सम्पादकीय

रोगियों को इलाज के साथ सहानुभूति भी जरूरी

Gulabi
6 Nov 2021 5:05 AM GMT
रोगियों को इलाज के साथ सहानुभूति भी जरूरी
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रोगियों को इलाज

कैंसर के इलाज के लिए लोगों को लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं और ऐसे में वे आर्थिक तौर पर कमजोर होते जाते हैं। मुंह, गले, जबड़े या जीभ के ऑपरेशन के बाद शारीरिक बनावट और कार्य क्षमता भी प्रभावित होती है। इस प्रकार कैंसर पीडि़तों को अनेक प्रकार के नुकसान सहन करने पड़ जाते हैं। इसलिए कैंसर के प्रति जागरूकता अनिवार्य है…

वैसे तो इस वर्ष नवंबर माह को कैंसर जागरूकता मास के रूप में मनाया जा रहा है और इसके लिए इस माह के कुछ दिन दाड़ी-मूंछ (शेविंग) न बनवा कर समर्थन का तरीका भी अपनाया जा रहा है, परंतु कैंसर के प्रति जागरूकता अभियान में हम सबको अपना सहयोग देना चाहिए। सात नवंबर को कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाएगा। कैंसर से प्रतिवर्ष लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है, परंतु इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि इससे पीडि़त लोगों को समाज की उपेक्षा भी सहन करनी पड़ती है। इतना ही नहीं, कई बार तो परिवार के सदस्य भी उन्हें ताने देने से बाज नहीं आते। यह अलग बात है कि उन्हें यह बीमारी कैंसर जनित तत्वों के उपयोग से प्राप्त हुई होती है, परंतु समाज में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें यह बीमारी आनुवांशिक या अन्य कारणों से मिलती है। वर्तमान समय में मनुष्य का खानपान भी शुद्ध न होना कैंसर को बढ़ावा देने का कार्य करता है। खेतों में प्रयोग किया जा रहा रसायन, समारोह में प्रयोग की जा रही प्लास्टिक की थालियां एवं डिस्पोजेबल बर्तनों का चयन भी कैंसर की वृद्धि के कारण हैं।
ऐसे में हमें सबके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखना चाहिए, क्योंकि कोई भी बीमारी चाहे मनुष्य की अपनी गलती से हुई हो या परिस्थितिवश, वह मनुष्य को समान रूप से ही नुकसान पहुंचाती है। हमें मानवता के आधार पर सभी के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए। अक्सर देखने में तो यह भी आता है कि वे स्थान और सुविधाएं जो कैंसर ग्रस्त व्यक्तियों के लिए आरक्षित होते हैं, उनका लाभ भी उन्हें प्राप्त नहीं हो पाता। ऐसे में कैंसर और इससे ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। इसके साथ ही कैंसर की उत्पत्ति के कारक और इससे बचाव के तरीकों का पता होना भी बहुत आवश्यक है। वैसे तो यह सर्वविदित ही है कि तंबाकू और तंबाकू उत्पादों का उपयोग कैंसर का मुख्य कारण है। पूरे विश्व में लोग तंबाकू का उपयोग अनेक रूपों में करते हैं, जिनमें बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा आदि मुख्य हैं। तंबाकू का यह उपयोग मनुष्य को कुछ समय के लिए एक विशेष प्रकार का नशा देता है और धीरे-धीरे उसे इसकी आदत पड़ जाती है। यह बात मैं अपने अनुभव से बता रहा हूं क्योंकि मेरे संपर्क में तीन कैंसर पीडि़त व्यक्ति आए, एक परिवार में, एक मित्र और एक सह-कर्मचारी। उनसे मुझे एक बात का एहसास हुआ कि व्यसनों को आरंभ करना जितना सरल होता है, उन्हें छोड़ पाना उससे कई गुना ज्यादा मुश्किल होता है। व्यसनी इनके चंगुल में फंसकर बेबस हो जाता है। मैंने उन्हें इस लत से छुटकारा दिलाने की अनेकों कोशिशें की, पर संतोषजनक सफलता न मिली।
