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चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता, यानी क्वाड एक बार फिर सुर्खियों में है
हर्ष वी पंत,
चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता, यानी क्वाड एक बार फिर सुर्खियों में है, क्योंकि इसके सदस्य देशों के नेता दूसरी बार आमने-सामने मिले। सदस्य देशों का अर्थ है, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत। इससे पहले पिछले साल सितंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के निमंत्रण पर वाशिंगटन में इसके तमाम नेतागण पहली बार आपस में मिले थे। जापान शिखर सम्मेलन में चारों नेताओं ने इस समूह के एजेंडे की प्रगति का आकलन किया और हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक तरक्की पर एक-दूसरे का साथ देने का भरोसा दिया। यह बैठक उस समय हुई है, जब वैश्विक व्यवस्था में अहम बदलाव हो रहे हैं। हालांकि, दुनिया की नजर यूक्रेन संकट पर है, पर क्वाड बैठक का संदेश स्पष्ट था, यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण बेशक यूरेशिया में प्रमुख हितधारकों की प्राथमिकताओं को नया रूप देगा, लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व का केंद्र बना रहेगा, चीन की चुनौती आगे भी बनी रहेगी और दुनिया में समान सोच वाले देश बीजिंग को अच्छी टक्कर देने का माद्दा रखते हैं।
बीजिंग इस सच्चाई से वाकिफ है, इसीलिए क्वाड को लेकर वह अपनी नाराजगी जाहिर करता रहा है। क्वाड शिखर सम्मेलन से पहले जारी अमेरिकी हिंद-प्रशांत रणनीति पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि इस रणनीति का 'विफल होना तय' है और बीजिंग को 'रोकने' के लिए वाशिंगटन इसे तेजी से आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि 'स्वतंत्रता और खुलेपन' के नाम पर अमेरिका इस हिंद-प्रशांत रणनीति से 'षड्यंत्रकारियों का दल' बनाना चाहता है, जिसका मकसद चीन को रोकना और क्षेत्रीय देशों को अमेरिका का 'मोहरा' बनाना है।
साफ है, ये पुराने विलाप हैं, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इस बहुराष्ट्रीय पहल के बाद से ही चीन करता रहा है। इस पहल को साकार करने के लिए क्षेत्रीय देशों ने जब-जब कदम आगे बढ़ाए, बीजिंग के स्वर तीखे होते गए। हालांकि, हिंद-प्रशांत के लिए बनी इस रणनीति को कमजोर करने की वह जितनी भी कोशिश करे, यह रणनीति अब एक सच्चाई है। ट्रंप प्रशासन ने औपचारिक रूप से इसे स्वीकार किया था और बाइडन सरकार इसे तेज करने का इरादा साफ कर चुकी है। इन सबसे क्वाड की हैसियत स्वाभाविक ही बढ़ गई है। मगर चीन अब भी इसी पर डटा है कि 'हिंद प्रशांत रणनीति इस क्षेत्र के देशों द्वारा साझा प्रयासों से हासिल शांतिपूर्ण विकास की उपलब्धियों को नष्ट कर देगी।'
क्वाड एजेंडा में चारों देशों की इच्छाएं बूखबी दिखीं। इनमें शामिल हैं- व्यापार, बुनियादी ढांचे, समुद्री सुरक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन व विकसित प्रौद्योगिकी। सोच यह है कि सदस्य देश इन मुद्दों पर आपस में संबंध बढ़ाएं, क्योंकि यह क्षेत्रीय राष्ट्रों को एक विश्वसनीय विकल्प देगा, क्योंकि उनके पास चीन से मदद लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है। इस क्षेत्र में बुनियादी उत्पादों की भारी मांग है और चारों क्वाड सदस्य दुनिया भर में उनकी आपूर्ति सुनिश्चित करने वाले प्रमुख राष्ट्र के रूप में देखे जाते हैं।
फिर भी, क्वाड को औपचारिक रूप नहीं दिया जा सका है। यह हिंद-प्रशांत के विशाल समुद्री भूगोल के संस्थागत शून्य को भरने का एक प्रयास है। यह समान सोच रखने वाले देशों का एक अनौपचारिक समूह है, जो मुद्दों पर आधारित एजेंडे पर मिलकर काम करने के इच्छुक हैं। इसलिए यह भी स्वाभाविक है कि इसमें ऐसे मसले भी होंगे, जिनको लेकर चारों देशों में एक राय नहीं होगी, मगर उन पर उनको संजीदगी से सहमति बनाने की कोशिश करनी होगी। यूक्रेन युद्ध ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां भारत अन्य तीनों सदस्य राष्ट्रों से अलग खड़ा है। नई दिल्ली अन्य देशों की तरह रूस के साथ अपने संबंध तोड़ने को लेकर सतर्क है, भले ही उसने अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र चार्टर और क्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता के सिद्धांतों को अपनाए रखा है। इसी तरह, गेहूं-निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के अपने हालिया फैसले के कारण भी भारत को खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर दबाव झेलना पड़ सकता है।
इन मतभेदों के बावजूद भारत हिंद-प्रशांत के केंद्र में बना हुआ है और क्वाड की सफलता के लिए यह काफी अहम है। नई दिल्ली एक सफल लोकतंत्र, एक अग्रणी अर्थव्यवस्था और एक ऐसी सैन्य शक्ति है, जो चीन के विस्तारवाद के खिलाफ पूरी तरह सक्षम है। हिंद-प्रशांत की भू-राजनीतिक व्यवस्था के लिए इसका क्वाड में होना काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि क्वाड के अन्य सदस्य देश समूह के रूप में और द्विपक्षीय रूप से भी, भारत के साथ अपने मतभेदों को दूर करने के लिए तैयार दिखे हैं।
क्वाड के लिए अब चुनौती अपने एजेंडे को अधिक तेजी और स्पष्टता से परिभाषित करने की है। अब इसे जमीन पर अपनी क्षमता दिखाने की जरूरत है। टोक्यो में अमेरिकी 'इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क' (आईपीईएफ) में भारत की भागीदारी इस बात को प्रमाणित करती है कि क्वाड सदस्य अब एक साथ अपनी आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विश्वास, पारदर्शिता और समय पर आपूर्ति के महत्व को समझाया, क्योंकि भारत आईपीईएफ में शुरुआती भागीदार करने वाले 13 देशों में एक बन गया है। भले ही क्वाड सदस्य अब भी एक खुले, स्वतंत्र व समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र और सदस्य देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, क्वाड के सुरक्षा आयाम को और अधिक मजबूती से परिभाषित करने की आवश्यकता है। यह कहीं अधिक स्पष्टता से दिख रहा है कि क्वाड का मतलब व्यापार है। इस बात की पुष्टि इसी तथ्य से की जा सकती है कि कैसे इस मंच से जुड़ने के इच्छुक देशों की तादाद बढ़ती जा रही है। मगर क्वाड व्यापार को कितने प्रभावी ढंग से संचालित करता है, यह चारों सदस्य देशों पर ही निर्भर है, और इस पर भी कि कितनी गंभीरता से वे अपने इस इरादे को जाहिर कर पाते हैं।
साफ है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती अमेरिकी दिलचस्पी और क्वाड के खिलाफ चीन की नाराजगी अब वैसी चुनौती नहीं रही। असल मुद्दा क्वाड के सदस्य देशों में एकजुटता और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है, जो इस समूह को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक मंचों में एक बनाएगी। टोक्यो सम्मलेन इसी चुनौती से निपटने की राह बनाता दिखा।
सोर्स- Hindustan
Rani Sahu
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