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- कांग्रेस पर...
हिमाचल में नए साल के राजनीतिक संबोधन आगामी चुनाव की पराकाष्ठा सुनाएंगे, तो इस बार विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए भी यह गला साफ करने का वर्ष है। कांग्रेस के लिए पहली बार मनोवैज्ञानिक लड़ाई का कुरुक्षेत्र हिमाचल में पैदा होगा और इस दृष्टिकोण से भाजपा को महारत हासिल है। भाजपा की मनोवैज्ञानिक पिच पर कांग्रेस के लिए यह केवल उद्गार बदलने का मुकाबला नहीं, बल्कि राजनीति की मार्केटिंग में खुद को अव्वल साबित करने का नया संघर्ष है। बेशक चार उपचुनाव जीत कर कांग्रेस का चुनावी गणित सुधरा है, लेकिन इस हार ने भाजपा में रणनीति को नए अवतार में पेश करने की शिद्दत पैदा की है। भाजपा को एक तरफ डबल इंजन सरकार को पेश करना है, तो दूसरी ओर यह एहसास दिलाना है कि वीरभद्र सिंह के प्रति इनसानी संवेदना का असर वोटर मानसिकता के खेल पर नहीं होगा। सत्तारूढ़ दल आगामी बजट को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से परिपूर्ण करने की हरसंभव कोशिश करेगा, तो कांग्रेस के भीतरी कक्ष में फसाद खोजने के लिए एड़ी-चोटी लगा देगा। हिमाचल में कांग्रेस के लिए पंजाब-उत्तराखंड के चुनाव अगर मनोवैज्ञानिक प्रभाव रखते हैं, तो उत्तर प्रदेश में चुनावी करवटें बता देंगी कि भाजपा के भीतर जीत के प्रति कितनी आग है। बेशक यही आग कांग्रेस ने उपचुनावी शक्ति में पारंगत की, लेकिन इस जीत के साथ जनाक्रोश भी खड़ा रहा।
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