सम्पादकीय

विनाश के रास्ते पर पाकिस्तान

Rani Sahu
18 May 2023 7:06 PM GMT
विनाश के रास्ते पर पाकिस्तान
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पाकिस्तान को जन्म देते समय उस समय के वायसराय लार्ड माऊंटबेटन ने कहा था कि इसका पूर्वी हिस्सा जल्दी ही इससे अलग हो जाएगा। लेकिन माऊंटबेटन की इच्छा थी कि पाकिस्तान ताकतवर बने। लेकिन यदि पाकिस्तान का आधा हिस्सा उससे अलग ही हो जाएगा तो पाकिस्तान भला ताकतवर कैसे बनेगा? माऊंटबेटन के पास इसका भी इलाज था। उसके ही अनुसार इसके लिए जरूरी है कि जम्मू कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो। उस समय भारत में माऊंटबेटन के दो मित्र थे जिनकी चर्चा आम तौर पर होती रहती है। पहले पंडित जवाहर लाल नेहरु और दूसरे जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह। ये दोनों माऊंटबेटन के वायसराय बनने से पहले से ही दोस्त थे। जम्मू कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाए, इसका प्रयास करने के लिए माऊंटबेटन 15 अगस्त 1947 से कुछ दिन पहले श्रीनगर गए भी थे। उस वक्त वायसराय का जितना दबाव हो सकता था, वह महाराजा पर डाला भी था, लेकिन महाराजा किसी भी सूरत में जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने के लिए राजी नहीं हुए। उसके बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला करके उस पर जबरदस्ती कब्जा करने की कोशिश की। उस वक्त नेहरु की मित्रता माऊंटबेटन के काम आई। नेहरु मध्यस्थता के लिए मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए। इतना ही नहीं, जब भारतीय सेना पाकिस्तान से पूरा इलाका खाली करवा रही थी तभी नेहरु जी ने सीजफायर कर दिया। उसके बाद माऊंटबेटन अपने देश चले गए। इतना ही नहीं, नेहरु ने जम्मू कश्मीर को लेकर भारतीय संविधान में अंबेडकर के विरोध के बावजूद अनुच्छेद 370 डाल कर उसे भारतीय संविधान के घेरे से भी बाहर रख दिया। यह सब माऊंटबेटन या ब्रिटिश सरकार की योजना या इच्छा के अनुसार ही हुआ। जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करवाने के लिए इसके बाद भी प्रयास जारी रखे। 1965 में उसने हमला करके इसे जीतने का प्रयास किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। कारगिल युद्ध में उसने फिर ऐसा प्रयास किया लेकिन फिर मुंह की खाई। यह आधुनिक भारत के इतिहास का पहला अध्याय था।
लेकिन 1971 में माऊंटबेटन की आशंका के अनुसार सचमुच पाकिस्तान में ही मजहब के आधार पर नई ‘स्टेट’ के औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया। पूर्वी बंगाल बंगलादेश हो गया। तब पाकिस्तान में हाहाकार मचा। बंगलादेश के उदय को लेकर उस समय पाकिस्तान के सत्ताधारियों अर्थात पाकिस्तान की सेना के अधिकारियों एवं सिविल शासकों का कहना था कि यह सब भारत की शरारत का नतीजा है। लेकिन सेना को एक खतरा और था। इसके बाद सिन्धी, बलोच और पठान भी पाकिस्तान से अलग होने की कोशिश कर सकते हैं। लगता है वह खतरा सिर पर आकर खड़ा हो गया है। इमरान खान ने पाकिस्तान में विद्रोह कर दिया है। सेना और इमरान खान आमने-सामने आ गए हैं। कहा जाता है कि इसको लेकर पाकिस्तान में सेना में ही दो गुट बन गए हैं । एक गुट सेना के समर्थन में है। पूछा जा सकता है कि पूर्वी बंगाल के विद्रोह के समय सेना में दो गुट क्यों नहीं बन पाए थे? इसके कारण पाकिस्तान और पाकिस्तान की सेना की संरचना को समझना होगा। उस समय के पाकिस्तान में जनसंख्या के लिहाज से पूर्वी बंगाल आज के पाकिस्तान यानी पश्चिमी पाकिस्तान के बराबर ही था, लेकिन बंगाली पाकिस्तान की सेना में आटे में नमक बराबर थे। इसलिए सेना में बंगाली समर्थक गुट के होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। लेकिन आज के पाकिस्तान में जनसंख्या के हिसाब से पश्तूनों या पठानों की अवहेलना की जा सके, ऐसी स्थिति नहीं है। पाकिस्तान की सेना में भी पश्तून या पठान बड़ी संख्या में हैं। यह ठीक है कि वहां की सेना पर कब्जा पंजाबियों का है, लेकिन पठानों की संख्या भी इतनी नहीं है कि उनकी अवहेलना की जा सके। पठान का एक समूह पहले ही तालिबाने पाकिस्तान के रूप में सरकार की नाक में दम किए हुए है। अब एक दूसरे पठान से सरकार और सेना दोनों का ही पंगा पड़ गया है । वर्तमान स्थिति ऐसी है कि इमरान खान और सेना आमने सामने हैं।
