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- बेमानी निधि
Written by जनसत्ता: देश की कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण कभी यह राशि वार्षिक मद में लाख रुपए हुआ करती थी, लेकिन विकास की समग्र आवश्यकता को देखते हुए केंद्र सरकार ने सांसदों की मांग पर क्रमश: इसके आबंटन में समय-समय पर वृद्धि कर जनहित की ओर अपना ध्यान अग्रसर किया है।
लोकसभा के सदस्य आमतौर पर अपने राज्य से ही निर्वाचित हुआ करते हैं, सो वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास मद की राशि पूरी शिद्दत से विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में जिला प्रशासन से सक्रियता बनाए रखते हैं, क्योंकि वे अपने मतदाताओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े भी रहते हैं। समस्या वैसे राज्यसभा के सदस्यों के साथ दिखाई दे रही है जो अपने मूल राज्य से भिन्न राज्य के निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाते हैं और वे विकास मद की कर्णांकित राशि को पूरी तरह खर्च करने से चूक जाते हैं। हाल के आंकड़ों ने प्रतिबिंबित किया है कि कुछ राज्यसभा सांसद 25 फीसद भी अपने हिस्से की धनराशि विकास मद में खर्च नहीं करा सके।
कुछ माह पूर्व देश के पंद्रह राज्यों की सत्ताईस सीटों पर नए राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे, लेकिन निवर्तमान सदस्यों के विकास मद के खातों में करोड़ों रुपए शेष रह गए। आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब सहित छह राज्यों के सत्ताईस सांसदों को 553 करोड़ रुपए आबंटित हुए थे, लेकिन इनके कार्यकाल की समाप्ति तक इनके खाते में करीब पंचानबे करोड़ रुपए शेष रह गए। इनमें सबसे अधिक राशि चौवालीस करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के ग्यारह सांसदों के खाते में शेष बच गए। यह तो एक उदाहरण है, जबकि विगत पच्चीस वर्षों का अगर अभिलेख अध्ययन किया जाए तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है।
विडंबना यह है कि राज्यसभा सदस्यों का निर्वाचन सीधे जनता नहीं करती है, इसलिए वे सीधे उनके प्रति उत्तरदायी भी नहीं होते हैं। दूसरी समस्या है कि जो सदस्य राजनीतिक कारणों से अपने राज्य से भिन्न राज्यों से चुने जाते हैं तो वे वहां की विकास की जमीनी संभावनाओं और आवश्यकताओं से भी अनभिज्ञ हुआ करते हैं। इससे अधिक महत्त्वपूर्ण विषय है उनकी विकास के प्रति उदासीनता की मन:स्थिति।
कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री ने अपने दल के सभी सांसदों से अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास के पायदान पर सबसे पिछड़े एक गांव को गोद लेकर उसे विकास के सभी आयामों से पूर्ण करने का निवेदन किया था, लेकिन इस विषय में क्या प्रगति हुई, कोई भी प्रतिवेदन देश के सामने उजागर नहीं हो सका। अनेक राज्यों के सुदूर क्षेत्रों में अभी भी शुद्ध पेयजल, कुपोषण और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है जो किसी न किसी सांसद सीमा के अंतर्गत है। राष्ट्रीय विमर्श में कभी भी यह दिग्दर्शित नहीं हुआ कि किसी राजनीतिक दल ने अपने सांसदों को उनके निधि के व्ययगत होने के कारण उन्हें जिम्मेवार ठहराया हो या फिर उन्हें टिकट से वंचित किया हो।
हालांकि महालेखा नियंत्रक परीक्षक ने समय-समय पर सांसद निधि के कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए सुधार के सुझाव भी दिए हैं, लेकिन देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए जब हम 'सबका विकास' मंत्र का जाप कर रहे हैं तो हर सांसदों का पुनीत कर्तव्य है कि वे अपनी निधि के स्रोत से अपने क्षेत्र के समावेशी विकास का उदाहरण पेश करें।