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- पीसमील या बंधुआ...
सडक़ पर सरकारी नौकरी की कोई न कोई कैटेगरी, हर बार वेतन विसंगतियों की खाल उधेड़ती है, लेकिन हिमाचल में वर्षों से यह हो रहा है। इस बार हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की छत पर पीसमील वर्कर सवार हैं। कमोबेश हर विभाग ने ऐसी शाखाओं पर अप्रत्यक्ष नियुक्तियों की परिभाषा विकसित की, जो असामान्य चयन का सियासी समझौता ही तो है। पीसमील वर्कर भी दरअसल एचआरटीसी वर्कशॉप की ऐसी दिहाड़ी है, जो समय के साथ नौकरी का रूप धारण करना चाहती है। एचआरटीसी के 28 डिपुओं के 925 पीसमील वर्कर दरअसल ऐसी रीढ़ बन चुके हैं, जिन्हें चाहकर भी परिवहन निगम नजरअंदाज नहीं कर सकता। कार्यशाला से दफ्तर तक ड्यूटी बजा रहे ये कर्मचारी दरअसल दैनिक वेतन भोगी की श्रेणी में भी नहीं दिखाई देते। आठ से दस साल के सेवाकाल के बाद भी वेतन के नाम पर ये पांच से छह हजार बटोर पाते हैं। ऐसे में पीसमील वर्कर खुद को कर्मचारी श्रेणी में डालने के साथ-साथ, अनुबंध के दायरे में आना चाहते हैं।
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