यह एक ऐसा नशा होता है जिसके चंगुल से छूट पाना बहुत मुश्किल होता है। हालांकि दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अनेक लोग इससे मुक्ति पाते भी देखे गए हैं, परंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है। अतः जहां तक संभव हो, इससे बचना ही बेहतर है। कहा भी जाता है इलाज से परहेज अच्छा। प्रदेश में 65 नशा निवारण केंद्र भी चल रहे हैं और शीघ्र ही सरकार मादक द्रव्य निवारण नीति भी लागू करने वाली है। बढ़ती उम्र के बच्चों, विशेषकर किशोरों पर अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इस आयु में किशोर नई वस्तुओं की तरफ आकर्षित होते हैं। इसलिए बड़ों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किशोर कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ें। उन्हें उनके परिवेश खासकर मित्रों और मीडिया का ध्यान रखना चाहिए। अधिकतर यहीं से नई वस्तुएं उनके जीवन में प्रवेश करती हैं। बड़ों को स्वयं भी बच्चों और किशोरों के सामने धूम्रपान या मद्यपान नहीं करना चाहिए। सिनेमा जगत में दिखाए जाने वाले दृश्य, जिनमें नायक या खलनायक को धूम्रपान या मद्यपान करते हुए दिखाया जाता है, वे भी बढ़ती आयु के किशोरों को भ्रमित करते हैं। बेशक फिल्म के प्रारंभ में फिल्म निर्माताओं ने इस बात की पुष्टि कर दी हो कि फिल्म में दिखाए जाने वाले दृश्य धूम्रपान और मद्यपान का समर्थन नहीं करते हैं। ऐसे दृश्यों के साथ-साथ भी लिखित में सूचना प्रदर्शित होती है कि धूम्रपान या मद्यपान से कैंसर होता है। सरकारी आदेशानुसार किसी भी फिल्म के शुरू होने से पहले तंबाकू उत्पादों के नुकसान से संबंधित डॉक्यूमेंट्री वीडियो भी दिखाए जाते हैं और तंबाकू उत्पादों पर कैंसर से संबंधित चेतावनी भी मोटे अक्षरों में लिखी जाती है। फिर भी लोगों द्वारा न केवल तंबाकू उत्पादों का प्रचलन ही बढ़ता जा रहा है, बल्कि लोग कई अन्य प्रकार के व्यसनों को भी अपना रहे हैं जो चिंताजनक है। अन्य प्रकार के व्यसनों में चरस, हैरोइन और चिट्टा जैसे अत्यंत घातक नशे सम्मिलित हैं।
सुशिक्षित और अमीर घरों के बच्चे भी ऐसे नशों की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। अभी हाल ही में फिल्मी जगत की एक बड़ी हस्ती के पुत्र का ऐसे ही एक नशे में संलिप्त पाया जाना इसका एक उदाहरण है। तंबाकू से लोग केवल मरते ही नहीं हैं, बल्कि इससे और भी कई तरह के नुकसान होते हैं। शारीरिक के साथ-साथ ये नुकसान मानसिक, सामाजिक और आर्थिक भी होते हैं। इसके कारण अक्सर परिवारों को टूटते हुए देखा है जो उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर कर देता है। सामाजिक तौर पर ऐसे व्यक्ति तिरस्कार के पात्र बनते हैं, जो कि काफी अहितकर है। कैंसर के इलाज के लिए लोगों को लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं और ऐसे में वे आर्थिक तौर पर कमजोर होते जाते हैं। मुंह, गले, जबड़े या जीभ के ऑपरेशन के बाद शारीरिक बनावट और कार्य क्षमता भी प्रभावित होती है। इस प्रकार कैंसर पीडि़तों को अनेक प्रकार के नुकसान सहन करने पड़ जाते हैं। इसलिए कैंसर के प्रति जागरूकता होना अनिवार्य है ताकि किसी को भी इस प्रकार का नुकसान न उठाना पड़े और न ही असमय काल का ग्रास बनना पड़े। लोगों में इस जागरूकता के लिए नुक्कड़ नाटकों, कहानियों और गीतों का सहारा लिया जा सकता है। आजकल समय-समय पर नशे से संबंधित प्रश्नोत्तरी, वाद विवाद प्रतियोगिता, चित्रकला आदि प्रतियोगिताएं स्कूल स्तर पर करवा कर भी जागरूकता फैलाई जा रही है। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को कैंसर अस्पतालों का दौरा करवा कर भी जागरूक किया जा सकता है।
यश गोराले

खक कांगड़ा से हैं
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