सम्पादकीय

मन्त्रालयों का पुनर्संयोजन

Triveni
10 July 2021 2:30 AM GMT
मन्त्रालयों का पुनर्संयोजन
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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन्त्रिमंडल का विशद विस्तार करने के साथ ही जिस प्रकार विभागों का वितरण व पुनर्संयोजन किया है

आदित्य चोपड़ा| प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन्त्रिमंडल का विशद विस्तार करने के साथ ही जिस प्रकार विभागों का वितरण व पुनर्संयोजन किया है उससे सरकार के काम करने की दक्षता में तीव्रता व सुगमता आनी चाहिए और विभिन्न विभागीय परियोजनाओं में सामंजस्य पैदा होना चाहिए। यह सुनने में अटपटा लग सकता है कि शहरी विकास विभाग के साथ पेट्रोलियम मन्त्रालय को जोड़ दिया गया है और इनका मन्त्री श्री हरदीप सिंह पुरी को बना दिया गया है। शहरी विकास का पेट्रोलियम मन्त्रालय से प्रत्यक्ष लेना-देना इस मामले में है कि पेट्रोलियम उत्पादों की खपत का शहरी विकास के साथ समानुपाती सम्बन्ध है। इसके साथ ही भविष्य को देखते हुए सबसे पहले हमें शहरों में ही प्रदूषण को नियन्त्रित करते हुए वाहनों के लिए वैकल्पिक ईंधन की व्यवस्था करनी पड़ेगी। यह वैकल्पिक ईंधन बिजली या बैटरी से चलने वाले वाहन होंगे। वर्तमान में पेट्रोल व डीजल के दाम जिस तरह आसमान छू रहे हैं उसे देखते हुए भी हमें वैकल्पिक ईंधन की तरफ जाने में जल्दी दिखानी होगी। मगर इस बात का ध्यान श्री पुरी को रखना होगा कि वह इस मामले में बिजली मन्त्रालय के साथ इस प्रकार सामंजस्य बांधे कि उद्योग मन्त्रालय की भी इसमें बराबर की शिरकत रहे। इसके साथ ही रेल मन्त्रालय के साथ सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय जोड़ा गया है। इसका मन्तव्य बहुत स्पष्ट है कि भारत को इंटरनेट के तन्त्र से जोड़ने के लिए रेलवे नेटवर्क के सहारे की जरूरत है।

