सम्पादकीय

रामबाबू खेल नायक हैं

Rani Sahu
7 Oct 2023 2:29 PM GMT
रामबाबू खेल नायक हैं
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By: divyahimachal
गुरुवार, 5 अक्तूबर, को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सैट पर कई ऐसे दर्शकों को बिठाया गया था, जिन्होंने क्रिकेट की टीम इंडिया जैसी वर्दी पहनी हुई थी। भारत में एकदिनी क्रिकेट के आईसीसी विश्व कप का आगाज हो चुका है। स्टुडियो में दर्शक ‘भारतवर्ष हमारा है’ का उद्घोष भी कर रहे थे। हमें क्रिकेट के प्रति पराकाष्ठा का लगाव बहुत अच्छा लगता है। देशवासी क्रिकेट को धर्म और राष्ट्र के आयाम से भी देखते हैं, लेकिन यह लगाव, उन्माद, प्यार अधूरा-सा लगता है, क्योंकि चीन के हांगझाउ में ‘एशियन गेम्स’ जारी हैं। भारत के कई अनाम, अलोकप्रिय खिलाडिय़ों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इतिहास लगातार लिखा जा रहा है। भारत गुरुवार शाम तक 21 स्वर्ण, 32 रजत और 33 कांस्य पदक जीत कर कुल 86 पदक हासिल कर चुका है। अभी तो क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, बैडमिंटन, शतरंज और कुश्ती आदि खेलों में हमें सोना या चांदी मिलनी है। 2018 के जकार्ता एशियाई खेलों में भारत ने 16 स्वर्ण पदक समेत कुल 70 पदक जीतने की उपलब्धि हासिल की थी। उस कीर्तिमान को फिलहाल 86 पदकों तक पहुंचा कर भारत अपने खेल-हुनर को बेहतर साबित कर चुका है। बेशक क्रिकेट अमीरी और सम्पन्नता का खेल है। हमारे शीर्षस्थ खिलाडिय़ों के सालाना पैकेज 7 और 5 करोड़ रुपए से अधिक के हैं। जूनियर को भी 1 करोड़ रुपए से अधिक का पैकेज दिया जाता है। फिर आईपीएल के लाखों-करोड़ों रुपए के अनुबंध भी मिलते हैं। हम सिर्फ धावक रामबाबू का उदाहरण यहां उद्धृत कर रहे हैं। वह मनरेगा का मजदूर रहा है।
होटल में वेटर बना और बर्तन भी मांजता रहा। गरीबी से लडक़र जिंदा रहने के संघर्ष में उसने न जाने क्या-क्या किया होगा? उसे दौडऩे के लिए मजदूरी के पैसे से ही जूते खरीदने पड़े। उस खिलाड़ी ने एशियाड में 35 किलोमीटर की पैदल-दौड़ में भारत को कांस्य पदक जिता कर दिया। यकीनन रामबाबू भारत का राष्ट्र-नायक है। ऐसे ही कुछ चेहरे अविनाश साबले, मुरली श्रीशंकर, तीरंदाज ओजस, पहलवान अंतिम पंघाल आदि खिलाडिय़ों के हैं, जिनकी खेल-उपलब्धियां अप्रतिम हैं। वे भारत के पदकवीर योद्धा हैं, लेकिन जो सुर्खियां रोहित शर्मा, विराट कोहली से लेकर सिराज तक क्रिकेटरों को मिलती रही हैं, वे इन पदकवीर खिलाडिय़ों के हिस्से बहुत संक्षिप्त आती हैं। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के मंच से कई गरीब-अनाम चेहरे लखपति-करोड़पति बनकर लौटे हैं। करोड़ों लोग इस खेल से जुड़े हैं और अपने ज्ञान, अपनी किस्मत को आजमाते रहते हैं, लिहाजा ऐसे मंच पर क्रिकेट को ही भारतवर्ष से जोडऩा और पदकवीर खिलाडिय़ों का नाम तक नहीं लेना…यह एक देशभक्त नागरिक को चुभता है, पीडि़त करता है। हालांकि हम स्पष्ट कर दें कि हम क्रिकेट के ‘जुनूनी प्रेमी’ हैं और उसकी उपलब्धियों और पराजयों का लगातार विश्लेषण करते रहे हैं, लेकिन रामबाबू सरीखा खिलाड़ी अप्रतिम कीर्तिमान है, जिसे आने वाले समय में लोग अपना ‘आदर्श’ मान सकते हैं।
ओडिशा देश के सबसे गरीब राज्यों में एक है, लेकिन वहां के किशोर जेना ने भाला फेंक मुकाबले में एक बार अंतरराष्ट्रीय महानायक नीरज चोपड़ा को भी पीछे छोड़ कर सभी को चौंका दिया था। अंतत: नीरज इस साल के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 88.88 मीटर तक भाला फेंक कर स्वर्ण पदक विजेता बने, लेकिन जेना ने भी 87 मीटर से अधिक की दूरी तय कर रजत पदक हासिल किया। यह भारतीय खेल इतिहास में पहली बार हुआ है कि एशियाई गेम्स में पहले दोनों स्थान और दोनों पदक भारतीयों ने हासिल किए। जेना को भी देश कम ही जानता है, लेकिन वह नीरज के विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं। मीडिया में कितनी कवरेज दी गई है। हालांकि गरीब सरकार ने उन्हें 1.5 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। बेशक भारत में खेलों का चेहरा, चाल और पहचान बहुत कुछ बदली है। खिलाडिय़ों को सरकारी आर्थिक मदद पर तैयार किया जा रहा है। उन्हें प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा जाता है और खर्च सरकार वहन करती है। खेल का आधारभूत ढांचा भी बिल्कुल बदल रहा है, लेकिन एशिया में ही फिलहाल भारत चौथे स्थान पर है, तो ओलंपिक के प्रदर्शनों का अनुमान लगाया जा सकता है।
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