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- कालेज स्तर पर खेलों से...
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अतंर्गत सौ से भी अधिक कालेज आते हैं। इस सत्र में विश्वविद्यालय की खेलें केवल औपचारिकता तक ही सीमित रह गई हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पास अपना नियमित शारीरिक शिक्षा व अन्य गतिविधियों का निर्देशक भी नहीं है। संगीत विभाग के प्रोफेसर से खानापूर्ति करवाई जा रही है। इस वर्ष कालेज प्राचार्यों का रवैया भी असहयोग का ही रहा है। हमीरपुर का सरकारी कालेज जो एथलेटिक्स का गढ़ है, वहां विश्वविद्यालय प्रतियोगिता करवाने के लिए बिल्कुल इनकार किया जाता है। जोगिंद्रनगर कालेज का प्रशासन क्रास कंटरी में विजेता महिला टीम को अपने प्रशिक्षक के साथ फोटोशूट करने पर तकलीफ हो जाती है। नालागढ़ कालेज का प्रशासन लिखित में विश्वविद्यालय से अपने यहां खेल प्रतियोगिता आबंटित करने के लिए साफ मना करता है। क्या हिमाचल प्रदेश शिक्षा के कर्णधार शिक्षा की परिभाषा ही भूल गए हैं। शिक्षा का मतलब है मानव का सर्वांगीण विकास जो शारीरिक व मानसिक दोनों होता है। इस विषय पर सरकार व शिक्षा विभाग को सोच-समझ कर निर्णय लेना होगा कि भविष्य में खेलों के साथ इस तरह खिलवाड़ न हो। ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले अधिकांश खिलाड़ी महाविद्यालय व विश्वविद्यालय से ही निकल कर आते हैं। अकादमिक विषयों की तरह खेल भी शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है। शारीरिक फिटनेस का उच्चतम स्तर ही खेलों में उत्कृष्ट परिणामों का मुख्य कारण है। जिस देश की जवानी जितनी फिट होगी वहां पर खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाना उतना ही आसान होता है। इसलिए शिक्षा संस्थानों में हर विद्यार्थी की फिटनेस के लिए कार्यक्रम होना चाहिए जिससे अच्छे खिलाड़ी ही नहीं, फिट नागरिक भी देश को मिल सकें। महाविद्यालय स्तर पर खेलों के लिए जहां स्तरीय खेल ढांचे का होना बहुत जरूरी है, वहीं पर ज्ञानवान प्रशिक्षकों की भी बहुत ज्यादा जरूरत है। देश के अन्य राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश में भी महाविद्यालय स्तर पर खेलों का हाल ज्यादा ठीक नहीं है। राज्य के अधिकतर महाविद्यालय अच्छे खिलाडि़यों को मंच देने में नाकाम रहे हैं। कनिष्ठ खिलाडि़यों के लिए नजर दौड़ा कर देखें तो उनके प्रशिक्षण के लिए बहुत अच्छा तो नहीं, मगर प्रशिक्षण शुरू करने काबिल व्यवस्था मौजूद है।