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- हार के मंथन पर रार
हार की उफनती नदी में नहाते ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला क्यों चिल्ला रहे हैं, बचाओ-बचाओ। हार पर मंथन की रार और आपसी विश्वास के घोटाले पर मौन स्वीकृतियों का आलम यह कि अचानक चंडीगढ़ में भाजपा कोर गु्रप की बैठक टाल दी जाती है। कारण हार के और मसले विचार के, अगर टटोले नहीं जाएंगे तो धवाला को अपने ही राजनीतिक छप्पड़ में नहाते देख लें कि वह अपने आसपास के पानी से कितनी गंदी मछलियां निकाल पाते हैं। संगठन और सरकार के बीच तालमेल की कमी को वह उपचुनावों की हार के लिए दोषी मानते हैं। वह वरिष्ठता के सवाल पर अंगुली उठाते हुए कहते हैं कि संगठन में पुराने लोगों को खुड्डे लाइन लगाकर आंतरिक शक्ति को कमजोर किया गया है। धवाला अपने प्रश्नों का उत्तर उपचुनाव की हार के मंथन से पाना चाहते हैं और यह हकीकत भी है कि पार्टी के पदाधिकारी इन उपचुनावों में बेनकाब हुए हैं। संगठन की मिलकीयत में सरकारें दोयम हो जाएं या सरकारी लाभ के पदों पर सियासत की पपड़ी जम जाए, तो कान खोलकर सुनना ही पड़ेगा। क्या रमेश धवाला सरीखे वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक यह हैसियत रखते हैं कि वह अपनी ही पार्टी के कान खोल पाएंगे। जाहिर है पार्टी को उपचुनावों की हार पर शीघ्रातिशीघ्र सुनने की बाध्यता नहीं है और न ही ऐसे संकेत मिल रहे हैं।
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