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हिमाचल भाजपा के भीतर कोई न कोई उलझन जरूर है जिसके कारण कहीं-कहीं दांव उलटे पड़ रहे हैं
By: divyahimachal
हिमाचल भाजपा के भीतर कोई न कोई उलझन जरूर है जिसके कारण कहीं-कहीं दांव उलटे पड़ रहे हैं। खीमीराम, इंदु वर्मा के बाद जिस नाटकीय ढंग से पालमपुर में एक महिला नेत्री का पटका बदला है, उसे देखते हुए राजनीतिक सांझ और सवेरे का द्वंद्व बढ़ता हुआ नजर आता है। एक बीडीसी सदस्य रिंपी देवी का भाजपा में आगमन तथा प्रस्थान जिस तरह हुआ, उससे यह साबित है कि सियासी सर्कस में अब रिंग मास्टर भी धोखा खा रहे हैं या यह नए संदर्भों का ऐसा खेल है जिसके तहत न तो अपनों की पहचान सही से हो रही है और न ही परायों को परखा जा रहा है। अपनों की फेहरिस्त में पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि या गुलाब सिंह की भृकुटियां जिस तरह तनी हुई हैं, उन्हें अर्थहीन समझना पार्टी के मौजूदा हालात के लिए सही कैसे हो सकता है। बेशक दो एमएलए का सीधा लाभ सत्तापक्ष कमा चुकी है, लेकिन चुनावी कमाई के लिए यह दांव टेढ़ी लकीर भी खींच रहा है। भाजपा के लिए पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि का हालिया बयान चुनावी आस्था को अस्त-व्यस्त कर सकता है। पूर्व मंत्री ने अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए देहरा और सुलह विधानसभा क्षेत्रों की दावेदारी को सार्वजनिक मोर्चा बना दिया है, तो पार्टी इसके भीतर अपने चक्रव्यूह की हालत देख सकती है। कल अगर हर नेता के पास चुनाव लडऩे के स्वयंघोषित विकल्प ही बच जाएं, तो आधिकारिक सूचियों के प्रत्याशी क्या कर पाएंगे। हालांकि भाजपा का मिशन रिपीट कई चेहरे बदल कर पूरा होता है तथा इस रणनीति पर चलते हुए नए उम्मीदवारों की फेहरिस्त में विनेबिलिटी तराशी जा रही है। बेशक प्रत्याशी बदलने का मजमून भाजपा को तरोताजा व ऊर्जा से भर रहा है, लेकिन तैयारियों के गर्ज से ऐसे इंतखाब को मैदान पर डट जाने का आदेश चाहिए। सोशल मीडिया पर नए उम्मीदवारों की गतिविधियों का मूल्यांकन करें तो कई अधिकारी, डाक्टर, इंजीनियर और कार्यकर्ता मिल जाएंगे, लेकिन ये सभी अनिश्चय और आशंकाओं की भीड़ में घूम रहे हैं। ऐसे में भाजपा अपने कुनबे को महत्त्वाकांक्षी होने से तो नहीं रोक सकती, अलबत्ता स्वयंभू उम्मीदवारों में से कुछ पर गंभीरता से फैसला करना होगा। यह इसलिए भी कि भाजपा की चुनावी मशीनरी को इतना चुस्त दुरुस्त किया जा चुका है या इसे विजयी परिणति तक पहुंचने का ऐसा आत्मबल जगा दिया है कि अब हर खास और आम भी चुनाव का आम खाना चाहता है। कमोबेश हर विधानसभा में विधायक या मंत्री के खिलाफ कुछ नए चेहरे खड़े हैं। ये वही चेहरे हैं जिन्होंने साढ़े चार साल पार्टी की हर मुराद, सम्मेलन, स्टंट और इवेंट को शिद्दत से ढोया है। पार्टी के हर कार्यकर्ता की परवरिश में उम्दा साबित होने की होड़ ने संगठन की सफलता का तापमान बढ़ा दिया है, लेकिन अब अघोषित उम्मीदवारों से घोषित होने की प्रतिस्पर्धा का दौर शुरू हो रहा है। यह पार्टी के भीतर की महत्त्वाकांक्षा है जिसे एक ओर अनुशासित और नियंत्रित रखने की जरूरत है, तो दूसरी ओर साफ छवि के लिए बदलाव की अति आवश्यकता भी है। जाहिर है बदलते संयोग और समीकरण नेताओं की निजी आस्थाओं को विचलित कर रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के कुछ नेताओं ने पार्टी से किनारा करते हुए दूसरी धारा में डुबकी लगा दी, लेकिन यहां उस खुली चुनौती को समझने की जरूरत है जहां वरिष्ठता का स्वाभिमान इंगित है। रविंद्र सिंह रवि ने दो विधानसभा क्षेत्रों पर दावा जताकर अपनी वरिष्ठता और पृष्ठभूमि का हवाला दिया है और अगर कल इसी तरह बदलाव के स्थान पर दावों का तीर कमान निशाने साधना शुरू कर दे, तो कई तरह के नुकसान की गुंजाइश ही बढ़ेगी।

Rani Sahu
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