सम्पादकीय

राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ : क्या इस बार पूरब से निकलेगा 'सूरज', या नारी शक्ति बढ़ाएगी शीर्ष पद की शोभा

Neha Dani
28 April 2022 1:51 AM GMT
राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ : क्या इस बार पूरब से निकलेगा सूरज, या नारी शक्ति बढ़ाएगी शीर्ष पद की शोभा
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को चौंका सकते हैं। आप जिस भी नेता से पूछिए, वह कहते हैं कि मोदी है, तो मुमकिन है।

आगामी जुलाई महीने में तीसरी बार देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाले एनडीए की ओर से प्रस्तुत उम्मीदवार के राष्ट्रपति बनने की संभावना है। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली एनडीए-एक की सरकार के दौरान वर्ष 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति चुने गए थे। उनके बाद 2017 में रामनाथ कोविंद भाजपा प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति चुने गए। हालांकि वास्तविकता यह है कि कोविंद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े रहे पहले राष्ट्रपति हैं।

अब प्रधानमंत्री मोदी के पास शीर्ष पद पर चयन का दूसरा मौका होगा। भाजपा किसको राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाएगी, यह सचमुच उत्सुकता और आश्चर्य का विषय है। क्या इस बार देश में किसी महिला को राष्ट्रपति चुना जाएगा? बहुत संभव है कि इस बार दक्षिण भारत की बारी हो। प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद के बाद जाहिर तौर पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में किसी दक्षिण भारतीय नेता का नाम उछाला जा सकता है। या प्रधानमंत्री मोदी इस बार पूर्वोत्तर से किसी जनजातीय नेता को अपना उम्मीदवार बनाएंगे?
उस स्थिति में निश्चित रूप से उपराष्ट्रपति कोई उत्तर भारतीय नेता होंगे। मोदी के लिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए प्रत्याशियों का चयन वास्तव में तनी हुई रस्सी पर चलने के समान है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है। उत्तर प्रदेश में भारी जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस के एक कट्टर प्रशिक्षित कार्यकर्ता को राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहेंगे।
यह निश्चित रूप से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को उत्साहित करेगा, खासकर तब, जब आरएसएस 2025 में अपना 100वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। विपक्ष की अनिश्चितता और अव्यवस्था निश्चित रूप से इसमें नरेंद्र मोदी की मदद करेगी। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा कांग्रेस में शामिल होने से इनकार करने के बाद विपक्ष पूरी तरह से अव्यवस्थित है। इसने राष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित विपक्षी उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया।
क्षेत्रीय पार्टियां धीरे-धीरे कांग्रेस से दूरी बना रही हैं। राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया के साथ इसमें गति आ सकती है। खैर कुछ भी हो, रामनाथ कोविंद के उत्तराधिकारी के रूप में अपने किसी उम्मीदवार का चयन भाजपा के लिए कितना आसान और कठिन होगा, यह सवाल फिलहाल राजनीतिक पर्यवेक्षकों के जेहन में है। प्रधानमंत्री मोदी आपदा को अवसर में बदलने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं। क्या वह इस बार भी किसी कुशल उम्मीदवार का चयन कर राष्ट्रपति बनवाने में सफल होंगे?
उन्हें इस बारे में आरएसएस से राजनीतिक दिशा-निर्देश लेना पड़ सकता है। एक तरह से अगले कुछ हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी के लिए आसान नहीं रहने वाले हैं। सच कहें, तो मोदी ने चुपचाप कुछ विपक्षी दलों का रुख भांपने की कवायद शुरू कर दी है। आगामी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की पृष्ठभूमि में हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात महत्वपूर्ण है।
चार राज्यों में भाजपा की जीत और कांग्रेस को उखाड़ फेंकने से 2024 के लोकसभा में आसानी से जीत हासिल करने में उन्हें मदद मिल सकती है। यह प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल का मध्यावधि मूल्यांकन का भी समय है। मोदी के लिए अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने में मुश्किलें आ सकती हैं। वर्ष 2017 में भाजपा के साथ अपार बहुमत था। उस समय शिवसेना व अकाली दल एनडीए का हिस्सा थे। अब उद्धव ठाकर और प्रकाश सिंह बादल के साथ भाजपा के रिश्ते कटु हैं और अन्नाद्रमुक के ओ. पनीरसेलवम एवं पलानीस्वामी कमजोर स्थिति में हैं।
वर्ष 2017 में तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की सरकार थी, जिसने रामनाथ कोविंद के लिए मतदान किया था। लेकिन फिलहाल तमिलनाडु में द्रमुक की सरकार है, जिसके साथ भाजपा के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। वर्ष 2017 में जम्मू और कश्मीर विधानसभा भी अस्तित्व में थी। अब केंद्र शासित प्रदेश बन गए जम्मू और कश्मीर में विधानसभा के चुनाव राष्ट्रपति चुनाव के बाद होने की संभावना है। इसलिए मोदी को कुल वोटों का 55 प्रतिशत प्राप्त करने में भारी संकट का सामना करना पड़ेगा।
भारत में लगभग 735 सांसद और 4,128 विधायक हैं, जिनके मतों की गणना राष्ट्रपति चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होती है। नरेंद्र मोदी इसका सामना कैसे करेंगे? हाल ही में हैदराबाद में आरएसएस नेताओं और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच हुई बैठक में इस विषय पर व्यापक चर्चा हुई। इसके बाद आरएसएस के दो दूतों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की।
ऐसी अटकलें हैं कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पास भारत के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए कुछ ही विकल्प हैं। कहा जाता है कि मोदी की भावी योजना एक महिला राष्ट्रपति की है और वह भी दक्षिण भारतीय राज्यों से। खासकर तमिलनाडु से। उनकी संभावितों की सूची में दो राज्यपाल शामिल हैं, जिस पर आरएसएस ने भी सहमति व्यक्त की है। वे नरेंद्र मोदी के काफी करीब हैं। दो मुख्यमंत्रियों के साथ प्रारंभिक चर्चा के लिए हाल ही में दो राज्यों की राजधानियों में विशेष दूत भी भेजे गए हैं।
भाजपा चाहे किसी को भी राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार चुने, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि न तो रामनाथ कोविंद को फिर से राष्ट्रपति बनाया जाएगा और न ही वेंकैया नायडू को प्रोन्नत किया जाएगा। इसलिए उच्च स्तर पर उम्मीदवारों की सूची अभी बन रही है। लेकिन व्यावहारिक रूप से जुलाई, 2022 के पहले सप्ताह में कोई फैसला लिया जा सकता है। और उस फैसले के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को चौंका सकते हैं। आप जिस भी नेता से पूछिए, वह कहते हैं कि मोदी है, तो मुमकिन है।

सोर्स: अमर उजाला

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