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देर से ही सही राहुल गांधी भी जागे, क्या ममता बनर्जी का खेला बिगाड़ेंगे?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अजय झा| एक अनार सौ बीमार – यह कहावत तो सुनी ही होगी, पर क्या कभी इसे चरितार्थ होते देखा है? पिछले कुछ दिनों से देश की राजधानी नयी दिल्ली में विपक्षी एकता के नाम पर जो खेल चल रहा है यह मुहावरा उसपर बिलकुल फिट बैठता है. एक अनार यानि प्रधानमंत्री का पद एक ही है, पर विपक्ष से अब नित नए दावेदारों की संख्या बढ़ती जा रही है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसकी शुरुआत की. उनकी तरफ से पहले प्रशांत किशोर एनसीपी नेता शरद पवार से मिले, फिर पवार के घर पर विपक्षी दलों की बैठक हुयी, उसके बाद ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा हुआ जिसमे वह कांग्रेस पार्टी के दो सबसे बड़े नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिली और मंगलवार को राहुल गांधी ममता बनर्जी के रंग में भंग करते दिखे.
जिसका डर था वही हुआ, कांग्रेस पार्टी इतनी आसानी से हथियार डाल कर ममता बनर्जी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बनने देगी. इसके लिए कांग्रेस पार्टी को अपना पुराना सपना "राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाना" भूलना पड़ेगा, जो सोनिया गाँधी के जीते जी शायद ना हो पाए. कांग्रेस पार्टी ने बेवजह ही इतनी कुर्बानियां नहीं दी है. कई नेता या तो पार्टी छोड़ कर चले गए या फिर जो भी राहुल गांधी के रास्ते में आता दिखा उसे दरकिनार कर दिया गया, राहुल गांधी को बड़ा नेता बनाने के चक्कर में कांग्रेस पार्टी इसलिए अपनी दुर्दशा नहीं करायी कि पार्टी ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने पर राजी हो जाए.
ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी को एक आइडिया जरूर दे दिया और वापस कोलकाता चली गयीं. कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों ने उस आइडिया को आगे बढ़ाने का काम किया, ताकि कांग्रेस पार्टी विपक्षी एकता की मुहिम में असंगत ना हो जाए. इसके लिए जरूरी था कि राहुल गांधी को उनके कम्फर्ट जोन से बाहर निकाला जाए ताकि वह सीजनल नेता ही ना बन कर रह जाएं. राहुल गांधी ने हामी भर दी और आननफानन में नयी दिल्ली के Constitution Club में नाश्ते पर चर्चा का कार्यक्रम बना, 17 विपक्षी दलों को न्योता भेजा गया जिसका आयोजन कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के नाम पर किया. नाश्ते में क्या परोसा गया और किसने और कितना खाया से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इस शो का आयोजन ही यह याद दिलाने के लिए किया गया थाकि राहुल गांधी के रहते हुए विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का कोई और दावेदार कैसे हो सकता है?
17 आमंत्रित दलों में से 15 ने नाश्ते का चटकारा लिया और राहुल गांधी का प्रवचन भी सुना कि कैसे विपक्ष भारत के 60 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. जिन दो दलों ने राहुल गांधी का नमक खाने से मना कर दिया वह हैं आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी. आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ दिख कर पंजाब और अन्य राज्यों में जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाला है, अपना खेल बिगड़ना नहीं चाहेगी, और वह भी तब जबकि आम आदमी पार्टी का लक्ष्य है कांग्रेस की जगह देश के राजनीति में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनना. आम आदमी पार्टी के खास नेता अरविन्द केजरीवाल का सपना सिर्फ दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना ही नहीं था, अगर ऐसा होता तो 2014 में वह उस समय के बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने बनारस नहीं पहुचे होते. रही बात बहुजन समाज पार्टी की तो पार्टी सुप्रीमो मायावती भी कभी प्रधानमंत्री पद का सपना देखती थीं. उस सपना को पुनर्जागृत करने के लिए आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत कर बीएसपी की सत्ता में वापसी अनिवार्य है, जो कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ मंच साझा करके संभव नहीं हो सकता.
और अब बात उनकी जो राहुल गाँधी की नाश्ते पे चर्चा में शामिल हुए. जहां एनसीपी के कुछ बड़े नेता राहुल गांधी के साथ नाश्ता कर रहे थे, एनसीपी सुप्रीमो शारद पवार केन्द्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के साथ चाय पी रहे थे. पवार ने कांग्रेस पार्टी इसलिय ही छोड़ा था क्योकि गांधी परिवार उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने में बाधा बन कर आने लगी थी. एनसीपी भले ही कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा हो, पर पवार का सपना अभी टूटा नहीं है. पार्टी के लिए महाराष्ट्र में सत्ता में रहना और चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना इस लिहाज से जरूरी है. पर जिस तरह से कांग्रेस पार्टी के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले इनदिनों एनसीपी की जड़ खोदने में जुड़े हुए हैं, उससे एनसीपी की परेशानी बढ़ गयी है. पवार एक साथ कई नाव की सवारी करने में माहिर हैं. उन्हें यह भी भय भी सता रहा होगा कि महाराष्ट्र के तीन पार्टियों के गठबंधन में एनसीपी को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पहले की अपेक्षा कम सीटों पर लड़ना होगा और महाराष्ट्र में दिन प्रति दिन बीजेपी के बढ़ते प्रभाव में गठबंधन के जीत की सम्भावना कम हो जायेगी, लिहाजा उन्होंने तैयारी कर ली है कि अगर जरूरत पड़े तो वह बीजेपी की नाव में बैठ जाए ताकि एनसीपी की शक्ति बढे जो शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में होता नही दिख रहा है.
मीटिंग में समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि भी शामिल थे. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी कभी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते थे. उम्र और स्वास्थ्य भले भी उनके साथ ना हो, पर चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर की तरह भले ही कुछ महीनों के लिए ही सही, मुलायम सिंह भी एक बार प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे ताकि एच.डी. देवेगौड़ा की तरह उनकी तख्ती पर भी भूतपूर्व प्रधानमंत्री का पद लिखा जाए.
इस सबके बीच है ममता बनर्जी का सपना. वह दिल्ली में खेला करना चाह रही थी, पर राहुल गांधी ने उनका खेला बिगाड़ने का काम शुरू कर दिया है. ममता बनर्जी की समस्या है कि कोलकाता में रह कर केंद्र की राजनीति करना आसान नहीं है और वह मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को तैयार भी नहीं हैं. एक दिलचस्प बात है कि जब पिछले हफ्ते ममता बनर्जी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिली थीं तो सोनिया गांधी ने उन्हें यूपीए अध्यक्ष का पद देने का प्रस्ताव रखा था. सोनिया गांधी 2004 से उस पद पर हैं, पर सोनिया गांधी ने ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को स्वीकार करने की बात नहीं की जिसके कारण ममता बनर्जी को कहना पड़ा कि विपक्ष का साझा प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा इस पर निर्णय बाद में लिया जाएगा. कांग्रेस पार्टी को शायद इससे गुरेज नहीं होगा कि अगर वह मान जायें तो ममता बनर्जी यूपीए अध्यक्ष पद संभाले और राहुल गांधी की दावेदारी को मजबूत करें.
राहुल गांधी की नाश्ते पर चर्चा कार्यक्रम के बाद यह लगना स्वाभाविक है कि प्रस्तावित विपक्षी एक ताला सपना कहीं एक बार फिर से सपना ही बन कर ना रह जाए.