सम्पादकीय

हवा में अटके लोग

Rani Sahu
11 April 2022 5:28 PM GMT
हवा में अटके लोग
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झारखंड में देवघर रोपवे हादसे पर जितना दुख जताया जाए, कम है

झारखंड में देवघर रोपवे हादसे पर जितना दुख जताया जाए, कम है। तीर्थयात्रा पर गए लोगों के साथ हुए इस हादसे में मौत भी हुई है, लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं और 40 से ज्यादा यात्री घंटों तक रोपवे पर अपने-अपने केबिन में कैद भी रहे हैं। वैसे रोपवे का तार टूटने की यह घटना विरल ही है। इसके पहले 2017 में गुलमर्ग गोंदोला रोपवे हादसा भी याद आता है, तब वह हादसा केबल टूटने से नहीं हुआ था, तेज हवा के कारण एक पेड़ रोपवे की तार और केबिन पर गिर पड़ा था, तब आठ लोगों की मौत हो गई थी। आमतौर पर भारतीय रोपवे सुरक्षित हैं, इसलिए देवघर का त्रिकुट पर्वत रोपवे हादसा ज्यादा चिंता खड़ी कर रहा है। रात भर लोग ऐसे फंसे रहे कि उन तक भोजन-पानी पहुंचाने में भी कामयाबी नहीं मिली। सुबह होने के बाद ही फंसे हुए लोगों को एयरफोर्स व एनडीआरएफ की टीम ने बचाने का काम शुरू किया। क्या बचाव का काम तत्काल शुरू नहीं हो सकता था? क्या रात में ऐसे क्षेत्रों में हम राहत कार्य चलाने में सक्षम नहीं हैं?

यह बड़ी चिंता की बात है कि हादसे के 19 घंटे बाद ही पहले व्यक्ति को बचाकर निकाला गया। अनेक लोग 24 घंटे बाद भी फंसे रहे, क्योंकि दुर्गम घाटियों में ऐसे निर्माण हो तो जाते हैं, लेकिन हादसे या रोपवे के रुकने की स्थिति में लोगों को निकालने की बात दूर, लोगों तक भोजन-पानी पहुंचाने की भी सुविधा नहीं होती है। साल 2017 में स्पेन में जब रोपवे हादसा हुआ था, तब 200 से ज्यादा यात्री फंसे थे, लेकिन उन तक भोजन-पानी पहुंचाने में खास समस्या नहीं हुई थी। स्पेन में बचाव कार्य में अग्निशमन कर्मचारियों के कौशल का भी उपयोग हुआ था। यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि बचाव कार्य में अगर पूरी विशेषज्ञता का उपयोग होता, तो इतने घंटों तक यात्रियों को जीवन-मौत के बीच न झूलना पड़ता। अब यह देखने वाली बात है कि क्या इस हादसे या फंसे हुए लोगों को गंभीरता से नहीं लिया गया? क्या रोपवे पर कोई बड़ा अधिकारी या नेता फंसा होता, तब भी बचाव में इतना ही समय लगता? देवघर की इस घटना से जो संदेश दुनिया में गया है, उससे भारतीय रोपवे पर लोगों का अविश्वास बढ़ेगा।
झारखंड के स्वास्थ्य एवं आपदा प्रबंधन मंत्री ने कहा है कि देवघर रोपवे दुर्घटना की जांच कराई जाएगी और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, यह समय राजनीति का नहीं, बल्कि पीड़ितों को सहायता पहुंचाने का है। वाकई यह समस्या या हादसा राजनीति का मसला नहीं है। यह ऐसे 40 से ज्यादा आम लोगों का मसला है, जो रोपवे पर लगभग 2000 फीट की ऊंचाई पर घंटों फंसे रहे। बेशक, वहां दुर्गम भौगोलिक स्थिति है, जहां जल्दी पहंुचना लगभग असंभव है, लेकिन तब भी यह सवाल खड़ा होता है कि रोपवे निर्माता कंपनियां क्या बचाव के बारे में सोचकर निर्माण करती हैं? भारत में जो 30 से ज्यादा रोपवे चल रहे हैं, क्या उनकी संचालन व बचाव व्यवस्था को पूरी तरह से परख लिया गया है। यह समय है कि हम ऐसे सभी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की गुणवत्ता और रखरखाव को जांच लें। सुधार समय की मांग है। देश में रोपवे खूब बन रहे हैं, उन सबमें बचाव के अतिरिक्त प्रबंध भी होने चाहिए। केवल रोपवे निर्माण ही पर्याप्त नहीं है। रोपवे कंपनियों की अपनी बचाव व्यवस्था और आपदा प्रबंधन की नियोजित-लिखित रणनीति भी होनी चाहिए, ताकि सेना और आपदा प्रबंधन टीम को बचाव में कहीं परेशानी न आए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

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