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अपनी शक्ति के हुनर को धीरे-धीरे अपने भीतर फैलने दीजिए
पं. विजयशंकर मेहता नवरात्र के दूसरे दिन हमें एक बात बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि ईश्वरीय शक्ति पर शोध न करें, उसे जीयें। यह शक्ति हमें जन्म से मिली है और इन नौ दिनों में अपने भीतर की इस शक्ति को पहचानने के अवसर सुलभ हो जाते हैं। अब ईश्वरीय शक्ति को जीया कैसे जाए, इसको समझने के लिए सबसे पहले यह मान लीजिए कि यह शक्ति अधिकांश मौकों पर हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले सिरे यानी मूलाधार चक्र पर पड़ी रहती है।
सांस और मंत्र के द्वारा इस ऊर्जा को ऊपर उठाते हुए स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सबसे ऊपर सहस्त्रार चक्र तक लाइए। नवरात्र में यही शक्ति का सबसे बड़ा सदुपयोग होगा। कभी जलते हुए दीये को देखिए। उसके प्राण उसकी ज्योति है, पर ज्योति के साथ दीया, बाती और तेल भी होते हैं। ज्योति को प्रकट करने के लिए ये तीन वस्तुएं काम करती हैं।
ऐसे ही हमारे भीतर की शक्ति को प्रकट करने के लिए शरीर, मन और आत्मा काम आते हैं। आत्मा का अगला कदम परमात्मा है और यही वह शक्ति है जिसे हम इन दिनों अनुभूत कर सकते हैं। अपनी शक्ति को पहचानकर उसे अनुभूत करना एक हुनर है। हमारे ऋषि-मुनि एक बड़ी गहरी बात कह गए हैं कि अपनी शक्ति के हुनर को धीरे-धीरे अपने भीतर फैलने दीजिए। ये नौ दिन उसी हुनर के होते हैं।
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