सम्पादकीय

संचार क्रांति के मसीहा थे पंडित सुखराम

Rani Sahu
11 May 2022 7:08 PM GMT
संचार क्रांति के मसीहा थे पंडित सुखराम
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देश में एक समय था जब मोबाइल फोन की मात्र कल्पना की जाती थी

देश में एक समय था जब मोबाइल फोन की मात्र कल्पना की जाती थी, लेकिन उस कल्पना को साकार कर स्वप्न को संकल्प में तब्दील करने वाले देश व प्रदेश के दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों तक मोबाइल की घंटी पहुंचाने का श्रेय पंडित सुखराम जी को दिया जाता है। हिमाचल में एक समय था कि टेलीफोन व्यवस्था उतनी सुदृढ़ नहीं थी जितनी होनी चाहिए थी, लेकिन 1991 में पंडित सुखराम जब केंद्र में संचार मंत्री बने तो उन्होंने हिमाचल प्रदेश में संचार क्रांति का उदय किया। हिमाचल प्रदेश एक बहुत ही दुर्गम क्षेत्र था। उस समय जहां टेलीफोन व्यवस्था को पहंुचाना अत्यंत कठिन था, लेकिन दुर्गम क्षेत्र लाहुल-स्पीति, किन्नौर, पांगी में भी टेलीफोन की घंटियां टन टन करने लगी थी। यही नहीं उस समय एसटीडी बूथ बहुत ज्यादा खुले थे जिससे बेरोजगार युवाओं को रोजगार के साधन भी मिले थे। अब ये मसीहा सबको अलविदा कह कर भारत की पावन भूमि से विदा हो गए हैं। 1963 से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले हिमाचल प्रदेश का वह दिग्गज राजनीतिक चेहरा देश में टेलिफोन क्रांति लाने वाले लोगों में जिस सुखराम का नाम लिया जाता था, उन्होंने जापान जाकर मोबाइल भारत लाया था। पंडित सुखराम जी ने अब इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। 95 साल की उम्र में उन्होंने बुधवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली।

