सम्पादकीय

PM Modi : पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की बात यूं ही नहीं कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

Rani Sahu
14 April 2022 3:28 PM GMT
PM Modi : पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की बात यूं ही नहीं कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
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हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से बात करते हुए कहा कि यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है

डा. जयंतीलाल भंडारी।

हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से बात करते हुए कहा कि यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है। उनके इस कथन का सीधा अर्थ है कि भारत में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न है। देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण दो हितकारी बातें दिखाई दे रही हैं। पहली, सरकार के मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम के कारण न सिर्फ कोविड महामारी की वजह से लगाए गए लाकडाउन की मार से गरीबों को बचाया जा सका, बल्कि इस समय दुनिया की तुलना में देश में महंगाई भी कम है। दूसरी, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने वैश्विक खाद्यान्न जरूरतों की पूर्ति के मद्देनजर गेहूं निर्यात का अभूतपूर्व मौका अपने हाथों में ले लिया है। उल्लेखनीय है कि देश में गेहूं सहित खाद्यान्नों के रिकार्ड उत्पादन का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। यह आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है। खाद्य मंत्रालय के खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकार्ड 31.60 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है, जो पिछले फसल वर्ष में 31.07 करोड़ टन रहा था। इस वर्ष गेहूं का उत्पादन रिकार्ड 11.13 करोड़ टन रहने का अनुमान है, जो कि पिछले वर्ष 10.95 करोड़ टन रहा था। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.79 करोड़ टन रिकार्ड अनुमानित है। साथ ही इस साल तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन रह सकता है, जो कि पिछले साल के 3.59 करोड़ टन से ज्यादा है।

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के मुताबिक किसानों को दी जा रही पीएम सम्मान निधि, विभिन्न कृषि योजनाओं के सफल क्रियान्वयन और किसानों के परिश्रम से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष-प्रतिवर्ष रिकार्ड ऊंचाई बनाते हुए दिखाई दे रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम गरीब वर्ग को सहारा देते हुए दिखाई दे रहा है। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के एक कार्य पत्र में कहा गया है कि सरकार के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने लाकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए पीएमजीकेएवाई की शुरुआत की थी। इसके तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है। अप्रैल 2020 से लेकर इस साल मार्च तक सरकार इसपर 2.60 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन देने से सरकार पर 80 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा। इस प्रकार खाद्य सुरक्षा से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी योजना पर सरकार इस साल सितंबर तक 3.40 लाख करोड़ रुपये खर्च कर देगी। खास बात है कि एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने में इस योजना का लाभ ले सकता है। यदि कोरोना काल में सरकार के ऐसे सफल अभियान नहीं होते तो देश में बहुआयामी गरीबी और बढ़ी हुई दिखाई देती।
कोविड-19 की आपदाओं के बीच भारत ने वैश्विक स्तर पर भी जरूरतमंद देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति में अहम भूमिका निभाई है। इनमें अफगानिस्तान और श्रीलंका प्रमुख है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते कई जरूरतमंद देशों से भारत के गेहूं सहित अन्य खाद्यान्नों की मांग बढ़ गई है। रूस और यूक्रेन मिलकर वैश्विक गेहूं आपूर्ति के करीब एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं, लेकिन युद्ध के चलते इन देशों से गेहूं की वैश्विक आपूर्ति रुक गई है। ऐसे में 24 फरवरी के बाद भारत से गेहूं निर्यात में तेज इजाफा हुआ है। स्थिति यह भी है कि अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के अधिकांश देश अपनी जरूरत के लिए भारत से गेहूं की मांग करने लगे हैैं। ऐसे में रूस और यूक्रेन की अनुपस्थिति की भरपाई भारत काफी हद तक कर रहा है। इस समय भारत ही एकमात्र देश है, जिसके पास बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार है। आसान उपलब्धता के अलावा भारत को इन देशों को गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश आदि लगातार निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें घरेलू बाजार से काफी अधिक हैं। ऐसे में निर्यातक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में ऊंचे दाम पर गेहूं खरीद रहे हैं। सरकार एमएसपी पर खरीद करती है। चूंकि घरेलू गेहूं उत्पादन में भी कोई कमी आने की संभावना नहीं है। ऐसी स्थिति ने गेहूं और धान को लाभप्रद वाणिज्यिक फसल बना दिया है, जिस पर उत्पादकों को तयशुदा अच्छी कीमत मिल रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत से वित्तीय वर्ष 2021-22 में लक्ष्य से भी अधिक 75 लाख टन से अधिक गेहूं का निर्यात हो चुका है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में दोगुने से अधिक के रिकार्ड स्तर को छू सकता है।
हम उम्मीद करें कि यूक्रेन संकट के बीच देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण पीएमजीकेएवाई के तहत इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त में राशन देने से उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी। साथ ही भारत दुनिया में विश्वसनीय अन्न निर्यातक देश के रूप में उभरता हुआ दिखाई देगा।
Rani Sahu

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