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- पीएफआई: देर से उठा सही...
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22 तथा 27 सितम्बर को पीएफआई यानी कट्टरवादी इस्लामी आतंकी संगठन पर छापों के बाद 28 सितम्बर को उस पर पाबन्दी लगा दी गयी है। इसी के साथ नौ अन्य कट्टरवादी संगठनों पर भी रोक लगी है।
12 जुलाई की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पटना रैली की सन्देह जनक घटनाओं और फुलवारी शरीफ में पकड़े गये राष्ट्रविरोधी व हिन्दू विरोधी दस्तावेजों के बरामद होने के बाद एक के बाद एक पीएफआई के खूंखार कार्यों एवं भयंकर इरादो की पोल खुलती चली गयी।
गृह मंत्रालय का कहना यह है कि पीएफआई अन्तराष्ट्रीय इस्लामी आतंकी संगठन आईएसआईएल के सम्पर्क में था, तो उसका इरादा 2047 तक भारत को पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र बनाने का था। इस कार्य के लिए उसे विदेशों से मोटी धन राशी प्राप्त हो रही थी। एक वर्ष के भीतर अरब देशों से 120 करोड़ रूपये प्राप्त होने के पुख्ता सबूत ईडी को प्राप्त हुए हैं। 40 हजार रूपये प्रतिमास के वेतन पर कट्टरवादी युवकों, वकीलों, पत्रकारों, सोशल एक्टीविस्ट तथा मिलिट्री ट्रेनिंग देने वालों को दिये जा रहे थे।
यह कहना गलत है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मुहिम पीएफआई ने शुरू की यह कार्य तो छठी शताब्दी से शुरू हो गया था। उन्नीसवीं शताब्दी में मुस्लिम लीग ने इस पर जोर-शोर से कार्य शुरू किया। देश का विभाजन भी इसी योजना का अंग है। देश के भीतर गज़वा-ए-हिन्द की योजना में कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी सेक्युलरवादी लोग सहायक बने है। इस भयंकर षड्यंत्र को गंभीरता से समझने की आवश्यकता है। यह सन्तोष का विषय है कि केन्द्र ने बहुत विलम्ब से कदम उठाया। अभी दशकों तक राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत एवं सावधान रहने की आवश्यकता है।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'
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