सम्पादकीय

सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा को इच्छाशक्ति का परिचय देने की जरूरत

Gulabi Jagat
15 Oct 2022 1:19 PM GMT
सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा को इच्छाशक्ति का परिचय देने की जरूरत
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सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जिस तरह पानी देने से साफ मना कर दिया, उससे गेंद फिर से सुप्रीम कोर्ट के पाले में पहुंच गई है। पंजाब सरकार के रवैये से यही लगता है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार आम सहमति से जल बंटवारे के विवाद को हल करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। आखिर जब सुप्रीम कोर्ट और इसके पहले विभिन्न आयोग इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिलना चाहिए, तब फिर पंजाब सरकार इससे दो टूक इन्कार कैसे कर सकती है?
क्या यह विचित्र नहीं कि भारत तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नदियों के जल को साझा करता है, लेकिन पंजाब पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ ऐसा करने को तैयार नहीं? चूंकि हरियाणा पंजाब से ही निकला राज्य है, इसलिए उसका पंजाब की नदियों के पानी पर अधिकार है। यदि पंजाब का पुनर्गठन नहीं हुआ होता तो क्या आज जहां हरियाणा है, वहां पंजाब की नदियों का पानी नहीं पहुंच रहा होता?
यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि जमीन के बंटवारे से विभाजित हिस्सों के पानी के अधिकार खत्म नहीं होते। इस पर भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं कि पंजाब को कितना पानी हरियाणा को देना चाहिए, लेकिन इस हठ का कोई औचित्य नहीं बनता कि वह एक बूंद भी पानी नहीं देगा। यह टकराव बढ़ाने वाला रवैया है। इस रवैये से बचा जाना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि इस मुद्दे पर लोगों की भावनाओं को भड़काने वाली राजनीति की जाती रही है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि इस विवाद का सहारा लेकर अतिवादी तत्व भी अपनी सक्रियता दिखाते रहे हैं।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि नदी जल बंटवारे के मामले में राजनीतिक लाभ के लिए संकीर्णता का परिचय देने से किस तरह राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचती है। अतीत में कई राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर अप्रिय स्थितियां पैदा हो चुकी हैं। फिर से ऐसा नहीं होना चाहिए। नदियों के जल को राष्ट्रीय संपत्ति की तरह देखा जाना चाहिए। जब नदियां किसी राज्य विशेष तक सीमित नहीं तो फिर उनका पानी कैसे एक क्षेत्र तक सीमित किया जा सकता है?
नदी जल बंटवारे के मामले में बीच का रास्ता निकालने के प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि किसी के साथ अन्याय न हो। यदि पंजाब और हरियाणा चाहें तो आपसी सहमति से ऐसा रास्ता निकाल सकते हैं। इसके लिए इच्छाशक्ति का परिचय देने की आवश्यकता है। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार ने जल को समवर्ती सूची में लाने की जो पहल शुरू की थी, उसे आगे बढ़ाए। इससे विभिन्न राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर उपजे विवादों को हल करने में मदद मिल सकती है।


जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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