सम्पादकीय

पीसमील या बंधुआ दिहाड़ी

Rani Sahu
21 Aug 2021 5:20 AM GMT
पीसमील या बंधुआ दिहाड़ी
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सडक़ पर सरकारी नौकरी की कोई न कोई कैटेगरी, हर बार वेतन विसंगतियों की खाल उधेड़ती है, लेकिन हिमाचल में वर्षों से यह हो रहा है

सडक़ पर सरकारी नौकरी की कोई न कोई कैटेगरी, हर बार वेतन विसंगतियों की खाल उधेड़ती है, लेकिन हिमाचल में वर्षों से यह हो रहा है। इस बार हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की छत पर पीसमील वर्कर सवार हैं। कमोबेश हर विभाग ने ऐसी शाखाओं पर अप्रत्यक्ष नियुक्तियों की परिभाषा विकसित की, जो असामान्य चयन का सियासी समझौता ही तो है। पीसमील वर्कर भी दरअसल एचआरटीसी वर्कशॉप की ऐसी दिहाड़ी है, जो समय के साथ नौकरी का रूप धारण करना चाहती है। एचआरटीसी के 28 डिपुओं के 925 पीसमील वर्कर दरअसल ऐसी रीढ़ बन चुके हैं, जिन्हें चाहकर भी परिवहन निगम नजरअंदाज नहीं कर सकता। कार्यशाला से दफ्तर तक ड्यूटी बजा रहे ये कर्मचारी दरअसल दैनिक वेतन भोगी की श्रेणी में भी नहीं दिखाई देते। आठ से दस साल के सेवाकाल के बाद भी वेतन के नाम पर ये पांच से छह हजार बटोर पाते हैं। ऐसे में पीसमील वर्कर खुद को कर्मचारी श्रेणी में डालने के साथ-साथ, अनुबंध के दायरे में आना चाहते हैं।

टूल डाउन स्ट्राइक के चलते यह वर्ग प्रभावशाली इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि हिमाचल परिवहन की बसों का रखरखाव पीसमील वर्कर के सहारे ही चल रहा है, जबकि कार्यशालाओं में स्थायी कर्मचारी न के बराबर हैं। यह दीगर है कि वर्कशॉप को सरकारी ढर्रे से अलग करने के लिए पीसमील वर्कर के जरिए एक अनूठा प्रयास हुआ, लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र में होने का संघर्ष तैयार है। कुछ इसी तरह आउटसोर्स कर्मचारियों के प्रति अगर सियासी दिल पसीज सकता है, तो वर्कशॉप की कालिख से रंगे पीसमील वर्कर की मेहनत और मेहनताने की बात पर तवज्जो देनी होगी। टूलडाउन स्ट्राइक का परचम 28 डिपुओं के लिए सही नहीं और न ही इस तरह का व्यवहार प्रदेश के लिए सही होगा। बेशक एचआरटीसी भारी घाटे में है और अगर कैग की रिपोर्ट का हवाला लें तो 1232.48 करोड़ के घाटे में यह निगम मुंह छिपाता घूम रहा है, लेकिन इसके लिए वर्कशॉप में पसीना बहा रहे 925 पीसमील वर्कर दोषी नहीं।
दोषी है तो 28 डिपो की प्र्रबंधकीय व्यवस्था, अनावश्यक प्रबंधकीय नियुक्तियां, खरीद, काम करने का वर्तमान ढर्रा तथा राजनीतिक हस्तक्षेप। अनावश्यक डिपुओं और प्रबंधकों के बोझ तले सरकारी बसों का तामझाम किसी भी तरह से उचित व्यवस्था व व्यवसाय नहीं। एचआरटीसी की प्रतिस्पर्धा जिस निजी क्षेत्र से है, वहां उच्च स्तरीय प्रबंधकों के बजाय मिडल श्रेणी कर्मचारियों के सहारे सारी व्यवस्था चलती है। एचआरटीसी में सार्वजनिक धन का निवेश केवल राजनीतिक तालियां बजाता रहा, जबकि आधुनिक बस स्टैंड के मार्फत कई व्यावसायिक परिसर तैयार हो सकते थे। अगर ऊना के बस स्टैंड की शक्ल में निजी कंपनी कमा सकती है, तो ऐसे निवेश की भूमिका में परिवहन निगम क्यों नहीं अपनी बेशकीमती संपत्तियों का सदुपयोग करता है। एचआरटीसी की परिकल्पना में सडक़ परिवहन ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश के लिए वैकल्पिक या एरियल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क में आगे आना चाहिए। विडंबना यह है कि कभी बॉडी बिल्डिंग जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाएं बनीं, लेकिन वहां भी सारा ढांचा बेकार सिद्ध हुआ। ऐसे में बेशक घाटे से बचना होगा, लेकिन क्या निम्र श्रेणी कर्मचारियों को बंधुआ दिहाड़ी में बांध कर रखा जा सकता है। पीसमील वर्कर अपने कौशल के कारण परिवहन निगम की सेवा कर रहे हैं। सारे देश में यूं तो कौशल विकास का झंडा बुलंद किया जा रहा है। लेकिन परिवहन निगम इस वर्ग की दिहाड़ी को कर्मचारी की श्रेणी में डालने से मुकर रही है। यह न्यायोचित नहीं है। सेवा शर्तों का मूल्यांकन करते हुए इस वर्ग के औचित्य को स्वीकार करना ही होगा।

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