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- शिवसेना के अस्तित्व पर...
महाराष्ट्र में पिछले दस दिनों से चले आ रहे नाटक का आखिर अंत हो गया। 288 सदस्यों की विधान सभा में शिव सेना के पचपन विधायक थे। शिव सेना ने अढाई साल पहले शरद पवार की नैशनल कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी की कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली थी। शिव सेना के संस्थापक बाला साहिब ठाकरे के सुपुत्र उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए। कहा तो यह भी जाता है कि उद्धव स्वयं मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे, बल्कि अपने सत्ताईस वर्षीय सुपुत्र आदित्य ठाकरे को यह पद देना चाहते थे। लेकिन उम्र की चौथ पर पहुंच चुके शरद पवार शायद इतनी छोटी उम्र के मुख्यमंत्री को झेल पाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो सके। इसलिए उद्धव को ही मुख्यमंत्री बनना पड़ा। कभी पंजाब के डीजीपी रहे जूलियस रिवैरो आदित्य को बहुत गुणी ज्ञानी मानते हैं। लेकिन उनका भी कहना है कि उद्धव ठाकरे को चाहिए था कि वे अपने बेटे को अपनी योग्यता व गुणों के आधार पर धीरे-धीरे राजनीति की सीढि़यां चढ़ने देते। उद्धव ऐसा न करके, उसका राजवंशों की परंपरा का अनुसरण करते हुए राजतिलक करना चाहते थे, जिसे कुछ लोगों ने पसंद नहीं किया। लेकिन मामला शायद इतना सीधा नहीं है जितना रिवैरो समझ रहे हैं या समझाना चाहते हैं। दरअसल बाला साहिब ठाकरे की शिव सेना का शरद पवार की एनसीपी या सोनिया गांधी की पार्टी से कहीं भी मेल नहीं बैठता था। वैचारिक आधार पर शिव सेना दक्षिणी ध्रुव पर है और कांग्रेस व एनसीपी उत्तरी धु्रव पर हैं। यह बाला साहिब ठाकरे ही थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि यदि शिव सैनिकों ने बाबरी ढांचे को ढहाया है तो उन्हें इस पर गर्व है। बाला साहिब ने यह घोषणा उस समय की थी जब कांग्रेस और एनसीपी बाक़ायदा मातम मना रहे थे। महाराष्ट्र में सोनिया गांधी और शरद पवार की सारी राजनीति ही अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण पर आधारित है। इसलिए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार की स्थापना से ही यह प्रश्न उठने लगा था कि आखिर उद्धव ठाकरे ने बाला साहिब ठाकरे के बताए गए रास्ते को छोड़ने का निर्णय क्यों किया? वे सोनिया गांधी और शरद पवार के रास्ते पर क्यों चल पड़े? यह रास्ता बाला साहिब विरोधी रास्ता था। उद्धव ठाकरे इस नए रास्ते पर चलते हुए इतना आगे बढ़ गए कि अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए वे ओवैसी की हैदराबादी पार्टी से भी हाथ मिलाने लगे। प्रथम दृष्ट्या यह सत्ता की ललक में किया गया फैसला ही दिखाई देता है। सामान्य राजनीतिक दल इस प्रकार के काम करते रहते हैं। लेकिन बाला साहिब ठाकरे ने शिव सेना का गठन येन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्ति के लिए नहीं किया था।
सोर्स- divyahimachal