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- अमानवीयता की जेलें
Written by जनसत्ता: भारत में विभिन्न जेलों का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि वहां किस तरह की अव्यवस्था फैली हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के द्वारा पेश आंकड़ों से इस बात का जानकारी हासिल होती है कि भारत की जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदियों को बंद किया जाता है। छोटे-मोटे अपराधों में बंद व्यक्तियों को अदालत के द्वारा जमानत मिलने के बाद भी लोग जेल की चारदिवारी से बाहर नहीं आ सकते। क्षमता से चार गुना कैदी जेलों में देखे जा सकते हैं। अनेक बार मानव अधिकार आयोग इस तरह से जेलों में बंद कैदियों के विषय में विभिन्न तरह की टिप्पणी भी कर चुका है। इसके बावजूद कछुए की गति से भी धीमी गति से मामले अदालतों में चल रहे हैं।
अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए समय-समय पर विभिन्न तरह से मामले अक्सर तहत देखे जा सकते हैं। छोटे बड़े अपराधों का ठीक प्रकार से अध्ययन और उसका हल निकालने की कोशिश की जाए तो जेलों की हालत पर सुधार आ सकता है। सवाल है कि जिस तरह से जेलों में बंद कैदियों और विभिन्न राज्यों में इस प्रकार के आंकड़े सामने आए हैं, उसके हल के लिए सरकार किस तरह से पहल करेगी।
विश्व के सर्वाधिक युवा भारत में हैं, इसलिए हमें युवाओं का देश कहा जाता है। युवा आबादी ही देश की तरक्की को रफ्तार प्रदान कर सकते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि लाखों युवा बेरोजगार भटक रहे हैं और उन्हें अपनी क्षमता के लायक और गुजारे के लायक कोई नौकरी नहीं मिल रही है। हालत यह है कि ऊंची पढ़ाई करके डिग्री हासिल किए युवा भी अपना भविष्य सुरक्षित नहीं देख पा रहे हैं। अगर कहीं कुछ नौकरियां दिख भी रही हैं तो उनके स्वरूप अस्थायी प्रकृति के हैं और उनके लिए कम मेहनताना है। फिर अनुबंध आधारित रोजगार के अपने जोखिम हैं जो व्यक्ति को हर वक्त असुरक्षित अवस्था में और तनाव में रखता है।
सरकार को चाहिए कि वह युवाओं के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान दे। हालांकि सरकार में आने से पहले हर पार्टी युवाओं को रोजगार देने के वादे करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद सभी भूल जाते हैं। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तो भारत के युवाओं का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। युवा देश के लिए खास है। आवश्यकता है तो केवल उनके उचित मार्गदर्शन की और उनकी क्षमताओं का सही इस्तेमाल करने की।