सम्पादकीय

सर्वधर्म समभाव

Rani Sahu
21 July 2022 6:53 PM GMT
सर्वधर्म समभाव
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भारत की आजादी के संघर्ष के दिनों में महात्मा गांधी को महसूस होने लगा था कि यदि देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया तो वह सात लाख गांवों में ‘ग्राम स्वराज्य’ का काम पूरा करेंगे

By: divyahimachal

भारत की आजादी के संघर्ष के दिनों में महात्मा गांधी को महसूस होने लगा था कि यदि देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया तो वह सात लाख गांवों में 'ग्राम स्वराज्य' का काम पूरा करेंगे। उसके लिए उन्होंने देशवासियों के समक्ष अ_ारह रचनात्मक कार्य प्रस्तुत किए थे जिनमें मुख्य रूप से सर्वधर्म समभाव, हरिजन सेवा और बुनियादी शिक्षा को प्रमुखता दी गई थी। आजादी के आंदोलन में रात-दिन संघर्ष कर रहे नेताओं को वे कहते रहते थे कि अपने अंदर की हिंसा त्यागकर समाज और देश में अहिंसा की ताकत से प्रत्येक जाति व धर्म के लोगों का मन जीतकर गुलामी का प्रतिकार करें। जब देश आजाद हुआ तो हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारा स्थापित करने के लिए गांधी जी ने स्वयं ही निर्भीकता से सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वालों के बीच जाकर समझाने का काम किया था।
दुनिया के लोगों ने भी गांधी के सत्य, अहिंसा, शांति, करुणा, सर्वधर्म समभाव के संदेश को सिर-माथे पर रखकर प्रेरणा ली है। बापू को दुनिया में प्रसिद्धि भी इसीलिए मिली कि वे हर हिंसा का जवाब अहिंसा से देते थे। इसके बावजूद यह इंकार नहीं किया जा सकता कि हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली ऐसी ताकतें हमेशा मौजूद रही हैं जिन्हें गांधी के रास्ते पर चलना पसंद नहीं है। हिंसा का प्रभाव कम न होने से सामाजिक सद्भावना उजड़ती रहती है। जब तक गांव के लोग मोती की तरह एक ही माला में पिरोकर रहने लग जाते हैं तो वहीं कुछ दिनों बाद फिर कई कारणों से बिखरती भी दिखाई देती है। नफरती हिंसा के नाम पर बयान देने वाले लोग इसके लिए दोषी हैं। हर रोज कितना भी गांधी, अंबेडकर का नाम ले लो, लेकिन उनके विचारों के अनुरूप समाज बनाने की शक्ति कमजोर होती जा रही है, जिससे अलग-अलग धर्मों के बीच समरसता बनाने वाली रस्सी भी टूट कर बिखरती रहती है। भारत में दूसरे धर्मों के मुकाबले हिंदू धर्म के लोगों की संख्या कहीं अधिक है। हिंदुओं के बीच चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शिल्पकार जाति के लोग हैं जिनके बीच छुआछूत कम नहीं हो रही है। हिंदू समाज में उच्च और निम्न वर्ग की मानसिकता के कारण असमानता बनी हुई है जिसमें जातिवादी समाज के बीज बहुत गहरे तक बो दिए गए हैं। समाज की इस सच्चाई को देखकर आजादी के बाद गांधी विचार से जुड़े सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने 50-60 के दशक में उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के शिल्पकार, जो मंदिर में नहीं जा सकते थे, उन्हें सबसे पहले चार धाम के मंदिरों में प्रवेश करवाया गया था।


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