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कुछ पश्चिमी शक्तियां अफगानिस्तान में नयी तालिबान सरकार से सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कर रही हैं
कुछ पश्चिमी शक्तियां अफगानिस्तान में नयी तालिबान सरकार से सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कर रही हैं. उन्हें लगता है कि पाकिस्तान उपयोगी मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है. इसके पीछे बड़ी वजह है कि पाकिस्तान पड़ोसी होने के साथ-साथ अफगानिस्तान के साथ सांस्कृतिक, जातीय और धार्मिक संबंध रखता है. लेकिन, जिहादी आतंकवाद के प्रति जिस तरह की पाकिस्तानी नीतियां रही हैं, उसे लेकर आशंकाएं कम नहीं हैं. समय-समय पर उसकी आतंकपरस्त सोच और कारनामे उजागर भी होते रहे हैं.
वह भारत विरोधी एजेंडे के लिए कुख्यात हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र में इस्लामाबाद के दूत मुनीर अकरम ने कश्मीर राग अलापते हुए पाकिस्तान-परस्त अलगाववादी सैयद अली शाह जिलानी का जिक्र किया. भारत विरोध के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्लेटफाॅर्म का इस्तेमाल करने पर भारत ने कड़ी फटकार लगायी है. यूएन में भारत के स्थायी मिशन की प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने पाकिस्तान के आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह भीतर और सीमा पार हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देने का दोषी है.
उन्होंने कहा कि इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि आतंकवाद असहिष्णुता तथा हिंसा की अभिव्यक्ति है और यह सभी धर्मों व संस्कृतियों का विरोधी है. दुनिया को आतंकवादी सोच से चिंतित होना चाहिए, जो अपने कारनामे को सही ठहराने के लिए धर्म का सहारा लेते हैं. आतंक के मसले पर पाकिस्तान का दोहरा चरित्र जगजाहिर है. साल 2001 में आतंक के खिलाफ लड़ाई में सहयोग नहीं करने पर पाकिस्तान को अमेरिका ने बम हमले की धमकी दी थी. अमेरिका को उम्मीद थी कि वह तालिबान को समर्थन देना बंद कर देगा.
लेकिन, आतंक को वैचारिक बुनियाद बना चुका पाकिस्तान कहां माननेवाला. आतंक के खिलाफ लड़ाई में अहम सहयोगी बनने का दावा करनेवाले पाकिस्तान के सैन्य ठिकाने से मात्र 100 मीटर की दूरी पर ओसामा बिन लादेन पाया गया और अमेरिकी फौजों ने उसे मार गिराया. पाकिस्तान पर झूठ और छल करने का आरोप लगाते हुए ट्रंप ने कहा था कि 33 बिलियन डॉलर की अमेरिकी मदद का उसने सिर्फ दुरुपयोग किया.
कुछ महीने पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि इतिहास में यह दर्ज होगा कि पाकिस्तान ने अमेरिकी धन से यूएसएसआर को हराया, फिर अमेरिकी धन से अमेरिका को ही हराने में सफल रहा. गुल के शागिर्द इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं, जो काबुल पर ताबिलान के कब्जे के बाद उसके पक्ष में बयान भी दे चुके हैं.
बीते दिनों काबुल हवाईअड्डे पर आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने वारदात के जिम्मेदारों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है. लेकिन, अमेरिका अगर आतंक के खिलाफ गंभीर है, तो पाकिस्तानी सेना, आइएसआइ पर कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान आतंकवाद का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है. अमेरिका और दुनिया को इस वास्तविकता से मुंह मोड़ने की बजाय सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए.
क्रेडिट बाय प्रभात खबर
Rani Sahu
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