंच गया था। इसीलिए भारत को अतीत में 'जगत गुरू' की महान् पदवी हासिल थी। लेकिन हैरत होती है जब भारत का उच्च शिक्षित व बुद्धिजीवी वर्ग भी विदेशी लेखकों के महिमामंडन में शामिल हो जाता है। इनसान का चरित्र बदलने के साथ सामाजिक परिवेश में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता हमारे धार्मिक ग्रंथों में समाहित ज्ञान व संस्कारों में मौजूद है। पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम व नैतिकता के संदेशवाहक, वास्तविक ज्ञान की आधारशिला इन ग्रंथों से परिचित होने के लिए इन्हें शैक्षिक अध्ययन में शामिल करना होगा। बहरहाल पुस्तक दिवस पर 'यूनेस्को' को समझना होगा कि दुनिया का सर्वप्रथम ग्रंथ 'ऋग्वेद' है। विश्व में सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत व श्रीमद्भगवद गीता से बड़ी कोई पुस्तक नहीं हुई तथा महर्षि वाल्मीकि, वेद व्यास, पाणिनी, अथर्वा ऋषि, महात्मा विदुर, आचार्य चाणक्य, गोस्वामी तुलसीदास व कालीदास से बड़ा कोई लेखक नहीं हुआ। अपने प्राचीन साहित्य व लेखकों पर हर भारतवासी को गर्व होना चाहिए।
प्रताप सिंह पटियाल
लेखक बिलासपुर से हैं


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