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- जन अदालत में प्रियंका
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By: Divyahimachal
परिदृश्य, आशाएं और परिक्रमा फिलहाल भाजपा के नियंत्रण में हैं, लेकिन हिमाचल की सियासी परंपराएं कांग्रेस को सूत्रधार बनाने की फिराक में हैं। सत्ता की एक पूरी सल्तनत खुद में करिश्मा लिए और दिखाने की भरपूर कोशिश में आगे बढ़ती हुई भाजपा का आज पहला मुकाबला उस जनादेश से है जो प्रियंका गांधी को सोलन में सुनेगा। इस शुरुआत के आंचल में कांग्रेस की हिम्मत और आत्मबल का इजाफा होता है, तो सत्ता विरोध के सारे मुद्दे विपक्षी दल के आभूषण बन सकते हैं। प्रियंका गांधी की जनसभा से पहले प्रधानमंत्री की दर्जन से अधिक जनसभाएं अपने कौशल में जयराम सरकार की निगहबानी करती रही हैं, लेकिन विपक्ष के शब्दों को चुनने व सुनने की पहली कार्यशाला आज लगेगी। हिमाचल के चुनाव में प्रियंका की भागीदारी का एक खास असर हो सकता है, बशर्ते ऐसी जनसभाओं में कांग्रेस का आधार और पार्टी का आकार पूरी एकजुटता को साकार कर पाए। कांग्रेस अगर माथा उठाने की कोशिश करती है, तो प्रदेश की सियासी हवाओं का रुख असरदार होगा, वरना यह चुनाव अति कठिन डगर और मनोविज्ञान का स$फर है। यहां मुकाबला एक अति संगठित, प्रभावशाली, साधन संपन्न और व्यवस्थित पार्टी यानी भाजपा से होगा। यहां पिछले चुनावों की न तो मिट्टी बची है और न ही वक्त का वही तकाजा देखने को मिलेगा। यहां दो अंतर स्पष्ट हैं। भाजपा ने हिमाचल की जनता को अपने नजदीक खड़ा करने के लिए अपना दायरा बड़ा किया है और यह समझाने के लिए सियासी तासीर को भी बदला है। यह पहला चुनाव है जहां पारंपरिक मुद्दों को खदेडऩे के लिए ऐसी बाड़बंदी हो रही है, जहां कांग्रेस को कहीं न कहीं अपने ही काफले पर संदेह होने लगा है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा के भीतर अलग-अलग हांडी में खिचड़ी न पक रही हो, लेकिन रणनीतिक बढ़त के लिए वहां एक सुविचारित फ्रेमवर्क है। कांग्रेस को अपनी सतह पर आत्मविश्वास को चिन्हित करना है। इसमें दो राय नहीं कि आज की जनसभा मूड बदलने का दरिया साबित हो सकती है और आत्मविश्वास की चट्टान पर संगठन अपनी शक्ति को उकेर सकता है। फिलहाल कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी की तरह का कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो अपनी उपस्थिति का करिश्मा कर सकता है। अपनी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त राहुल गांधी शायद ही इस चुनाव में बार-बार कदम रखें, लेकिन प्रियंका गांधी अगर समय की सूत्रधार बन जाती हैं, तो कई सन्नाटे टूटेंगे और जनता के सामने कांग्रेस का विकल्प, अपनी संभावनाओं को पूरी तरह तराश पाएगा। कांग्रेस के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है, लेकिन आम आदमी पार्टी की रफ्तार ने पूरे परिदृश्य को बदल कर रख दिया है। गुजरात में 'आप' की मौजूदगी की तरलता किसी को भी गिरने और गिराने की आशंका को खारिज नहीं करती, लेकिन हिमाचल को अपने राजनीतिक आचरण पर भरोसा है। यह दीगर है कि पार्टी की संगठनात्मक शक्ति का क्षरण और पिछले दिनों में कुछ नेताओं की रुखसती का अफसोस है, फिर भी जनता की कचहरी में पार्टी के वकील खारिज नहीं होते। यही मुकदमा सोलन की गवाही में स्पष्ट होगा और यह इसलिए भी कि वहां पार्टी की सशक्त वकीन यानी प्रियंका गांधी पहली बार जन अदालत में उतरेंगी। कांग्रेस के लिए गुजरात के संकेत फिलहाल सामान्य या आशाजनक नहीं दिखाई दे रहे हैं, लेकिन हिमाचल से उसकी आशाएं पूरी तरह बरकरार हैं। यहां चार अच्छे कदम पार्टी को आगे ले जा सकते हैं, लेकिन एक घातक कदम चकनाचूर भी कर सकता है।
असली मुकाबला तो किसी मंच के बजाय जमीन के छोटे-छोटे अंश पर होगा। यहां नेताओं की पगडिय़ां अगर भिन्न-भिन्न रंगों में नर आईं, तो कोई भला नहीं कर पाएगा, लेकिन टिकट आबंटन में अगर जमीन का सच बरकरार रहा तो इस बार यहीं से कई राष्ट्रीय संदेश भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस के जो नेता अपने-अपने फलक को बड़ा करके देख रहे हैं, वे भी जमीन पर आ जाएं, क्योंकि जीतने के लिए सभी को कार्यकर्ता बनना पड़ता है। कांगे्रस की तमाम विडंबनाओं के बावजूद सोलन में प्रियंका गांधी का आगमन सीधे-सीधे उन लहरों को माप रहा है जिनके ऊपर सवार मोदी जी हिमाचल को अपनी यात्राओं की विरासत सौंप चुके हैं।
Rani Sahu
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