- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- चार्वाक के सिद्धांत से...
'यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतम् पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमन कुतः!' यह प्रसिद्ध श्लोक नास्तिक शिरोमणि महर्षि 'चार्वाक' का है। इसका अर्थ है कि जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेकर घी पियो, देह के भस्म हो जाने के बाद फिर जन्म कहां होता है। आचार्य चार्वाक के इस सिद्धांत का पालन हमशाया मुल्क पाकिस्तान पूरी शिद्दत से कर रहा है, मगर हमारे देश के राज्यों की सरकारें भी चार्वाक ऋषि के इस सूत्र की ओर मुखातिब हो रही हैं। राज्यों में सरकारें तब्दील होते ही नई हुकूमत को 'कर्ज' विरासत में मिलता है यानी देश के लगभग सभी राज्य हजारों करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे हैं, मगर चुनावी समर में इक्तदार हासिल करने के लिए तमाम सियासी दल मुफ्तखोरी की सौगातों की घोषणा करने में पीछे नहीं रहते। जबकि मुफ्तखोरी की घोषणाओं का असर सरकारी खजाने पर ही पड़ता है। सियासी दलों द्वारा चुनावों से पूर्व मतदाताओं को मुफ्त के तोहफे व लोकलुभावन वादों पर देश की शीर्ष अदालत केंद्र सरकार व चुनाव आयोग को नोटिस देकर जवाब तलब कर चुकी है। देश के वरिष्ठ नौकरशाह प्रधानमंत्री के साथ मैराथन बैठक में चुनावी सौगातों पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। मगर देश की सियासत में कुछ वर्ष पूर्व शुरू हुई मुफ्तखोरी की रिवायत पर अब सियासी दलों में प्रतिस्पर्धा बढ़ चुकी है।