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बीते पखवाड़े में सिंध में सिंधियों और पख्तूनों के बीच हुए टकराव की भारत में न के बराबर चर्चा हुई
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
बीते पखवाड़े में सिंध में सिंधियों और पख्तूनों के बीच हुए टकराव की भारत में न के बराबर चर्चा हुई। विदेशी मीडिया संस्थानों की हिन्दी वेबसाइटों पर भी इस समाचार को जगह नहीं मिली। जाहिर है कि भारतीय मीडिया में पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों को लेकर लगभग बेखबरी सी रहती है। हमारे नौजवान म्यूजिक स्टूडियो और इश्किया शेरोशायरी की कोक लेने भर पाकिस्तान को जानते हैं। बुजुर्ग बेनजीर और इमरान से दोस्तियों के किस्सों और भारत विभाजन के बाद वहाँ से यहाँ आने वालों परिजनों के नोस्टैल्जिक कहानियों भर ही पड़ोसी मुल्क से परिचित हैं।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में काफी समय से अलगाववादी मुहिम जारी है। खैबर पख्तूनख्वा (केपी) में भी अफगान तालिबान और पाकिस्तानी निजामी के बीच रस्साकशी पहले से तेज हो चुकी है। ताजा घटनाक्रम से लग रहा है कि सिंध का नाम भी पाकिस्तान के उन सूबों में शामिल हो सकता है जहाँ आपसी कौमी टकराव की जमीन तैयार है।
सिंध में ताजा टकराव की शुरुआत
पाकिस्तानी हैदराबाद के एक होटल में 13 जुलाई को 35 वर्षीय नौजवान बिलाल काका की हत्या हो गयी और पाँच अन्य लोग घायल हो गये। जिस होटल में विवाद हुआ उसका मालिक पख्तून है। सिंधियों का कहना है कि होटल मालिक अफगान नागरिक है। सिंधी पहचान की राजनीति करने वाले दल इस घटना के बाद सड़क पर आ गए। उन्होंने पख्तूनों की दुकानों को जबरदस्ती बन्द करा दिया। सिंधी नेताओं ने यह अपील भी की कि सिंधी किसी भी अफगान को दुकान या मकान इस्तेमाल के लिए न दें।
यहांँ यह सवाल जहन में आ सकता है कि सिंध में रहने वाले कौन लोग सिंधी कहे जाते हैं? मेरे ख्याल से इसका जवाब सिंध की भाषाओं से मिल सकता है। साल 2017 की पाकिस्तानी जनगणना के अनुसार सिंध में 62 प्रतिशत लोगों की पहली जबान सिंधी है, 18 प्रतिशत की उर्दू (पढ़ें हिन्दी) पहली जबान है, 5 प्रतिशत लोग पश्तो बोलते हैं। बाकि कोई जबान ऐसी नहीं है जिसे तीन प्रतिशत लोग बोलते हों। सिंध में भी पख्तूनों की आबादी प्रांत के सबसे अमीर शहर कराची में सबसे ज्यादा है। एक पाकिस्तानी विद्वान के अनुसार कराची में करीब 25 प्रतिशत पख्तून (पश्तो भाषी) हैं।
बिलाल काका की हत्या के बाद सिंध पुलिस ने पूरी मुस्तैदी दिखायी और तत्काल आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन इस मुद्दे से सिंध के अन्दर सिंधी बनाम पख्तून का टकराव खुलकर सतह पर जरूर आ गया।
पाकिस्तानी तालिबान और इमरान खान
इस पूरे मसले पर सबसे रोचक प्रतिक्रिया तहरीके-तालिबान-पाकिस्तान की तरफ से आयी। पाकिस्तानी तालिबान ने कहा कि सिंधी और पख्तून टकराव 'नेताओं और सेना के अफसरों' की 'फूट डालो राज करो' की नीति का परिणाम है और सभी पाकिस्तानियों को 'पाकिस्तानी तालिबान' से जुड़कर 'सच्चा इस्लामी निजाम' कायम करना चाहिए जिससे मुल्क में अमन और माली बरकत आ सके! तहरीके-तालिबान के इस बयान की तुलना तहरीके-इंसाफ के नेता इमरान खान के बयानों से करें तो आपको कोई अन्तर नजर नहीं आएगा। इमरान खान की तहरीके-इंसाफ ने सबसे पहले खैबर पख्तूनख्वा में ही सरकार बनायी थी।
इमरान खान की पारिवारिक पृष्ठभूमि पख्तून है लेकिन उनके पिता पंजाब में आकर बस गये थे। खैबर पख्तूनख्वा में इमरान खान पर अफगान तालिबान को मदद पहुँचाने का आरोप लगे थे। उनको तालिबान खान भी कहा जाने लगा था। पाकिस्तानी सेना उस समय अफगानिस्तान में तालिबान की मददगार थी। इमरान खान को सत्ता में लाने का श्रेय भी पाकिस्तानी सेना को दिया जाता है। पाकिस्तानी पंजाब उपचुनाव का विश्लेषण करते हुए प्रतिष्ठित पत्रकार रजा रूमी ने बहुत रोचक नुक्ते पर अंगुली रखी है।
रजा रूमी ने इशारा किया है कि अप्रैल 2022 में इमरान खान के सत्ता से बेदखल होने से पहले तक इमरान खान की तरीके-इंसाफ की छवि सेना की सरपरस्ती वाली पार्टी की थी और नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग की छवि सेना के खिलाफ नागरिक समर्थन से चलने वाली पार्टी की थी। इमरान खान की गद्दी जाते ही वो पाकिस्तानी सेना के सबसे बड़े विरोधी बनकर उभरे हैं और उन्होंने जनता के बीच लगातार यह सन्देश दिया है कि शाहबाज शरीफ सेना का चाटूकार है। वो अपने भाषणों में शाहबाज शरीफ को 'बूटपालिश' करने वाला बताते रहे हैं। पंजाब उपचुनाव में मिली जीत बताती है कि उनकी बात पंजाबियों को पसन्द आ रही है जबकि पंजाब को शरीफ परिवार का राजनीतिक गढ़ माना जाता है।
केपी और पंजाब में इमरान खान की पार्टी पीटीआई हुकूमत कायम कर चुकी है। सिंध में पीटीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इमरान खान और पाकिस्तानी तालिबान दोनों ही 'इस्लाम के नाम पर' सभी पाकिस्तानियों के एक होने की अपील जरूर कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तानी सियासत में पख्तूनों के बढ़ते दबदबे को सिंधियों और पंजाबियों के लिए स्वीकार करना आसान नहीं होगा।
पीएम की गद्दी छोड़ने के बाद इमरान खान ने बयान दे दिया था कि 'पाकिस्तान तीन टुकड़ों में टूट सकता है।' उनके बयान पर विरोधियों ने बहुत हंगामा किया था लेकिन यदि इमरान सत्ता में वापस आते हैं तो पाकिस्तान को एकजुट रखने की जिम्मेदारी उनके कन्धे पर आएगी। सिंधियों और पख्तूनों के बीच ताजा टकराव को देखते हुए कह सकते हैं कि बलूचिस्तान और केपी के बाद सिंध पाकिस्तान के गले की नई हड्डी बन सकता है जिसे निकालने की जिम्मेदारी फिलहाल इमरान खान के कन्धे पर आती दिख रही है।
Rani Sahu
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