सम्पादकीय

पीके की सफलता की कहानी, न तो ममता को प्रोजेक्ट कर पाए और न ही कांग्रेस के हो पाए

Rani Sahu
8 May 2022 9:57 AM GMT
पीके की सफलता की कहानी, न तो ममता को प्रोजेक्ट कर पाए और न ही कांग्रेस के हो पाए
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प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) द्वारा एक नया राजनीतिक संगठन शुरू करने की खबरों को लेकर बिहार के राजनीतिक हलकों (Bihar Politics) में व्याप्त जोरदार अटकलों का बाजार तब जाकर थमा

अजय झा |

प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) द्वारा एक नया राजनीतिक संगठन शुरू करने की खबरों को लेकर बिहार के राजनीतिक हलकों (Bihar Politics) में व्याप्त जोरदार अटकलों का बाजार तब जाकर थमा, जब उन्होंने गुरुवार को आधिकारिक तौर पर गैर-राजनीतिक मंच जन सुराज (Jan Suraj) का आगाज़ करते हुए प्रदेश भर में 3,000 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की घोषणा की. किशोर राजनीतिक तौर पर चतुर व्यक्ति हैं, हो सकता है कि अपने गृह राज्य में राजनीतिक तापमान बढ़ाने और राज्य के राजनीतिक रूप से अशांत माहौल का परीक्षण करने के लिए उन्होंने एक नई पार्टी बनाने के बारे में स्पष्ट संकेत दिए हों. इस तरह उन्होंने औपचारिक रूप से जन सुराज अभियान लॉन्च करने से पहले ही अपना मिशन पूरा कर लिया क्योंकि सभी प्रमुख राजनीतिक ताकतों ने उनके इस कदम की आलोचना की.
बीजेपी ने जहां उन्हें एजेंट और पॉलिटिकल ब्रोकर करार दिया, वहीं बिहार के प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा कि किशोर पूरे देश में घूम-घूमकर बिहार लौट आए हैं और उनके लिए बिहार में भी कोई जगह नहीं है.
प्रशांत किशोर का असली मकसद क्या है?
हालांकि, किशोर ने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की अपनी आरंभिक योजनाओं को टालते हुए कहा कि अगले कुछ वर्षों में बिहार में कोई चुनाव नहीं होने वाला है. इस तरह उन्होंने 'जन सुराज' को बाद में राजनीतिक दल में बदलने का विकल्प खुला रखा. संभव है कि उन्होंने अपनी तैयारी के लिए समय लिया हो. विचार करिए, किशोर पांच से छह महीने हर दिन पैदल यात्रा करेंगे और जनता की आकांक्षाओं को समझने के लिए उनके साथ बातचीत करेंगे जिन्हें उन्होंने लोकतंत्र का 'असली स्वामी' कहा है. बिहार में जन्मे किशोर से यह जानने की उम्मीद की जाती है कि उसके गृह राज्य के लोग क्या चाहते हैं.
बिहार से करेंगे जन सुराज अभियान की शुरुआत
बिहार एक गरीब राज्य है, जो विकास, आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के लिए बेताब है, ताकि आजीविका की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करने वाले युवाओं के लिए अधिक रोजगार सृजित हो सके. वॉकथॉन (walkathon) आयोजित करने के पीछे किशोर का असली मकसद केवल यह महसूस करना है कि क्या उनके लिए राजनीतिक रूप से कोई गुंजाइश है और क्या वह वही कर सकते हैं जो उनके कस्टमर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने बदलाव और बेहतर शासन के नाम पर मतदाताओं को लुभाने का काम दिल्ली और पंजाब में किया.
क्या प्रशांत किशोर जन नेता बन पाएंगे?
कुल मिलाकर, किशोर ने कठिन जवाब का पता लगाने के लिए अपने लिए एक साल का समय लिया है. अब से वे उन 18,000 प्रमुख व्यक्तियों के साथ बातचीत करने का इरादा रखते हैं जिनकी पहचान उनकी फर्म I-PAC ने की है. बिहार के विकास पर उनकी राय जानने के अलावा, यदि संभव हो तो, उनसभी लोगों को अपने पाले में लाने का उनका प्रयास होगा. फिर 2 अक्टूबर से वे अपनी पदयात्रा शुरू करेंगे जो अगले साल मार्च या अप्रैल तक समाप्त होने वाली है. तब 2024 आम चुनाव (2024 General Elections) में महज एक साल का समय होगा. यदि वे एक जन नेता बनने के अपने प्रयास में सफल हो जाते हैं, तो वे किसी भी प्रकार की सौदेबाजी करने की बेहतर स्थिति में होंगे, भले ही वह अपनी पार्टी की लॉन्चिंग टाल दें.
प्रशांत किशोर पर लालू यादव ने कसा तंज
लालू प्रसाद ने जो उपेक्षापूर्ण बयान दिया कि किशोर पिछले एक दशक में देश भर में घूमे हैं, असत्य नहीं है. वह अब तक कम से कम सात पार्टियों से जुड़े रहे हैं. इसमें बीजेपी और जनता दल-यूनाइटेड (JD-U) शामिल है. बीजेपी में उन्होंने राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में अपने संबंध ख़राब कर लिए और जदयू के साथ वे उपाध्यक्ष के रूप में जुड़े, जिसने उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नेता बना दिया था. इससे पहले, उन्होंने जद-यू के साथ महागठबंधन की जीत के लिए एक प्रोफेशनल रणनीतिकार के तौर पर काम किया. जद-यू 2015 के विधानसभा चुनावों मेंएक घटक दल था.
किशोर ने कई पार्टियों के साथ काम किया
इसके बाद किशोर कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSR Congress Party) के साथ पेशेवर रणनीतिकार के तौर परजुड़े. यह उनके लिए बड़ी सफलता थी जिसने उन्हें मास्टर ब्रेन और बेहद सफल रणनीतिकार के रूप मेंपेश किया. हाल ही में उन्होंने अपनी फर्म आई-पीएसी के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति (TSR) के साथ प्रोफेशनल डील पर पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत उनका काम 2024 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में सफलता के लिए पार्टी को मार्गदर्शन देना और पार्टी के संस्थापक और मौजूदा मुख्मंत्री के चंद्रशेखर राव को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करना शामिल है.
ममता को मोदी के खिलाफ प्रोजेक्ट करने में फ्लॉप हुए प्रशांत
केसीआर को अपनी सेवाएं देने से पहले प्रशांत किशोर ने 2024 के आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विपक्ष के चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. हालांकि अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद वह विफल रहे और बनर्जीके साथ अपने संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया. वह किशोर से खुश नहीं थीं क्योंकि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) गोवा विधानसभा चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफलरही थी. बनर्जी के लिए तृणमूल कांग्रेस पार्टी को दूर गोवा ले जाना किशोर की योजना का हिस्सा था.
राजनीतिक भाग्य आजमाने बिहार पहुंचे पीके
वह हाल तक कांग्रेस पार्टी में अपने प्रवेश के लिए सक्रिय रूप से बातचीत कर रहे थे और उन्होंने भारतकी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, जो प्रत्येक चुनाव के साथ धीरे-धीरे डूब रही है, को पुनर्जीवित करने के बारे में एक विस्तृत योजना दी थी. किशोर ने कुछ बाधाओं का सामना करने के बाद कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ने की घोषणा की और अपने राजनीतिक भाग्य की तलाश में सीधे बिहार चले गए, कहीं ऐसान हो कि क्लाइंट के तौर पर सिर्फ टीआरएस (TRS) और तृणमूल कांग्रेस के बचे होने के बाद वे राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक हो जाएं.
Rani Sahu

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