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- कम हो कानूनी जकड़न
नवभारत टाइम्स; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर सरकार ने एक बार फिर आम नागरिकों और खासकर उद्यमियों पर नियम-कानूनों की अनावश्यक जकड़न को कम करने की प्रक्रिया शुरू की है। कैबिनेट सेक्रेटरी ने विभिन्न विभागों के सचिवों को एक पत्र भेजकर उन्हें अपने दायरे में आने वाले उन कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने को कहा है, जो छोटे-मोटी चूकों या गलतियों को भी अपराध की श्रेणी में डाल देते हैं। ध्यान रहे, कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री की अपने आवास पर सीनियर आईएएस ऑफिसरों के साथ एक बैठक हुई थी, जिसमें अन्य मुद्दों के अलावा इस मसले पर भी चर्चा हुई थी। जानकारों के मुताबिक प्रधानमंत्री की इस पहल का मकसद न केवल विभिन्न एजेंसियों और न्याय प्रक्रिया पर पड़ रहे बोझ को कम करना है बल्कि देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देना भी है। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह कोई नया अजेंडा नहीं है। काफी पहले से वह कहते रहे हैं कि सरकारों और सरकारी तंत्र के दायरे को कम करने की जरूरत है। यह बात पहले से कही जाती रही है और प्रधानमंत्री मोदी इसे अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा शिद्दत से महसूस करते और व्यक्त करते रहे हैं कि सरकारी तंत्र का बेजा दखल देश में उद्यमिता की भावना को बढ़ावा देने में बाधा बन रहा है।
इसी क्रम में याद किया जा सकता है कि दो साल पहले भी कैबिनेट सेक्रेटरी ने वरिष्ठ अधिकारियों को इसी आशय का पत्र भेज कर उनसे यही गुजारिश की थी। अगर उस दिशा में कोई खास प्रगति इस बीच नहीं हो सकी तो उसके पीछे संभवत: उतार-चढ़ाव वाला वह असाधारण दौर रहा, जिससे कोरोना वायरस के कारण देश और दुनिया को गुजरना पड़ा। इस पूरी अवधि में स्वाभाविक ही सरकार और टॉप ब्यूरोक्रेसी की प्राथमिकता बदली रही। अच्छी बात यह है कि अब जब सामान्य स्थिति बहाल होती दिख रही है, सरकार ने अपने उस अजेंडे पर अमल की प्रक्रिया दोबारा शुरू कर दी है। वैसे इसमें दो राय नहीं कि यह जरूरी और उपयोगी पहल है। लेकिन साथ ही यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि यह बड़ी फिसलन भरी राह है।
नियम-कानूनों में ढील देने या इसकी जकड़न को कम करने के साथ यह खतरा भी जुड़ा हुआ है कि कहीं इस क्रम में कानून में ऐसे छिद्र न बन जाएं जो अपराधी तत्वों के लिए वरदान साबित हों। इसलिए कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करते हुए आवश्यक और अनावश्यक के सवाल पर अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है। लेकिन फिर रेखांकित कर दिया जाए कि आगे बढ़ने की जरूरत अवश्य है। इससे न केवल उद्यमियों की राह आसान होगी और बिजनेस में इनोवेशन की गुंजाइश बढ़ेगी बल्कि सरकारी तंत्र के लिए भी बड़े और गंभीर अपराधों के उन्मूलन की कोशिशों पर ध्यान देना आसान होगा। साथ ही, अदालतों पर मुकदमेबाजी का बोझ भी इससे घटेगा।