सम्पादकीय

संसाधनों की हिफाजत

Triveni
21 April 2021 12:45 AM GMT
संसाधनों की हिफाजत
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एक तरफ, जब देश में कोविड-19 के कारण रोजाना 1,500 से अधिक लोगों की जान जाने लगी है;

एक तरफ, जब देश में कोविड-19 के कारण रोजाना 1,500 से अधिक लोगों की जान जाने लगी है; कई राज्यों से टीके के अभाव की शिकायतें सुनने को मिल रही हैं, तब यह उद्घाटन सचमुच हतप्रभ कर देने वाला है कि 11 अप्रैल तक देश में टीके की 44.5 लाख से अधिक खुराकें बरबाद हो गईं। एक आरटीआई के जरिए यह खुलासा हुआ है कि उस दिन तक तकरीबन 23 फीसदी खुराक बेकार हो गई। हैरत की बात है कि ऐसा उन राज्यों में सर्वाधिक हुआ, जो इस वक्त महामारी से हलकान नजर आ रहे हैं। राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, हरियाणा जैसे प्रदेशों के नाम इस सूची में ऊपर हैं। यह सूचना हमारी विशाल आबादी के लिहाज से भी काफी चिंताजनक है। हम अभी तक अपनी आबादी के एक प्रतिशत से कुछ ही अधिक लोगों का पूर्ण टीकाकरण कर सके हैं, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश क्रमश: 25 व 15 फीसदी से आगे बढ़ चले हैं।

इसमें कोई दोराय नहीं कि किसी भी उत्पाद की वितरण-प्रणाली में कतिपय कमियों के कारण कुछ हद तक नुकसान की आशंका रहती है। अमेरिका में भी पहले चरण के टीकाकरण अभियान में नुकसान हुए थे, लेकिन हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की कुल आबादी हमारी जनसंख्या की एक चौथाई के करीब है। हमारे लिए हानि की यह मात्रा इसलिए ज्यादा चुभने वाली है कि हमें महामारी से जंग में लंबी दूरी तय करनी है। अपने संसाधनों का इस्तेमाल हमें काफी किफायत से करने की जरूरत है। तब तो और, जब देश के कई अस्पतालों से ऑक्सीजन न मिलने के कारण कोविड मरीजों के दम तोड़ने की खबर सुर्खियों में हों। यहां तक कि हाईकोर्ट को कहना पड़ रहा है कि 'उद्योग ऑक्सीजन का इंतजार कर सकते हैं, पर कोविड मरीज नहीं।' केंद्र सरकार ने उचित ही नौ औद्योगिक क्षेत्रों में ऑक्सीजन-आपूर्ति की सीमा तय कर शेष को चिकित्सा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है। कोविड-19 से संघर्ष में इस वक्त हम जिस मोड़ पर खडे़ हैं, उसमें अब किसी कोताही के लिए कोई जगह नहीं है, बल्कि वह जनता ही नहीं, पूरी मानवता के प्रति आपराधिक लापरवाही कहलाएगी। देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत से पहले बाकायदा कई अभ्यास किए गए थे, इसका प्रोटोकॉल तय हुआ था, उसके बावजूद यदि यह स्थिति है, तो हमें अपने निगरानी तंत्र पर गौर करने और बगैर वक्त गंवाए उसे दुरुस्त करने की दरकार है। राज्य सरकारों को भी अपनी कार्यशैली पर ध्यान देने की जरूरत है। आखिर अनेक राज्यों, मसलन केरल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल, मिजोरम, गोवा ने नजीर पेश की ही है। इन राज्यों में कोर्ई खुराक बरबाद नहीं हुई। केंद्र-राज्यों में तकरार और गिले-शिकवे संघीय लोकतंत्र का अनिवार्य हिस्सा हैं, मगर कुछ विषय इससे परे होते हैं और इसके लिए बड़प्पन की मांग सभी पक्षों से की जाती है। देश के नागरिक इस समय तकलीफ में हैं, तो ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए, जिससे उनकी पीड़ा दोहरी हो जाए। लोग गम जज्ब कर लेते हैं, अगर उन्हें यह दिखता है कि मददगारों ने अपने तईं ईमानदार कोशिश की थी। इसलिए जीवन रक्षक संसाधनों की बर्बादी, कालाबाजारी को केंद्र और राज्यों को हर हाल में रोकना ही होगा।


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