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- पहाड़ों को आतंकित करती...

हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तेज़ बरसात और बादल फटने से बाढ़ आती है और प्रतिवर्ष लोग, मवेशी, जंगली जानवर कष्ट के दौर से गुजरते हैं। जमीन, जंगलों, सड़कों और दूसरी सरकारी सम्पत्ति का नुक्सान भी होता है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में भी बाढ़ का कहर बराबर बरपता है। असम में आई बाढ़ ने यह साबित कर दिया कि प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण कर पाना बहुत ही कठिन है। असम में 173 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं और करीब 30 लाख लोग, प्रदेश के 30 जिलों में बाढ़ और बरसात के कहर से प्रभावित हुए हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में आने वाली बाढ़ अपने साथ पहाड़ों का एक बड़ा हिस्सा, जिसमंे पेड़ नहीं हैं या अधिक कटान किया गया है, या सड़कों और पन बिजली परियोजनाओं के लिए सुरंगों का निर्माण किया गया है, अपने साथ बहा ले जाती है। पिछले साल किन्नौर, कुल्लू, सोलन, सिरमौर जिलों में न केवल सड़कंे बह गई थी, अपितु बड़े पहाड़ भी भूस्खलन का शिकार हुए थे। शिमला के करीब आठ मंजिला इमारत भी जमीन में मिल गई थी। किन्नौर की सांगला घाटी में बरसात के कारण, नालों में बाढ़ आ गई, चट्टानें खिसकने से सड़कों पर यातायात रुक गया और टोंगटोंगचे व सेरिंगचे नाले में आई बाढ़ ने काफी नुक्सान किया। लाहुल स्पीति घाटी में भी बरसात ने कहर ढाया।
सोर्स- divyahimachal