लोगों को लगता है कि सेना भुट्टो की तरह इमरान खान को मार देना चाहती है ताकि आगे से कोई सेना को चुनौती न दे सके। लेकिन भुट्टो और इमरान खान में एक बहुत बड़ा अंतर है। भुट्टो सिन्धी था और इमरान खान पठान है। पाकिस्तान की सेना में सिन्धियों की संख्या भी आटे में नमक बराबर ही है। इसलिए भुट्टो को फांसी पर लटकाते समय सेना में पत्ता नहीं हिला। लेकिन इमरान खान पठान है। यही कारण है कि इमरान खान के प्रकरण में पश्तूनों या पठानों के प्रान्त खैबर पख्तूनखवा, दोनों में ही लहरें उठने लगी हैं। यहां तक कि इमरान खान ने ही कहना शुरू कर दिया है कि बंगलादेश बनने का कारण ही यह था कि पाकिस्तान ने बंगालियों को उनका लोकतांत्रिक हक देने से इन्कार कर दिया था। यहां इमरान खान का पाकिस्तान से अभिप्राय खुले रूप से पंजाबियों से है। वर्तमान पाकिस्तान में संख्या के हिसाब से सबसे ज्यादा पलड़ा पंजाबियों का ही है। सेना में भी पलड़ा पंजाबियों का ही है। इसलिए सिन्धी, बलोच और पठान जब पाकिस्तान की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय पंजाबियों से ही होता है। इसलिए इमरान खान का भाव कहीं न कहीं यह है कि आज सेना पठानों को भी उनके लोकतांत्रिक अधिकार देने से इन्कार कर रही है। जिस समय इमरान खान को सत्ता से अपदस्थ किया था, उस समय पाकिस्तानी सेना का मुखिया भी एक पंजाबी था। क्या इसे संयोग कहा जाए कि जिसको सत्ता दी गई, वह भी एक पंजाबी है।
पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार सेना और पठान आमने सामने हैं और दोनों उस समय आमने सामने हुए जब अफगानिस्तान के बारे में कहा जा रहा है कि वह पठानों की मदद कर रहा है। जाहिर है इमरान खान को भुट्टो समझ लेने की भूल नहीं की जानी चाहिए। माऊंटबेटन को शायद पहले से ही पता था कि पाकिस्तान का धरातल कमजोर है। इसीलिए वे जम्मू कश्मीर पाकिस्तान को देकर उसे सशक्त बनाना चाहते थे। उसके षड्यंत्र को पहले मरहले में महाराजा हरि सिंह ने फेल किया। अब दूसरे मरहले में नरेन्द्र मोदी ने फेल किया जब जम्मू कश्मीर में से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया और उसका भाषा के आधार पर पुनर्गठन भी कर दिया गया। पाकिस्तान ने इस पर कितनी हाय तौबा मचाई, यह सब जानते हैं। लेकिन पाकिस्तानी शासकों की हाय तौबा वहां के आवाम में ही अप्रासंगिक हो गई अब जब पाकिस्तान और इमरान खान ही आमने सामने हैं। यह इबारत बड़ी होकर पाकिस्तान व पठान के आमने सामने आने की बन रही है। लगता है माऊंटबेटन की पाकिस्तान को शक्तिशाली होते देखने की इच्छा पूरी नहीं हो रही। यह पूरी हो ही नहीं सकती थी क्योंकि पाकिस्तान एक कृत्रिम राष्ट्र था, इस प्रकार के नकली राष्ट्र इतिहास में ज्यादा देर टिक नहीं पाते। प्रथम दो विश्व युद्धों के बाद ऐसे अनेक राष्ट्र/स्टेट बनाए गए थे। मसलन युगोस्लाविया, चैकोस्लोवाकिया, पाकिस्तान इत्यादि। लेकिन वे नकली होने के कारण धीरे-धीरे टूट रहे हैं । लगता है पाकिस्तान भी उसी रास्ते पर जा रहा है। पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर पर नजर रखने के बजाय पठानों व सिंधियों आदि की जायज मांगों को मान लेना चाहिए।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.कॉम

By: divyahimachal

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