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By NI Editorial
ये बातें एक ध्रुवीय दुनिया की समाप्ति और दुनिया के दो खेमों में बंटने वर्तमान परिघटना की तरफ इशारा करती हैँ। ऐसे में जिस तरह अमेरिकी चुनाव में दुनिया दिलचस्पी दिखाती है, कुछ-कुछ वैसा ही सीपीसी की 20वीं कांग्रेस के मौके पर देखने को मिला है, तो यह अस्वाभाविक नहीं है।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की हर पांच साल पर होने वाली पार्टी कांग्रेस (महाधिवेशन) शुरू हुई है। इस बार इस आयोजन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जैसी दिलचस्पी और कवरेज की व्यापकता दिखी है, वैसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। इसका कारण संभवतः चीन की दुनिया में बढ़ी हैसियत है। दूसरा कारण चीन और अमेरिका (या पश्चिमी देशों) का बढ़ा टकराव है। वैसे इस टकराव के पीछे भी असली कारण चीन की बढ़ी ताकत ही है, जिसे पश्चिमी देश दुनिया पर अपने वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती मान रहे हैं। पिछले हफ्ते अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने 'राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति' का दस्तावेज जारी किया, तो उसमें भी ये बात दो-टूक स्वीकार की गई कि "अमेरिकी जीवन प्रणाली" के लिए चीन सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। इसमें इस बात की ओर ध्यान दिलाया गया कि चीन अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ने का इरादा रखता है और ऐसा करने के लिए जरूरी आर्थिक, सैनिक और तकनीकी ताकत वह तेजी से हासिल करता जा रहा है।
ये बातें एक ध्रुवीय दुनिया की समाप्ति और दुनिया के दो खेमों में बंटने वर्तमान परिघटना की तरफ इशारा करती हैँ। ऐसे में जिस तरह अमेरिकी चुनाव में दुनिया दिलचस्पी दिखाती है, कुछ-कुछ वैसा ही सीपीसी की 20वीं कांग्रेस के मौके पर देखने को मिला है, तो यह अस्वाभाविक नहीं है। रविवार को पार्टी कांग्रेस की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जो भाषण दिया, उसका तुरंत ही विशद विश्लेषण मीडिया और सोशल मीडिया में देखने को मिला। उसमें इस बात ने ध्यान खींचा कि चीन ने अमेरिका की तरफ से लगाए गए टेक्नोलॉजी प्रतिबंधों का मुकाबला करने एक खास रणनीति बनाई है। ये रणनीति किस हद तक कामयाब होगी, यह कहना अभी कठिन है। लेकिन आम अनुमान यही है कि देर-सबेर चीन प्रतिबंधों की काट ढूंढ लेगा। उसने ऐसा किया, तो यह अमेरिका के दुःस्वप्न का साकार होना होगा। पार्टी कांग्रेस को संबोधित करते हुए शी जिनपिंग ने नीतिगत स्थिरता और दिशा का जो संकेत दिया, उससे निसंदेह पश्चिम की चिंताएं बढ़ेंगी।
Gulabi Jagat
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