सम्पादकीय

संसद बहाली का फैसला

Rani Sahu
8 April 2022 7:07 PM GMT
संसद बहाली का फैसला
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पाकिस्तान की नेशनल असेंबली, यानी संसद, में जो कुछ हुआ था, वह पाकिस्तान में ही हो सकता था

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली, यानी संसद, में जो कुछ हुआ था, वह पाकिस्तान में ही हो सकता था। यह हमारे विश्लेषण का सारांश-वाक्य था। अब वहां की सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जो एकमत फैसला सुनाया है, वह भी अभूतपूर्व और ऐतिहासिक है। कमोबेश पाकिस्तान जैसे अराजक देश में एक न्यायिक, संवैधानिक निर्णय है, जो जम्हूरियत को कुछ हद तक बचा सकता है। पाकिस्तान की सुप्रीम अदालत ने संसद में डिप्टी स्पीकर द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करना पूरी तरह 'असंवैधानिक' करार दिया है। संविधान में स्पीकर के आसन पर विराजमान शख्स को ऐसा कोई अधिकार हासिल नहीं है। वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की सुनियोजित रणनीति थी, लिहाजा उन्होंने राष्ट्रपति को संसद भंग करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने उसे तुरंत मंजूर कर संसद भंग करने का आदेश जारी कर दिया। नए आम चुनाव कराने की भी घोषणा कर दी गई। सुप्रीम अदालत की न्यायिक पीठ ने राष्ट्रपति के संसद भंग करने के फैसले को भी 'असंवैधानिक' करार दिया। पाकिस्तान की जम्हूरियत के इतिहास में शायद यह पहली बार संवैधानिक फैसला दिया गया है कि सरकार और संसद को दोबारा बहाल किया गया है। स्पीकर को आदेश है कि वह 9 अप्रैल को संसद के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर मत-विभाजन कराएं।

जो आंकड़े और समीकरण सामने हैं, उनके मद्देनजर इमरान हुकूमत का हारना तय है। इमरान ऐसी फजीहत से बचना चाहते थे, लिहाजा ऐसी रणनीति अख्तियार की गई। अब वही हालात सामने हैं, लिहाजा पाकिस्तान के विशेषज्ञों का आकलन है कि इमरान खान वजीर-ए-आजम के पद से इस्तीफा दे सकते हैं। कैबिनेट तो उन्हीं के साथ खंडित हो जाएगी। संकटों और तनावों के सिलसिले यहां से शुरू होते हैं। संवैधानिक, सियासी संकटों के अलावा देश में आर्थिक संकट भी विकराल और गहरे हैं। रोज़गार और महंगाई के स्तर ऐसे हैं कि कभी भी 'श्रीलंका' जैसे हालात पनप सकते हैं। आंदोलन और जन-विद्रोह की भी गुंज़ाइशें हैं। गृहयुद्ध के आसार भी पक रहे हैं। प्रधानमंत्री इमरान के साथ-साथ स्पीकर और डिप्टी स्पीकर भी इस्तीफे सौंप देते हैं, तो सबसे पहले संसद में मौजूदा सांसदों को नए स्पीकर का चयन करना होगा।
यदि इमरान पक्ष वाले सांसद गैर-हाजिर रहते हैं, तो सभी फैसले एकतरफा और एकांगी होंगे। क्या सुप्रीम कोर्ट उनकी भी संवैधानिक व्याख्या करेगी? अमूमन यह गरिमामय प्रावधान किए गए हैं कि सुप्रीम अदालत कमोबेश राष्ट्रपति के निर्णय की व्याख्या नहीं करती है। वह देश में सर्वोच्च पद है और कानूनी धाराओं के बाहर है। राष्ट्रपति संविधान का प्रथम पुरुष होता है और हुकूमत और संसद उसी के नाम पर संचालित होती हैं। स्पीकर से जुड़े विवाद तो अदालतों में सुने जाते रहे हैं और उसके संदर्भ में अदालतें स्पीकर के उलट फैसले भी सुनाती रही हैं। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है और इमरान सरकार, बेशक प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, पराजित हो जाती है, तो नया प्रधानमंत्री भी चुनना होगा। क्या वह भी नेशनल असेंबली में ही किया जा सकता है? उस प्रधानमंत्री को जनादेश वाला प्रधानमंत्री कैसे माना जा सकता है? चूंकि आम चुनाव ही अंतिम परिणति हैं। कार्यकाल ही बहुत कम शेष है। क्या नया प्रधानमंत्री डेढ़ साल के करीब ही काम करेगा? पाकिस्तान में खुन्नस की सियासत ज्यादा चलती है। जिस तरह इमरान खान हुकूमत ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को जेल में डलवाया था, उसी तरह चूं-चूं के मुरब्बे वाली नई हुकूमत भी कर सकती है! पाकिस्तान के गंभीर संकट हल करने का वक़्त कहां रह पाएगा? अंततः पाकिस्तानी अवाम ही ठगी रहेगी। बहरहाल जो भी होगा, वह भी पाकिस्तान में ही संभव है। भावी परिदृश्य रोमांचक होगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

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