सम्पादकीय

रोड शो में चूहे

Rani Sahu
26 Jun 2022 7:15 PM GMT
रोड शो में चूहे
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नेता जी का रोड शो कमाल का था। दरअसल पहली बार सड़क पर नेता जी नजर आने वाले थे

नेता जी का रोड शो कमाल का था। दरअसल पहली बार सड़क पर नेता जी नजर आने वाले थे, तो जनता में अपनत्व का भाव तन बदन में गर्माहट लिए हुए था। इसी अपनत्व के कारण तैयारियां हो रही थीं और राज्य के बजट को भी लग रहा था कि औकात से कहीं अधिक सड़क पर दिखे। ऐसा लग रहा था कि सड़क और नेता के चेहरे की चमक एक समान है। जनता को भरोसा नहीं हो रहा था कि उसके जैसे लोग भी नेताओं के दर्शन करते-करते इतने बड़े हो सकते हैं कि एक दिन 'रोड शो' पर ही देश की आशाएं, इच्छाएं और संकल्प आ जाएंगे। रोड शो के लिए सारे बागीचों के फूल, सारे संगीत के ढोल, सारे जोश के उद्घोष और सारी कानून-व्यवस्था के मजबूत पक्ष इकट्ठे किए जा चुके थे। आश्चर्य यह कि रोड शो के नजारे के बीच भी चूहे नहीं मान रहे थे। आवारा पशु और यहां तक कि बंदर भी रोड शो के प्रबंधन को देखकर अपना आवारापन भूल गए थे, लेकिन चूहों ने वी आई फूलों तक को नहीं छोड़ा। अंततः फूलों के स्थान पर एक चूहा पकड़ा गया। चूहेदानी में फंसा चूहा तर्कशील था, वह चाहता था कि उसे रोड शो का मुकाम आने से पहले छोड़ दिया जाए। वह कानून व्यवस्था पर चीख रहा था, लेकिन नारेबाजी में चूहे की कौन सुनता। गुस्से में चूहा कहने लगा, 'मैं तुम सभी को देख लूंगा।' उसका गुस्सा अभिवादन कर रही जनता के खिलाफ फूट रहा था। वहां कई चूहेदानियों के मालिक अपने आसपास पकड़े चूहों को कहीं दूर छोड़कर आना चाहते थे, लेकिन बीच रास्ते में नेता जी का रोड शो इतना भी मेहरबान नहीं था, इसलिए तय हुआ कि चूहों को भी बीच में छोड़ दिया जाए। चूहे इतनी तेजी से मंजिल की ओर भागे कि नेता जी को लगा कि उनकी अगवानी में कोई श्राप लग गया।

कुछ कमांडो चूहों के पीछे भागे। पहली बार वीआईपी व्यवस्था पर चूहे भारी पड़ गए। जनता अब नेता जी के बजाय चूहों के बीच अपने-अपने घर की निशानियां ढूंढ रही थी। नेता जी के नाम की तालियां भागते चूहों को मिल रही थीं। इससे पहले कि चूहे पकड़े जाते, सारे के सारे रोड शो की आंखों में धूल झोंककर बिलों में घुस गए। बड़े नेता की इस बेअदबी पर सतर्कता बढ़ा दी गई, इसलिए अब गली में सजी एक अर्थी नहीं निकल पा रही थी। मरने वाले को शायद मालूम नहीं था कि नेता जी उसकी शवयात्रा के दिन रोड शो पर निकलेंगे। अगर मालूम होता तो देश में मरने के लिए कोई और दिन चुन लेता। अस्पताल को भी मालूम नहीं था, वरना एक दिन और मरे हुए को वेंटिलेटर पर चढ़ा कर सम्मान अर्जित किया जा सकता था। वार्ड के पार्षद को पता होता कि कोई नाहक मर कर खलल डालेगा, तो उसे मृत्यु शैया पर ही घंटों तक लटका देता। आगे नेता जी का रोड शो हो रहा था, लेकिन पीछे अंतिम यात्रा पर निकलने की भी मनाही थी। यूं तो हर मरने वाले के रिश्तेदार जानते हैं कि जब पास ही में कोई नेता जी रोड शो पर निकल रहे हों, तो अपने आंसुओं को कैसे पीकर मुस्कराना है, लेकिन यहां तो खिलखिलाना भी था। पूरा शहर रोड शो में रोमांचित था, लेकिन हजारों झंडों के बीच किसी का कफन चाह कर भी जल नहीं पा रहा था। शायद हर रोड शो के पीछे न जाने कितनी चूहेदानियां चूहे पकड़ कर या अर्थियां लाश उठाए थक जाती होंगी, कौन जानता है इन नारों के बीच कहीं 'राम नाम सत्य है' जैसा यथार्थ मर रहा है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


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