देश की महत्वाकांक्षी 'भारत नेट' परियोजना पर कार्य उस गति से नहीं हो पाया है जिसकी अपेक्षा थी। इसकी जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए कि इंटरनेट सुविधा का विस्तार करने के लिए रेलवे के नेटवर्क के सहारे की जरूरत है क्योंकि आप्टीकल फाइबर को बिछाने का काम रेलवे की पटरियों के समानान्तर ही हो रहा है। इसके साथ सूचना प्रौद्योगिकी की महत्ता जिस तरह देश में बढ़ रही है उसे देखते हुए इस मन्त्रालय का कार्यभार ऐसे तकनीकी ज्ञान वाले व्यक्ति को दिया जाना बेहतर होगा जिसका तकनीकी ज्ञान मौजूदा दौर की वैज्ञानिक प्रगति से हो। श्री अश्विनी वैष्णव की पृष्ठभूमि देख कर ही उन्हें रेलवे के साथ सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्री भी बनाया गया है। मगर प्रधानमन्त्री ने स्वास्थ्य मन्त्रालय के साथ रसायन मन्त्रालय को भी मिला कर उस दूरदृष्टि का परिचय दिया है जिसकी भविष्य को जरूरत है। कोरोना संक्रमण के संकट दौर में जिस तरह स्वास्थ्य व रसायन मन्त्रालय के बीच किसी प्रकार का सामंजस्य नहीं रहा उसका नतीजा देशवासियों को कोरोना से निपटने के लिए जरूरी दवाओं की कमी के रूप में देखना पड़ा। औषधि उत्पादन से सम्बन्धित कार्य रसायन व उर्वरक मन्त्रालय के अन्तर्गत ही आता है। अर्थात दवाओं के उत्पादन के लिए यही मन्त्रालय लाइसेंस देता है और इनकी कीमतों के निर्धारण में भी इसकी भूमिका होती है। जबकि स्वास्थ्य मन्त्रालय चिकित्सा सम्बन्धी मामलों को देखता है। चिकित्सा, स्वास्थ्य व दवा इन तीनों को एक ही छतरी के नीचे लाकर इस क्षेत्र में कार्यक्षमता को बढ़ाने का इन्तजाम बांधा गया है।
स्वास्थ्य व रसायन मन्त्रालय का मुखिया मनसुख भाई मांडविया को बनाया गया है जो पेशे से बेशक डाक्टर नहीं हैं मगर उनका कार्य जन स्वास्थ्य को देखने का है जिसके लिए स्वयं चिकित्सक होना जरूरी नहीं है। इस देश ने स्व. राजनारायण जैसा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्री भी देखा है जो पूरी तरह जमीन से जुड़े हुए नेता थे और मोरारजी सरकार में मन्त्री रहे थे। चाहे शिक्षा हो या स्वास्थ्य लोकतन्त्र में ये मन्त्रालय तभी सफलता प्राप्त करते हैं जब इनके चलाने वाला मन्त्री सीधे जमीन से जुड़ा हुआ हो और जनता की तकलीफों से पूरी तरह वाकिफ हो। अतः मायने यह रखता है कि मनसुख भाई मांडविया किस तरह जमीनी समस्याओं पर पार पाने के लिए नीतियां बनाते हैं। यही स्थिति हम पर्यटन के क्षेत्र में भी देख रहे हैं। विदेश राज्यमन्त्री बनाई गई श्रीमती मीनाक्षी लेखी को पर्यटन मन्त्रालय भी दिया गया है।
भारत में विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है। विदेश राज्यमन्त्री के रूप में जो भी व्यक्ति होगा उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह भारत की उन विशेषताओं को सतह पर लाये जिससे विदेशी पर्यटकों की देश के बारे में अधिक से अधिक रुचि जागृत हो सके। इसी प्रकार वाणिज्य मन्त्रालय के साथ टेक्सटाइल्स विभाग जोड़ दिया गया है। हकीकत यह है कि भारत से जितना भी निर्यात होता है उसमें टेक्सटाइल्स का हिस्सा सबसे ज्यादा होता है जबकि वाणिज्य मन्त्रालय का मुख्य कार्य विदेशी कारोबार बढ़ाना ही होता है। अतः पीयूष गोयल को ये दोनों विभाग देकर उनसे अपनी योग्यता साबित करने को कहा गया है। इसी प्रकार नया सहकार मन्त्रालय बनाया गया जिसकी जिम्मेदारी गृहमन्त्री श्री अमित शाह जैसे भारी भरकम आदमी को दी गई है। इससे साफ है कि यह मन्त्रालय कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हालांकि पूर्व में भी सहकारिता विभाग रहा है मगर दोयम दर्जे का व्यवहार ही पाता रहा है।
अब पूर्ण मन्त्रालय बन जाने के बाद इसके लाभ से भारतवासी और अधिक साधन सम्पन्न होने चाहिएं। इसका सर्वाधिक महत्व रोजगार के साधन सृजित करने में हो सकता है। अभी तक सहकारिता आन्दोलन देश के चुनिन्दा राज्यों जैसे गुजरात व महाराष्ट्र आदि तक में ही सीमित रहा है। इसका विस्तार यदि देश के अन्य राज्यों में भी होता है तो आम नागरिकों के जीवन में बदलाव लाने में मदद मिल सकती है। कुल मिलाकर मन्त्रालयों का समन्वय सरकारी परियोजनाओं और स्कीमों को तीव्र गति देने में मददगार ही साबित होगा। देश की अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए इस मन्त्रालय के बारे में भी पुनर्वलोकन किया गया होता तो बेहतर होता।


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