सम्पादकीय

भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते का बहाल होना दोनों के लिए ही फायदे का सौदा

Rani Sahu
13 May 2022 4:50 PM GMT
भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते का बहाल होना दोनों के लिए ही फायदे का सौदा
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अचानक होने वाला बदलाव अक्सर जड़ अवस्था में गति ला देता है

के वी रमेश |

अचानक होने वाला बदलाव अक्सर जड़ अवस्था में गति ला देता है. पाकिस्तान की सत्ता से इमरान खान (Imran Khan) को अनौपचारिक रूप से बाहर किए जाने से-जिनकी खीझने और बिना सोच समझे प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाली आत्मकेन्द्रित राजनीति ने भारत-पाकिस्तान रिश्ते (India-Pakistan Relations) को ठंडे बस्ते में डाल दिया था-लगता है सावधानी के साथ ही सही लेकिन भारत के पश्चिमी पड़ोसी से रिश्ते सामान्य करने की प्रक्रिया को नई गति मिल सकती है. चीन को छोड़ दें तो इमरान खान के करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल में पाकिस्तान के अपने सभी पड़ोसियों के साथ रिश्ते खराब ही रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में इमरान के ओछे बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि छोटे आदमी ने बड़ा दफ्तर कब्जा कर लिया है, ने भारत के साथ भविष्य में मेल-मिलाप की संभावना को भी खत्म कर दिया. हालांकि बाद में उन्होंने सफाई देने की कोशिश की थी कि उनका ट्वीट मोदी के बारे में नहीं था, लेकिन तब तक नुकसान तो हो चुका था. इसके बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आई उनकी अपरिपक्व प्रतिक्रिया, जिसमें उन्होंने भारत से कारोबारी रिश्तों को स्थगित कर दिया था, का नुकसान भी उनके देश को ही झेलना पड़ा. यह तो वही बात हो गई जैसे चेहरे से चिढ़ निकालने के लिए कोई अपनी नाक ही काट बैठे.
भारत-चीन के बीच रिश्ते मैत्रीपूर्ण नहीं होने के बाद भी बढ़ा व्यापार
बहरहाल, व्यापार सदियों से दो देशों के बीच संबंधों का मूल रहा है. इसी से दो देशों के बीच राजनीतिक दिशा भी तय होती है. हालांकि भारत-चीन के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं होने के बावजूद व्यापार हर साल नई ऊचाइयों को छू रहा है. पहली बार भारत ने इस साल चार सौ अरब डॉलर के निर्यात का आंकड़ा छू लिया है. वैश्विक रूप से दो बड़े प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद अमेरिका और चीन ने कभी एक-दूसरे से व्यापार बंद नहीं किया. इस साल उनके बीच छह सौ बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ. लेकिन पाकिस्तान के साथ व्यापार के मामले में यह अपवाद है.
दोनों देशों में एक जैसी मांग
हालांकि, भारत-पाकिस्तान एक-दूसरे से साढ़े तीन युद्ध लड़ चुके हैं, लेकिन जब दो पड़ोसियों का खानपान, रहन-सहन एक जैसे हों तो इनके बीच कारोबारी रिश्ते में भारत-चीन का गणित बाधा नहीं बनना चाहिए. वैसे भी दोनों देशों के बाजार के बीच की दूरी कम है, परिवहन लागत भी अपेक्षाकृत कम आती है, दोनों तरफ मांग और आपूर्ति का समीकरण एक जैसा है. इन सब पहलुओं को देखते हुए व्यापारिक समझौतों को ज्यादा लंबा खींचने की जरूरत नहीं है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच आपसी व्यापार में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद बाद की घटनाओं ने आगे की राह को बाधित किया.
हालांकि अक्सर दोनों देशों में कुछ लोग आपसी व्यापार के फायदों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. भारत में ही एक तबका तर्क देता है कि पाकिस्तान जैसे देश से कारोबारी संबंध रखने में भारत का फायदा कम है. लेकिन यह सच नहीं है. विश्व बैंक के मुताबिक दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार क्षमता 37 बिलियन डॉलर है, जो कम नहीं है.
पाकिस्तान को दुग्ध उत्पादों को बेच सकता है भारत
इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि अपनी ताकत को बनाए रखने के लिए देशों को हमेशा नए बाजार तलाशते रहने चाहिए और मौजूदा व्यापार को विस्तार देते रहना चाहिए. भारत के पास विशाल कृषि और औद्योगिक उत्पाद हैं, जिसका लाभ इसके उत्पादकों को मिलेगा. भारत दुनिया का प्रमुख दुग्ध उत्पादक देश है और दूध की कमी वाले पाकिस्तान में अतिरिक्त दुग्ध और इससे जुड़े उत्पाद भेज सकता है. पाकिस्तान जो उद्योग के मामले में पीछे है और जिसके पास उत्पादन की सीमित क्षमता है, वहां भारत के कम कीमत वाले वैश्विक मानकों को पूरा करने वाले उत्पादों का स्वागत होना चाहिए. पाकिस्तान में भारतीय सामानों के आयात से वहां की अर्थव्यवस्था कमजोर होगी, यह डर भी सही नहीं है.
वास्तव में पाकिस्तानी उपभोक्ताओं को भारत की तुलना में एक कार के लिए दोगुनी कीमत चुकानी पड़ती है. अगर भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं खोला होता तो आज यहां के लोग फिएट और एम्बेस्डर कार से ही चल रहे होते. उनके पास आज सैकड़ों विकल्प नहीं होते. पाकिस्तान इंडस्ट्री को भी इस तरह की प्रतिस्पर्धा में कदम रखने की जरूरत है. यह डर भी मिथ्या है कि सब्सिडी वाले भारतीय कृषि उत्पादों के कारण पाकिस्तान के कृषि को नुकसान पहुंचेगा. वास्तव में उपजाऊ मिट्टी होने के बावजूद अगर पाकिस्तान कृषि के मामले में पीछे है तो इसकी वजह है अवैज्ञानिक फसलों का विकल्प और अक्षम प्रयास.
भारत-पाकिस्तान व्यापार के हैं बहुत फायदे
वास्तव में भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान को कृषि के मामले में तकनीक, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और गुणवत्ता आदि की जानकारी दे सकता है, जिससे वहां की कृषि को काफी बढ़ावा मिल सकता है. वुड्रो विल्सन सेंटर द्वारा 2013 में कराया गया अध्ययन पाकिस्तान-भारत ट्रेड- वाट नीड्स टू बी डन? व्हॉट डज इट मैटर? दोनों देशों के बीच व्यापार की आवश्यकता पर जोर देता है. इस महत्पूर्ण दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि किस तरह दोनों देशों के बीच कारोबार राजनीतिक कलह का शिकार रहा है. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के पूर्व वाणिज्य सचिव जफर महमूद अपने एक आलेख में याद करते हैं, जब 1948-1949 में पाकिस्तान का 56 प्रतिशत निर्यात भारत को होता था. 1947-48 के युद्ध के बावजूद भारत पाकिस्तान का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी था. लेकिन 1965 और 1971 के युद्ध ने व्यापार को प्रभावित किया.
दोनों देशों के बीच व्यापार में आ रही कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद विशेषज्ञ इसके फायदों पर जोर देते हैं. भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी दोनों देशों के बीच व्यापार पर लिखते हैं, भारत-पाकिस्तान के बीच तीसरे देशों के माध्यम से चल रहे व्यापार का नुकसान दोनों देशों को ही उठाना पड़ता है. एक बार जब यह व्यापार दोनों देशों के बीच सीधे हो जाता तो इसका साझा लाभ देखने को मिलता. अन्य देशों के रूट से व्यापार में घाटा उठाना पड़ता है.
विरमानी लिखते हैं, अधिकांश भारतीय उत्पाद मसलन ज्वैलरी, कॉस्मेटिक्स, दवाएं, रोजमर्रा के इस्तेमाल होने वाली चीजों से लेकर सुपारी और पत्तियों तक पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय है. लेकिन आधिकारिक व्यापार निलंबित होने के कारण इनमें से ज्यादातार भारतीय उत्पाद नए लेबल के साथ खाड़ी देशों के माध्यम से भेजे जाते हैं. इससे इनका खर्चा भी बढ़ जाता है. इस तरह देखें तो सीधा कारोबार दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है.
इमरान खान की क्रिकेट के अलावा किसी अन्य विषय के ज्ञान पर आलोचना की जाती रही है, लेकिन अब जब पाकिस्तान में नई हुकूमत आई है तो कहा जा सकता है कि भारत नए सिरे से उससे डील कर सकता है. वैसे भी पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके बड़े भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों का हिमायती माना जाता है. शहबाज और उनके विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के कश्मीर राग को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. पाकिस्तानी राजनेताओं के लिए के शब्द अनिवार्य है, लेकिन नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में ट्रेड मिनिस्टर की नियुक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है.
Rani Sahu

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