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इस समय जब देश का विदेश व्यापार घाटा बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है, तब भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल के द्वारा 6 फीसदी आकस्मिक निधि (सीएफ) सुरक्षित सुनिश्चित रखते हुए वर्ष 2022-23 के लिए केंद्र सरकार को 87416 करोड़ रुपए का लाभांश हस्तांतरण लाभप्रद दिखाई दे रहा है। इससे इस वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय चुनौतियों का मुकाबला करते हुए राजकोष को मजबूती दी जा सकेगी और विकास को बढ़ाया जा सकेगा। गौरतलब है कि यह लाभांश चालू वित्त वर्ष में केंद्र के गैर कर राजस्व में शामिल होगा। ज्ञातव्य है कि चालू वित्त वर्ष के बजट में रिजर्व बैंक, सरकारी बैंकों व विभिन्न वित्तीय संस्थानों से 48000 करोड़ रुपये लाभांश मिलने का अनुमान लगाया गया था, जबकि इस वर्ष अब सिर्फ रिजर्व बैंक के द्वारा सरकार को दिया जा रहा लाभांश सरकार के लक्ष्य से 82 प्रतिशत ज्यादा है। सरकार उन वित्तीय संस्थाओं से लाभांश प्राप्त करती है जिसमें सरकार की हिस्सेदारी होती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022-23 के लिए हस्तांतरित की जाने वाली लाभांश राशि वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में करीब तिगुनी है। आरबीआई ने केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा लाभांश वित्त वर्ष 2018-19 में दिया था, जिसका आकार 175988 करोड़ रुपये था। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 में 57128 करोड़ रुपये तथा वित्त वर्ष 2020-21 में 99122 करोड़ रुपये लाभांश के रूप में केंद्र सकार को दिए थे। खास बात यह है कि इस वित्तीय वर्ष में रिजर्व बैंक के लाभांश की वजह से केंद्र का राजकोषीय घाटा 16.99 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.6 प्रतिशत रह जाएगा।
सरकार ने राजकोषीय घाटा 17.87 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। राजकोषीय हिसाब से लाभांश से मिला अतिरिक्त राजस्व जीडीपी का करीब 0.2 प्रतिशत है। इस वर्ष रिजर्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार को ज्यादा लाभांश हस्तांतरित करने की प्रमुख वजह विदेशी मुद्रा की बिक्री से हुई आमदनी है। पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद डॉलर की कीमत ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचने के बाद रुपये का उतार-चढ़ाव रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने करीब 206 अरब डॉलर की बिक्री की थी, जबकि रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2021-22 में 96.7 अरब डॉलर की बिक्री की थी। निश्चित रूप से रिजर्व बैंक का अधिक लाभांश राजकोषीय स्तर को उपयुक्त बनाए रखने के लिए लाभप्रद होगा। स्थिति यह है कि इस वित्त वर्ष में वैश्विक आर्थिक मुश्किलों के कारण बजट में लगाए गए राजस्व प्राप्ति के अनुमान सही साबित न हों। कर राजस्व कम आए। वैश्विक मंदी की स्थिति में अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने की आशंका है। इस बार भारत के पश्चिमी देशों के कारोबारी साझेदार देशों में मंदी के कारण व्यापार और कर राजस्व पर असर पड़ेगा। इस वर्ष मौसम की स्थिति और मॉनसून का प्रतिकूल असर भी ग्रामीण व्यय में वृद्धि कर सकता है। यद्यपि सरकार ने इस वर्ष के बजट में विनिवेश से 51000 करोड़ रुपए प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन अब विनिवेश की कार्रवाई को लेकर भी चिंताएं हैं और विनिवेश बजट अनुमान से कम रह सकता है।
उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी एक बार फिर इस वर्ष के बजट अनुमान से अधिक हो सकती है। चूंकि इस वर्ष कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में सरकार विनिवेश और निजीकरण से भी परहेज कर सकती है। इसके अलावा इस वर्ष सरकार को ब्याज के मद में अधिक भुगतान करना होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस (फियो) के कार्यक्रम में यह बात एक मत रेखांकित हुई है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में तेजी से आने वाला समय देश से निर्यात और व्यापार संतुलन के लिए काफी चुनौतीपूर्ण व कठिन है। चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 की शुरुआत से ही अप्रैल और मई महीनों में निर्यात घटने व व्यापार घाटा बढऩे का परिदृश्य दिखाई देने लगा है। पिछले वर्ष 2022-23 में भारत का कुल व्यापार घाटा इससे पिछले वर्ष के 83 अरब डॉलर से बढक़र 122 अरब डॉलर हो गया है। अब इस वर्ष व्यापार घाटे के और बढऩे की आशंका है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चालू वित्त वर्ष 2023-24 उत्पाद निर्यात के लिहाज से बेहतर नहीं रहने वाला है। भारत अपने कुल उत्पाद निर्यात का सबसे अधिक करीब 17.50 फीसदी निर्यात अमेरिका को करता है, जो मंदी की चपेट में आता दिख रहा है। अमेरिका में महंगाई अपने चरम पर है और इसे रोकने के लिए अमेरिकी फेडरल बैंक लगातार ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है। यूरोप की आर्थिक दशा भी ठीक नहीं चल रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप के अधिकतर देश गैस व खाद्य संकट से जूझ रहे हैं जिससे वहां महंगाई बढऩे के साथ औद्योगिक उत्पादन भी कम हो गया है। संभवतया यही कारण है कि वाणिज्य विभाग की तरफ से चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कोई निर्यात लक्ष्य अब तक तय नहीं किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में उत्पाद व सेवा निर्यात जिस ऊंचाई पर रहा है, इस बार निर्यात का उस मंजिल तक भी पहुंचना आसान नहीं दिख रहा है। पिछले दिनों प्रमुख वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में चुनौतीपूर्ण वैश्विक वित्तीय स्थिति के बावजूद भारत वैश्विक आर्थिक झटकों को इसलिए सरलतापूर्वक झेल जाएगा, क्योंकि भारत का चालू खाते के घाटे (सीएडी) में सुधार हुआ है। चालू खाते का घाटा कम अवधि की प्रमुख विदेशी देनदारी के रूप में पहचाना जाता है। इससे विनिमय दर और विदेशी निवेशकों की धारणा प्रभावित होती है। इन्हें देखते हुए सरकार कुछ विशेष क्षेत्रों में व्यय बढ़ा सकती है। 9 मई को वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की रेटिंग बीबीबी. बरकरार रखी है।
दीर्घ अवधि के ऋण पर भारत का परिदृश्य स्थिर रखा है। रेटिंग निर्धारित करते हुए फिच ने कहा कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में सरकार के सहयोग से कंपनियों और बैंकों के बहीखाते में काफी सुधार हुआ है और आधारभूत संरचना के विकास पर भी अधिक ध्यान दिया जा रहा है। निजी क्षेत्र भी बड़े स्तर पर निवेश करने की तैयारी कर रहा है। फिच ने कहा कि बढ़ी महंगाई, ऊंची ब्याज दरों और वैश्विक स्तर पर मांग में कमी की बड़ी चुनौतियों के बीच भारत की आंतरिक वित्तीय स्थिति थोड़ी कमजोर जरूर है और प्रति व्यक्ति आय और विश्व बैंक के मानकों पर भी भारत थोड़ा फिसला है। ऐसे में रिजर्व बैंक से केंद्र को मिला लाभांश देश की वैश्विक क्रेडिट रेटिंग को सुधारने में मददगार होगा। चूंकि देश ने वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है, इस लक्ष्य को पाने के लिए आगामी 24 वर्षों तक लगातार करीब 7 से 8 फीसदी की दर से बढऩे के लिए राजकोषीय स्तर को संतोषप्रद बनाए रखना होगा। ऐसे में हम उम्मीद करें कि रिजर्व बैंक के द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए दिया गया लाभांश जहां एक ओर वैश्विक मंदी की चिंताओं के बीच देश के लिए राजकोषीय चुनौतियों के समाधान में अहम भूमिका निभाएगा, वहीं दूसरी ओर भारत को विकसित देश बनाने की डगर पर आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा।
डा. जयंती लाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal
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