95 वर्ष की आयु में दुनिया छोड़ने वाले पंडित सुखराम की शुरुआत बतौर सरकारी कर्मचारी हुई थी। उन्होंने 1953 में नगर पालिका मंडी में बतौर सचिव अपनी सेवाएं दी। इसके बाद 1962 में मंडी सदर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। 1967 में इन्हें कांग्रेस पार्टी का टिकट मिला और फिर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद पंडित सुखराम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पंडित सुखराम ने कभी विधानसभा चुनावों में हार का मुंह नहीं देखा। केंद्र में उनकी जरूरत महसूस होने पर उन्हें लोकसभा का टिकट भी दिया गया। वह लोकसभा का चुनाव भी जीते और केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला। वह 1993 से 1996 तक दूरसंचार मंत्री थे। एक इंटरव्यू में सुखराम ने खुद बताया था कि कैसे भारत में मोबाइल टैक्नोलॉजी लाई गई। 31 जुलाई 1995 को पहली बार भारत में मोबाइल कॉल की गई थी। मोबाइल से यह बातचीत केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बीच हुई थी। फोन नोकिया का था। मोबाइल भारत में लाने के पीछे की भी दिलचस्प कहानी है। उन्होंने बताया था कि एक बार वह दूरसंचार मंत्री की हैसियत से जापान गए थे। उन्होंने देखा कि ड्राइवर ने अपनी जेब में मोबाइल फोन रखा है। यह देखकर उन्हें लगा कि अगर जापान के पास यह तकनीक हो सकती है तो भारत में क्यों नहीं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी इस बात का क्रेडिट देते थे, जो भारत में कंप्यूटर और टेलिफोन को घर-घर पहुंचाना चाहते थे। सुखराम ने अपने विजन के बारे में रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक और दिग्गज उद्योगपति धीरूभाई अंबानी से बात की। उन्होंने कहा था कि एक दिन मोबाइल टेलिफोन इंडस्ट्री काफी प्रॉफिट में होगी।
आज रिलायंस जियो देश का सबसे बड़ा मोबाइल टेलिकॉम ऑपरेटर है। हालांकि हल्के मूड में सुखराम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने यह अनुमान नहीं लगाया था कि मोबाइल फोन में कैमरा भी फिट हो जाएगा। वह कहते थे कि 90 के दशक में इस तरह की तकनीक की बात करने में भी काफी बाधाएं थीं। एक बार उन्होंने जनसभा में कह दिया कि एक दिन आप सबकी जेब में मोबाइल फोन होगा तो उनकी बात को संदेह भरी नजरों से देखा गया। कुछ लोगों ने सवाल किया कि घरों में पर्याप्त लैंडलाइन नहीं है और मोबाइल फोन की बातें हो रही हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम राजनीति के चाणक्य के नाम से जाने जाते थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने प्रदेश व देश की राजनीति में अपना लोहा मनवाया था। राजनीति के चाणक्य के साथ-साथ वह संचार क्रांति के मसीहा के रूप में जाने जाते थे। 1962 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले पंडित सुखराम एक कुशल राजनेता व प्रशासक माने जाते थे। 1962 से 1984 तक लगातार सदर हलके का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान वह लोक निर्माण, कृषि व पशुपालन मंत्री रहे। प्रदेश की राजनीति में अपनी दमदार उपस्थिति करवाकर वह मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताते रहे। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार के करीबी रहे। मंडी जिले से पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार ठाकुर कर्म सिंह के विरोध में खड़े हो गए। कई बार मुख्यमंत्री की कुर्सी के नजदीक पहुंच कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं चौधरी पीरू राम, पंडित गौरी प्रसाद, रंगीला राम राव व कौल सिंह के विरोध के चलते दौड़ से बाहर हुए। 1993 में तो उन्हें 22 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। अपने ही जिले के नेताओं का विश्वास नहीं जीत पाए और मुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ से फिसल गई। सुखराम ने 1993 से 1996 तक संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में हिमाचल प्रदेश ही नहीं देश में संचार क्रांति का सूत्रपात कर अपनी पहचान बनाई।
वह तीन बार लोकसभा सदस्य रहे। पंडित सुखराम की सोच सदैव विकासात्मक रही। विधानसभा और लोकसभा में जिस भी मंत्रालय में रहे, उनके विभागों के कार्यालय मंडी लाने व रोजगार सृजन करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित रखा। प्रदेश में जब वह पशुपालन मंत्री थे तो गांव-गांव में मिल्क चिलिंग सेंटर खोले। इसके अलावा बतौर केंद्रीय खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री रहते हुए मंडी में भारतीय खाद्य निगम भंडार स्थापित किए। रक्षा राज्य मंत्री रहते हुए मंडी और हमीरपुर में सेना भर्ती कार्यालय खुलवाए। बतौर संचार मंत्री देश के साथ-साथ हिमाचल में भी टेलीफोन एक्सचेंज और दूरसंचार का नेटवर्क खड़ा किया। भाजपा-हिविकां गठबंधन सरकार के दौरान जब मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो रोजगार संसाधन सृजन के अध्यक्ष के रूप में युवाओं के लिए स्वरोजगार की योजना का खाका तैयार किया। सुखराम का राजनीतिक जीवन जुझारू एवं संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने राजनीति की ऊंचाइयों को छुआ, वहीं पर राजनीतिक षड्यंत्रों के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे। 1998 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। वीरभद्र सिंह विरोध के चलते पंडित सुखराम ने भाजपा के साथ हाथ मिला प्रो. प्रेम कुमार धूमल का मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त किया था। कई उतार-चढ़ावों से गुजरे राजनीतिक सफर में पंडित सुखराम एक स्थापित नेता थे। उनके द्वारा संचार क्रांति में किए गए कार्यों के लिए देश आज भी उन्हें याद कर रहा है तथा करता रहेगा।
प्रो. मनोज डोगरा
लेखक हमीरपुर से हैं
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